बिहार, मृणाल कुमार: गया जिला के फतेहपुर प्रखंड से सामाजिक और धार्मिक एकता की एक मिसाल देखने को मिली है. जहां हिन्दू समुदाय के लोग पीढ़ियों से मुहर्रम का त्योहार मनाते आए हैं. यहां कई गावों में एक मुस्लिम परिवार तक नहीं है, फिर भी त्योहार के रिवाज के अनुसार ताजिया निकली जाती है और इमामबाड़े में दुआ की जाती है.
पीढ़ियों से चलती आ रही है ये प्रथा
गांव के लोगों का कहना है कि यह परंपरा उनके पूर्वजों के समय से ही चली आ रही है. कभी एक संकट के समय उनके पूर्वजों ने इमामबाड़े में मन्नत मांगी थी और संकट तल गया था, तभी से गांव में यह आस्था जारी है.
कई गावों में है ये परंपरा
फतेहपुर प्रखंड के पतेया गांव के निवासी नरेश पंडित बताते है कि उनके गांव में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं है, लेकिन हर साल वो लोग मुहर्रम का ताजिया निकालते है. फतेहपुर प्रखंड के गदहियाटाड़, जेहलीबीघा, बहेरा, मोरवे, मतासो, कोड़या, भगवानपुर, फरका, खजूरी, रक्सी, केवाल, सतनिया समेत कई गावों में हिंदू परिवार आज भी ताजिया बनाते है और जुलूस निकालते है.
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60 से अधिक हिन्दू परिवार लेते हैं ताजिया लाइसेंस
इस साल मुहर्रम के लिए 106 ताजिया कमेटियों ने आवेदन दिया है, जिसमे 60 से अधिक लाइसेंस हिंदू परिवारों के नाम पर जारी किया जा सकता है. इन गावों में रोहन राजवंशी, राम चरण चौधरी, योगेंद्र पासवान, दशरथ यादव, हरि चौधरी, लखन चौधरी, और नरेश पंडित जैसे लोग हर साल पूरी निष्ठा से इस त्योहार की तैयारी करते है. ताजिया बनाने से लेकर जुलूस निकलने तक की हर प्रक्रिया को विधि के अनुसार निभाया जाता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि त्यौहार किसी एक धर्म का नहीं, बल्कि ये एक भाईचारे और एकता का प्रतीक है.
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