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झारखंड का कोल्हान कभी हाथियों के लिए था स्वर्ग, अब क्यों बन गया कब्रगाह?

Elephants Death: झारखंड का कोल्हान क्षेत्र कभी हाथियों के लिए स्वर्ग कहलाता था. आज हालात बदल गए हैं. अब ये क्षेत्र हाथियों के लिए कब्रगाह बन गया है. लगातार हाथियों की हो रही मौत ने चिंता बढ़ा दी है. पिछले 20 दिनों में ही सरायकेला खरसावां जिले के नीमडीह इलाके में दो हाथियों की मौत ने वन विभाग की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. कोल्हान के तीनों जिलों में 7 साल में 12 हाथियों की जान चली गयी है.

Elephants Death: जमशेदपुर, ब्रजेश सिंह-कभी कोल्हान क्षेत्र हाथियों के लिए स्वर्ग कहलाता था, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं. दलमा वन्य क्षेत्र, जिसे हाथियों के अभ्यारण्य के रूप में जाना जाता है, लगातार हाथियों की मौत के कारण अब ‘कब्रगाह’ बन गया है. पिछले 20 दिनों में ही नीमडीह इलाके में दो हाथियों की मौत ने वन विभाग की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. इन मौतों का कारण और तरीका एक जैसा होने से लोगों के बीच आशंकाएं गहरायी हैं. स्थानीय लोग बताते हैं कि हाल में हाथियों का झुंड अक्सर गांवों में घुसकर फसलों को नुकसान पहुंचा रहा था, जिससे इंसानों और हाथियों के बीच टकराव बढ़ गया था. वन अधिकारियों और कर्मचारियों की मौजूदगी के बावजूद बार-बार हो रही घटनाएं यह दर्शाती हैं कि एयरकंडिशनर रूम में बैठकर बनायी गयी योजनाएं जमीनी स्तर पर निष्क्रिय साबित हो रही हैं.

सुवर्णरेखा परियोजना ने बिगाड़ा हाथियों का गलियारा


‘एलिफेंट कॉरिडोर ऑफ इंडिया’ की 2023 की रिपोर्ट इस संकट की पुष्टि करती है. रिपोर्ट के अनुसार, सुवर्णरेखा नहर, रेलवे लाइन और मानव बस्तियों के विस्तार ने दलमा-चांडिल हाथी गलियारे को बाधित कर दिया है. इन कारणों से हाथियों का पारंपरिक मार्ग टूट चुका है, जिससे वे मजबूरन इंसानी बस्तियों की ओर बढ़ रहे हैं.

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जंगल सिकुड़े, भोजन घटा, तो हाथियों में बढ़ी आक्रामकता


सड़कों, रेलवे लाइन और आबादी के विस्तार के दौरान हाथियों के कोरिडोर की अनदेखी की गयी. जंगलों में बांस और अन्य प्राकृतिक भोजन की कमी, और इंसानी दखल के चलते हाथियों का व्यवहार भी बदल गया है. अब वे खेतों में धान और अन्य फसलें खाने आ रहे हैं, जिससे हिंसक टकराव बढ़ रहे हैं.

विशेषज्ञों की राय में गहराता संकट


सेवानिवृत्त पीसीसीएफ शशिनंद क्यूलियार के अनुसार, जंगलों के पास खनन, विस्फोट और नक्सल गतिविधियों ने हाथियों का प्राकृतिक वास उजाड़ दिया है. वहीं, वन्यजीव जीवविज्ञानी डॉ. अमर सिंह बताते हैं कि जंगलों के सिकुड़ने, खानपान की आदतों में बदलाव और आक्रामक व्यवहार का सीधा संबंध आवास विनाश से है. बांस की जगह फसलें हाथियों का नया आहार बन गया है. खनन गड्ढों को न भरना, बेतरतीब बुनियादी ढांचे का निर्माण और नियमों की अनदेखी ने हाथियों को मौत के मुहाने पर ला खड़ा किया है. यह न सिर्फ वन्यजीवों, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन के लिए भी गंभीर खतरा बन चुका है.

कोल्हान के तीनों जिलों में 7 साल में 12 हाथियों की गयी जान


पश्चिमी सिंहभूम
29 सितंबर 2017: गिधनी रेलवे स्टेशन पर 1 हाथी की मौत
16 अप्रैल 2018: धुतरा और बागडीह रेलवे स्टेशनों के बीच 1 हाथी की मौत
14 सितंबर 2017: बंडामुंडा और किरीबुरू सेक्शन में 1 हाथी की मौत
4 फरवरी 2021: जराईकेला और भालूलता रेलवे स्टेशनों के बीच महीपानी में 2 हाथियों की मौत
19 मई 2022: बांसपानी जुरुली के बीच 1 हाथी की मौत

पूर्वी सिंहभूम
अगस्त 2018: चाकुलिया के कानीमहुली हॉल्ट और पश्चिम बंगाल के गिधनी स्टेशन के बीच 3 हाथियों की मौत
2020: चाकुलिया के सुनसुनिया के पास 1 हाथी की मौत
21 नवंबर 2023 : मुसाबनी वन क्षेत्र के बेनाशोल में बिजली का करंट लगने से 5 हाथियों की मौत हुई थी.

सरायकेला-खरसावां
10 जून 2023: नीमडीह प्रखंड के गुंडा विहार में 1 दो माह के हाथी के बच्चे की मौत
9 मई 2024: कुकडू प्रखंड के लेटेमदा रेलवे स्टेशन के पास 1 हाथी की मौत
10 मार्च 2025 : हटिया-टाटा रूट पर ट्रेन से कटकर एक हाथी की मौत हो गयी है.
जून 2025 : 20 दिनों में दो हाथियों की नीमडीह में मौत

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Guru Swarup Mishra
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मैं गुरुस्वरूप मिश्रा. फिलवक्त डिजिटल मीडिया में कार्यरत. वर्ष 2008 से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से पत्रकारिता की शुरुआत. आकाशवाणी रांची में आकस्मिक समाचार वाचक रहा. प्रिंट मीडिया (हिन्दुस्तान और पंचायतनामा) में फील्ड रिपोर्टिंग की. दैनिक भास्कर के लिए फ्रीलांसिंग. पत्रकारिता में डेढ़ दशक से अधिक का अनुभव. रांची विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एमए. 2020 और 2022 में लाडली मीडिया अवार्ड.

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