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पीपीयू में अधिकारी बनने के लिए आवेदन के साथ देनी होगी पांच हजार रुपये फीस, शिक्षकों ने जताया विरोध

पाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी में यदि आपको अधिकारी बनना है, तो 25 जून तक आवेदन कर सकते हैं. इसके लिए विश्वविद्यालय ने इमेल के माध्यम से आवेदन मांगा है.

– शिक्षकों ने जताया विरोध, पूर्व अधिकारियों ने भी परंपरा को बताया गलत- बोलें सिंडिकेट सदस्य : कार्यकारी कुलपति को ऐसे नीतिगत फैसले नहीं लेने चाहिए

संवाददाता, पटनापाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी में यदि आपको अधिकारी बनना है, तो 25 जून तक आवेदन कर सकते हैं. इसके लिए विश्वविद्यालय ने इमेल के माध्यम से आवेदन मांगा है. अधिकारी बनने के लिए आवेदन देने के लिए आपको पांच हजार रुपये बतौर फीस देनी होगी. इस बाबत विश्वविद्यालय के कुलसचिव ने अधिसूचना जारी की है. इसके तहत डीएसडब्ल्यू, प्रॉक्टर, सीसीडीसी, परीक्षा नियंत्रक, कॉलेज निरीक्षक, पेंशन अधिकारी, पीएचडी ओएसडी, प्रोमोशन सेल इंचार्ज, इंचार्ज लीगल सेल, भूसंपदा पदाधिकारी, लाइब्रेरी इंचार्ज, अतिरिक्त परीक्षा नियंत्रक, डिप्टी रजिस्ट्रार की नियुक्ति के लिए आवेदन मांगे गये है. विश्वविद्यालय की ओर से इस अधिसूचना के साथ ही शिक्षकों का विरोध आरंभ हो गया है. शिक्षक संघ ने इसे शिक्षकों के स्वाभिमान पर कुठाराघात बताया है. पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के सिंडिकेट सदस्य व विधान पार्षद प्रो राजेंद्र प्रसाद गुप्ता ने इस फैसले पर आश्चर्य जताते हुए कहा कि विश्वविद्यालय के अंदर कार्यरत शिक्षक ही इसमें आवेदन करेंगे. ऐसे में उनसे किसी प्रकार का शुल्क लेना गलत है. इससे शिक्षकों के सम्मान को धक्का लगेगा. इस प्रकार के नीतिगत फैसले कार्यकारी कुलपति को नहीं करने चाहिए. पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के एक पूर्व कुलपति ने नाम न छापने के शर्त पर बताया कि किसी भी कुलपति को इस तरह के फैसले लेने से परहेज करना चाहिए. पीपीयू के कुलसचिव प्रो एनके झा ने कहा कि पहली बार यह व्यवस्था लागू की गयी है. इसमें सीरियस लोग आवेदन करें, इसके लिए फीस मांगी गयी है. आवेदन के बाद स्क्रूटनी होगी. इसके बाद राजभवन से अनुमति लेकर ही इनकी नियुक्ति की जायेगी.

बोले पूर्व अधिकारी-यह शिक्षकों के स्वाभिमान पर सवाल है

पीपीयू के पूर्व डीएसडब्ल्यू प्रो एके नाग ने कहा कि सीनियर पोस्ट पर कुशल लोग आएं, इसके लिए विश्वविद्यालय आवेदन जरूर मांग सकता है, लेकिन यदि फीस मांगी जा रही है, तो इसमें इसमें योग्य, स्वाभिमानी शिक्षक इन गरिमामय पद के लिए आगे नहीं आयेंगे. यह एक दुकानदारी व्यवस्था साबित हो सकती है. विश्वविद्यालय को फीस सिस्टम को हटाना चाहिए. यहां तक कि कुलपति नियुक्ति में भी राशि नहीं ली जाती है. यह व्यवहार कुशल नहीं है. यह शिक्षकों के स्वाभिमान पर सवाल है.

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