-शिक्षकों की प्रोन्नति रुकी, बीएड में नियमों की अनदेखी और वेतन वृद्धि भी लंबित वरीय संवाददाता, जमशेदपुर कोल्हान विश्वविद्यालय गंभीर प्रशासनिक अव्यवस्था और शैक्षणिक अनियमितताओं से जूझ रहा है. इसका सीधा असर पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम और सरायकेला-खरसावां जिले के करीब 80,000 विद्यार्थियों पर पड़ रहा है. एकेडमिक कैलेंडर में देरी, छात्रों का भविष्य खतरे में विश्वविद्यालय में परीक्षा शेड्यूल लगातार देरी से चल रहा है. पीजी कोर्स सत्र 2024-2026 के प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा अब तक नहीं हुई है, जबकि सत्र 2023-2025 के सेकेंड सेमेस्टर का रिजल्ट लंबित है. यूजी कोर्स सत्र 2024-2028 के प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा भी अब तक नहीं हो पायी है, जबकि 2023-2027 के सेकेंड सेमेस्टर की परीक्षा भी लंबित है. अंगीभूत कॉलेजों में तो स्थिति और खराब है. 2017-2020, 2018-2021 और 2019-2022 स्नातक सत्र के इलेक्टिव द्वितीय पत्र की परीक्षा नहीं होने से हजारों छात्र शिक्षक बनने की अर्हता से वंचित हो गये हैं. शिक्षकों को नहीं मिली प्रोन्नति और वार्षिक वेतन वृद्धि कोल्हान विश्वविद्यालय के अधीन अंगीभूत कॉलेजों में शिक्षकों की पदोन्नति वर्षों से रुकी हुई है. 2008 में बहाल असिस्टेंट प्रोफेसरों को अब तक एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर प्रोन्नति नहीं मिली है, जबकि वे निर्धारित अवधि पूरी कर चुके हैं. स्थिति यह है कि प्रोफेसर की योग्यता रखने वाले दर्जनों शिक्षक एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर ही काम कर रहे हैं. इसके अलावा, झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) द्वारा नवनियुक्त शिक्षकों को चार साल से वार्षिक वेतन वृद्धि भी नहीं दी गयी है, जिससे उनके वेतन में कोई सुधार नहीं हो रहा है. बीएड में एनसीटीई नियमों की अनदेखी कोल्हान विश्वविद्यालय में वर्ष 2015 से बीएड पाठ्यक्रम में एनसीटीई के नियमों की अवहेलना हो रही है. नियमों के अनुसार बीएड में दो मेथड पेपर की पढ़ाई होनी चाहिए, लेकिन विश्वविद्यालय में सिर्फ एक मेथड पेपर पढ़ाया जा रहा है. झारखंड के अन्य विश्वविद्यालयों ने दूसरे मेथड पेपर की परीक्षा लेकर छात्रों का भविष्य सुरक्षित कर दिया है, लेकिन कोल्हान विवि में इस दिशा में कोई पहल नहीं की गयी है. छात्रों का मोहभंग, निजी विश्वविद्यालयों की ओर रुझान परीक्षा और रिजल्ट में देरी के कारण विद्यार्थी कोल्हान विश्वविद्यालय से मुंह मोड़कर निजी विश्वविद्यालयों का रुख कर रहे हैं. कोल्हान विश्वविद्यालय की स्थापना 13 अगस्त 2009 को आदिवासी और गरीब छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के उद्देश्य से की गयी थी, लेकिन वर्तमान स्थिति से छात्रों का भविष्य अंधकारमय हो रहा है.
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