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जब दुल्हन के खोईछा में आयी थीं मां काली, बिहार में बरगद के इस पेड़ और मंदिर का जानिए इतिहास…

बिहार के इस बरगद पेड़ और काली मंदिर की गजब है कहानी, दुल्हन का खोइछा नहीं खुला तो आयी थीं भगवती...

Bihar News: बिहार के पूर्णिया जिले के अमौर प्रखंड में एक विशाल बरगद का पेड़ है जो करीब 300 साल पुराना बताया जाता है. इस पेड़ की कहानी कुछ ऐसी है कि लोग इसे मां काली से जोड़कर आस्था का प्रतीक मानते हैं. इस पेड़ का इतिहास एक दुल्हन के सपने से जुड़ा हुआ है. ग्रामीण बताते हैं कि एक दुल्हन के सपने में मां काली आयी थीं और उनके ही आदेशानुसार इस बरगद के पेड़ को स्थापित किया गया था. यहां पर एक काली मंदिर का भी निर्माण कराया गया जहां आज भी श्रद्धालु आकर पूजा करते हैं.

दुल्हन का खोईंछा लाख प्रयास के बाद भी नहीं खुला

अमौर प्रखंड स्थित विष्णुपुर गांव में तीन सौ साल पुराना एक विशाल बरगद का पेड़ है. मां काली से जुड़ी इसकी आस्था है. गांव के बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि करीब 300 साल पहले एक नवविवाहित दुल्हन रानीगंज हांसा अररिया से दुरागमन कराकर इस गांव आयी थी. मैथिल परंपरा के अनुसार, दुल्हन अपने मायके से खोइछा लेकर आयी थी. उसे गोसाईं घर में जाकर उस खोईछा को खोलना था. लेकिन उस समय हैरान करने वाला वाक्या हुआ. लाख प्रयास के बाद भी गोंसाई घर में दुल्हन का खोईछा नहीं खुला. परिवार के लोग दैविक प्रकोप के डर से कांप रहे थे.

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दुल्हन के सपने में आयीं मां काली

दूसरे दिन दुल्हन से जो बात सबको बतायी वो हैरान करने वाली थी. दुल्हन ने बताया कि स्वप्न में मां काली उनके पास आयी थीं. उन्होंने कहा कि वो पहुंसरा ड्योड़ी की भगवती हैं. दुल्हन को बताया कि उसके खोईंछा में एक छोटा सा बरगद का पेड़ है उसी के रूप में वो यहां आयी हैं. मां काली ने दुल्हन को आदेश दिया कि खोइंछा पवित्र स्थान पर खोलकर विधि विधान के साथ मुझे स्थापित करो. सबका कल्याण होगा. जब यह बात पूरे गांव में फैली तो गांव के लोगों ने दुल्हन का खोईंछा में आये उक्त बरगद पेड़ को मां काली का प्रतीक मान कर स्थापित करने का निर्णय लिया . जब पूजा-पाठ किया गया तो वो खोईंछा खुद खुल गया. उसमें एक बरगद का पेड़ सही में मिला.

बरगद के पेड़ के पास है काली मंदिर

ग्रामीणों ने इस बरगद के पेड़ को मां काली का स्वरूप मानकर उसे स्थापित कर दिया. आज भी यह बरगद का पेड़ उसी जगह है और विशाल रूप में खड़ा है. यहां हर दिन श्रद्धालुओं द्वारा मां काली की पूजा अर्चना की जाती है . पूर्व में ग्रामीणों ने इस पेड़ के पास घास-फूस से बनाकर एक काली मंदिर स्थापित किया था. जहां हर वर्ष कार्तिक मास में मिट्टी की प्रतिमा स्थापित होती है और भव्य काली मेला लगता है. अब इस मंदिर को भव्य रूप दे दिया गया है. पहले इसे टीन का छत मिला और अब इस मंदिर का सौंदर्यीकरण कर टाइल्स वगैरह के साथ भव्य मंदिर बनाया गया है.

ThakurShaktilochan Sandilya
ThakurShaktilochan Sandilya
डिजिटल मीडिया का पत्रकार. प्रभात खबर डिजिटल की टीम में बिहार से जुड़ी खबरों पर काम करता हूं. प्रभात खबर में सफर की शुरुआत 2020 में हुई. कंटेंट राइटिंग और रिपोर्टिंग दोनों क्षेत्र में अपनी सेवा देता हूं.

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