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Jamshedpur News : जवाहरलाल शर्मा की जनहित याचिका देश में मानवाधिकार की नजीर बनने की उम्मीद

शहर के सामाजिक कार्यकर्ता जवाहरलाल शर्मा द्वारा गिरफ्तारी बीमा लागू करने को लेकर दायर जनहित याचिका अब अपने मुकाम की ओर बढ़ती नजर आ रही है. इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एमिकस क्यूरी (कोर्ट के मित्र) की नियुक्ति कर दी है.

बांबे हाईकोर्ट ने उठाया बड़ा कदम, गिरफ्तारी बीमा पर एमिकस क्यूरी की नियुक्ति, 23 अप्रैल को अगली सुनवाई प्रमुख संवाददाता, जमशेदपुर. शहर के सामाजिक कार्यकर्ता जवाहरलाल शर्मा द्वारा गिरफ्तारी बीमा लागू करने को लेकर दायर जनहित याचिका अब अपने मुकाम की ओर बढ़ती नजर आ रही है. इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एमिकस क्यूरी (कोर्ट के मित्र) की नियुक्ति कर दी है. इसके बाद यह उम्मीद जताई जा रही है कि जल्द ही इसका कोई रास्ता निकलेगा और देश में गिरफ्तारी बीमा की व्यवस्था लागू करने की दिशा में ठोस पहल होगी. गौरतलब है कि बुधवार को इस मामले में हुई सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश आलोक आराधे और न्यायमूर्ति एमएस कार्णिक की खंडपीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. मिलिंद साठे को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया है. उन्हें कोर्ट की मदद करने का निर्देश दिया गया है. अब इस मामले की अगली सुनवाई 23 अप्रैल को निर्धारित की गई है. उम्मीद की जा रही है कि इस दिन कुछ निर्णायक पहल हो सकती है. देश भर की जेलों में बंद हैं 75 प्रतिशत विचाराधीन कैदी देशभर की जेलों में क्षमता से कहीं अधिक बंदी हैं, जिनमें से लगभग 75 प्रतिशत विचाराधीन कैदी हैं. इनमें से कई न्याय की आस में वर्षों से जेल में बंद हैं. कई की तो मौत भी जेल में ही हो जाती है. आर्थिक रूप से सक्षम लोग किसी तरह से जमानत पर बाहर आ जाते हैं, लेकिन गरीब और लाचार लोग वर्षों तक बिना दोष साबित हुए भी जेल में पड़े रहते हैं. सोनारी निवासी मानवाधिकार कार्यकर्ता जवाहरलाल शर्मा ने इस गंभीर समस्या को लगभग 40 वर्ष पहले महसूस किया और इसके समाधान के रूप में गिरफ्तारी बीमा का सुझाव दिया. इस मुद्दे को लेकर उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की. श्री शर्मा ने बताया कि वे फ्री लीगल एड कमेटी (फ्लैक) के सदस्य होने के नाते सुप्रीम कोर्ट में अक्सर जाते रहते थे. एक बार भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पीएन भगवती से इस मुद्दे पर चर्चा हुई, जिन्होंने उन्हें इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया. उनकी मांग है कि जो व्यक्ति बेवजह गिरफ्तार किए जाते हैं और बाद में कोर्ट से बरी होते हैं, उन्हें सरकार बीमा के तहत मुआवजा दे. इससे न केवल उन्हें फौरी राहत मिलेगी बल्कि पुलिस व्यवस्था पर भी जिम्मेदारी बढ़ेगी कि वह बिना ठोस सबूत के किसी को गिरफ्तार न करे. क्या है गिरफ्तारी बीमा देश में पुलिस द्वारा अक्सर लोगों को बिना पर्याप्त सबूत के गिरफ्तार कर लिया जाता है. ट्रायल के दौरान ही ऐसे लोग महीनों या वर्षों तक जेल में बंद रहते हैं. यदि बाद में कोर्ट उन्हें निर्दोष घोषित करती है तो वे अपना कीमती समय और सम्मान दोनों खो चुके होते हैं. जवाहरलाल शर्मा चाहते हैं कि गिरफ्तारी के साथ ही व्यक्ति का बीमा किया जाए. यदि वह निर्दोष साबित होता है तो बीमा के तहत उसे मुआवजा दिया जाए. इससे एक ओर तो आम लोगों को राहत मिलेगी और दूसरी ओर पुलिस पर भी विवेकपूर्ण कार्रवाई का दबाव रहेगा. राष्ट्रपति से लेकर पीएम तक उठाया मुद्दा, पीएम मोदी ने भी दिखाई थी पहल यह लड़ाई जवाहरलाल शर्मा और उनके सहयोगी फ्री लीगल एड कमेटी के संस्थापक प्रेमचंद वर्षों से लड़ते आ रहे हैं. 1978 में जब उन्होंने विचाराधीन कैदियों के मौलिक अधिकारों को लेकर काम शुरू किया था, तब 1979 में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. सुप्रीम कोर्ट में उनका प्रतिनिधित्व भी श्री शर्मा ही करते थे. कई मामलों में उन्हें न्यायालय से निर्देश प्राप्त हुए और न्यायमूर्ति पीएन भगवती व रंगनाथ मिश्रा जैसे जजों ने उन्हें मार्गदर्शन दिया. इसके बाद भी उन्होंने यह मुद्दा राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और सांसदों तक पहुंचाया. पीएम मोदी ने इस विषय को गंभीरता से लेते हुए इंश्योरेंस रेगुलेटरी बॉडी को कार्रवाई का निर्देश भी दिया, लेकिन कोई ठोस परिणाम नहीं निकल सका. अंततः श्री शर्मा ने बॉम्बे हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की. यहां उन्हें अपनी बेटी और दामाद, जो स्वयं वरिष्ठ अधिवक्ता हैं, से कानूनी सहायता मिली और अब यह मामला निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है. नीलमणि मामले में दिला चुके हैं न्याय, जमशेदपुर का भी कराया है सामूहिक बीमा 1980 के दशक में श्री शर्मा ने साकची जेल में बंद नीलमणि नामक महिला, जो 15 वर्षों तक जेल में बेवजह बंद रही, को न्याय दिलाया. उन्होंने इस मामले की गंभीरता को समझते हुए कानूनी लड़ाई लड़ी और अंततः महिला को मुआवजा दिलाया यही नहीं, उन्होंने जमशेदपुर शहर का सामूहिक बीमा कराने की भी पहल की. टाटा स्टील ने उनकी लड़ाई के बाद शहरवासियों का बीमा कराया है. यह बीमा उत्पादन के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं से जन और धन की हानि की भरपाई के लिए कराया गया है. वे कई वर्षों से जिला प्रशासन पर पब्लिक लाइबिलिटी एक्ट, 1991 के तहत आम नागरिकों का बीमा कराने का दबाव बनाते रहे हैं. यह कानून 1984 में भोपाल गैस त्रासदी के बाद लागू हुआ था और इसके तहत रासायनिक उत्पादन करने वाली कंपनियों के लिए अपने आस-पास के लोगों का बीमा कराना अनिवार्य है. जमशेदपुर में अब जाकर यह व्यवस्था लागू हो पाई है.

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