सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त होना जीवन का एक अहम मोड़ होता है. कार्यकाल के दौरान व्यक्ति अपने परिवार, बच्चों की पढ़ाई और जीवनयापन की जिम्मेदारी निभाता है, लेकिन रिटायरमेंट के बाद एक नई जिंदगी की शुरुआत होती है।. सेवानिवृत्त वरिष्ठ नागरिक इसे एक नये अवसर के रूप में देख रहे हैं और समाज सेवा, शिक्षा और धार्मिक कार्यों में खुद को व्यस्त रख रहे हैं. शिक्षा के प्रति जागरूकता फैला रहे शिवनंदन मिश्रा शिवनंदन मिश्रा 1964 में उच्च विद्यालय के शिक्षक बने और 38 वर्षों तक सेवा करने के बाद 2002 में सेवानिवृत्त हुए. सेवानिवृत्ति के बाद वे ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ा रहे हैं. वे गांव में घूम-घूमकर लोगों को अपने बच्चों को नियमित स्कूल भेजने और शिक्षा के महत्व के बारे में समझा रहे हैं. उनका मानना है कि जब लोग शिक्षित होंगे, तो समाज में जागरूकता और विकास आयेगा. समाज उत्थान में सक्रिय बेचन ठाकुर बेचन ठाकुर 1972 में बीसीसीएल धनबाद में नौकरी में नियुक्त हुए और 36 वर्षों तक सेवा देने के बाद 2008 में सेवानिवृत्त हुए. वे वर्तमान में ठाकुर समाज के प्रखंड अध्यक्ष हैं और समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने के लिए जागरूकता अभियान चला रहे हैं। गांवों में बैठक कर वे समाज के विवादित मामलों को सुलझाने का कार्य कर रहे हैं. उनका उद्देश्य समाज को विकसित करना है. विवादित मामलों को सुलझा रहे उदयनाथ सिंह 1988 में सरकारी शिक्षक बने उदयनाथ सिंह 2017 में उत्क्रमित मध्य विद्यालय नोनगांव से सेवानिवृत्त हुए. वे समाज सेवा से जुड़े हुए हैं और गांव में बैठक कर विवादित मामलों को निबटा रहे हैं. इसके अलावा, वे शिक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करने का कार्य कर रहे हैं. वे लेंबोईया मंदिर प्रबंधन समिति के सचिव भी हैं और धार्मिक गतिविधियों में भाग लेते हैं. कल्याणकारी योजनाओं को बढ़ावा दे रहे धनुषधारी राम दांगी धनुषधारी राम दांगी 1972 में शिक्षक बने और 37 वर्षों तक सेवा देने के बाद 2009 में सेवानिवृत्त हुए. उन्हें 2007 में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया. प्रखंड प्रमुख रहते हुए उन्होंने क्षेत्र के विकास में अहम भूमिका निभायी. वर्तमान में वे सामाजिक कार्यों में संलग्न हैं और लोगों को सरकारी कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी देकर उन्हें लाभान्वित करने में सहयोग कर रहे हैं. सामाजिक कुरीतियों को दूर करने में संलग्न चमारी राम चमारी राम 1965 में शिक्षक बने और 35 वर्षों की सेवा के बाद 2000 में सेवानिवृत्त हुए. वे भुइयां समाज के अखिल भारतीय संघर्ष समिति झारखंड के प्रदेश सचिव हैं और माता संतोषी मंदिर धाम बंदरचुआ के संस्थापक हैं. वे समाज में फैली कुरीतियों को समाप्त कर शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं.
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