चाईबासा. चाईबासा शहर के दो प्रमुख बस पड़ावों की बंदोबस्ती बीते तीन वर्षों से नहीं हो सकी है. इस वर्ष भी मार्च का महीना बीत जाने के बावजूद बंदोबस्ती की प्रक्रिया शुरू नहीं हो पायी, जिससे नगर परिषद को प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये के संभावित राजस्व का नुकसान उठाना पड़ रहा है.
यात्री बस पांच गुना बढ़ी, फिर भी सुविधाओं का अभाव :
कोरोना काल के बाद से शहर के सरकारी और निजी बस पड़ावों पर बसों की संख्या में करीब पांच गुना वृद्धि हुई है. जहां पहले 40-50 बसें संचालित होती थीं, वहीं अब दोनों पड़ावों से प्रतिदिन 250 से 300 बसें रवाना हो रही हैं. कोरोना के दौरान यात्रियों के लिए दो सीटों पर एक यात्री बैठाने की व्यवस्था की गयी थी, जिससे डबल किराया वसूला जाता था. महामारी समाप्त होने के बाद भी बस किराया दोगुना ही कर दिया गया है. बस संचालकों का कहना है कि ईंधन और बस के कल-पुर्जों के बढ़ते दाम के चलते किराया बढ़ाना जरूरी था.बंदोबस्ती दर क्यों नहीं बढ़ रही?
बस संचालकों का कहना है कि नगर परिषद को दोनों बस पड़ावों से हर वर्ष लगभग 45 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होता है, फिर भी सुविधाओं के नाम पर कुछ भी उपलब्ध नहीं है. परिषद द्वारा बस स्टैंड पर पांच लाख रुपये भी खर्च नहीं किये जाते, ऐसे में वे बंदोबस्ती दर बढ़ाने के पक्ष में नहीं हैं. बस ऑपरेटरों ने पहले भी सुझाव दिया था कि शहर के प्रमुख चौराहों पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं, लेकिन आज तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया. बस पड़ाव के विस्तार की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही है, क्योंकि वर्तमान स्थिति में बसों के कारण प्रतिदिन जाम की समस्या उत्पन्न हो रही है.बंदोबस्ती में जीएसटी बना रोड़ा
सूत्रों के अनुसार, बंदोबस्ती की प्रक्रिया के दौरान बोली लगाने वालों को 18% जीएसटी भी जमा करना पड़ता है, जिससे उनकी लागत बढ़ जाती है. इसके अलावा, निविदा के आधार पर बंदोबस्ती की स्थिति में हर साल 10% राशि स्वतः बढ़ जाती है, जिससे इच्छुक बोलीदाता पीछे हट जाते हैं. यही कारण है कि बीते तीन वर्षों से बंदोबस्ती प्रक्रिया नहीं हो पायी है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है