कोल्हान के सरकारी, अस्पतालों की बिगड़ती हालत
Jamshedpur News
कोल्हान प्रमंडल के प्रमुख सरकारी अस्पताल इन दिनों इलाज के बजाय मरीजों को रेफर करने के लिए ज्यादा चर्चित हो गए हैं. एमजीएम मेडिकल कॉलेज अस्पताल, घाटशिला अनुमंडल अस्पताल, कर्मचारी राज्य बीमा निगम (इएसआइसी) अस्पताल और टाटानगर रेलवे अस्पताल सभी में हालात कमोबेश एक जैसे हैं. डॉक्टरों की भारी कमी, आवश्यक जीवनरक्षक सुविधाओं का अभाव और जर्जर एंबुलेंस व्यवस्था ने इन संस्थानों को “रेफरल यूनिट ” बना दिया है. नतीजतन, गंभीर मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिल पा रहा और गरीब व श्रमिक वर्ग निजी अस्पतालों की महंगी सेवाओं के लिए विवश हो रहा है. स्थानीय प्रशासन और प्रबंधन सुधार के दावे तो कर रहे हैं, पर जमीनी हालात जस के तस हैं.
एमजीएम : 45 दिनों में 180 मरीज रेफर
कोल्हान का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल एमजीएम, इलाज से ज्यादा मरीजों को रेफर करने के लिए जाना जा रहा है. डॉक्टरों और संसाधनों की गंभीर कमी ने अस्पताल को ‘रेफरल यूनिट’ में तब्दील कर दिया है. इमरजेंसी से लेकर गायनी और शिशु वार्ड तक, हर गंभीर मरीज या तो खासमहल स्थित सदर अस्पताल या फिर रांची रिम्स भेजा जा रहा है. सिर्फ मई-जून(45 दिन) में अब तक 180 से ज्यादा मरीजों को रेफर किया जा चुका है. हालत यह है कि खुद एमजीएम अस्पताल आउटसोर्स कर्मचारियों और अस्थायी डॉक्टरों के भरोसे चल रहा है. इमरजेंसी से हर दिन रेफर हो रहे 5 से 7 मरीज. साकची स्थित पुराने भवन से डिमना स्थित नए भवन में अस्पताल का स्थानांतरण चल रहा है, लेकिन इसमें समय लग रहा है. इस बीच हार्ट अटैक, लकवा, आर्थो और सर्जरी के गंभीर मरीजों को खासमहल सदर अस्पताल या रांची रिम्स रेफर किया जा रहा है. इमरजेंसी वार्ड से हर दिन औसतन 5 से 7 मरीजों को रेफर किया जा रहा है. गायनी और शिशु वार्ड से भी गंभीर मरीजों को रेफर करना आम बात हो गयी है. अब तक 180 से अधिक मरीजों को रेफर किया जा चुका है. वेंटिलेटर सुविधा न होने से प्रतिदिन 4 से 5 मरीजों को निजी अस्पताल भेजना पड़ता है, जहां एक दिन का खर्च 15,000 से 20,000 रुपये तक होता है. एमजीएम अस्पताल में चिकित्सा पदों की स्वीकृत संख्या 309 है, लेकिन केवल 178 डॉक्टर कार्यरत हैं. 131 पद रिक्त हैं. हाल ही में 43 अस्थायी डॉक्टरों की तीन वर्षों के लिए नियुक्ति की गयी है.11 स्थायी नर्स ही कर रही काम
पूरे अस्पताल में नर्सों, एएनएम, जीएनएम सहित कुल 714 स्वीकृत पद हैं, जिनमें से केवल 130 पर कर्मचारी कार्यरत हैं. यानी 584 पद खाली हैं. नर्सों के 270 स्वीकृत पदों में केवल 11 स्थायी नर्स काम कर रही हैं. पूरा अस्पताल आउटसोर्स नर्सों के सहारे संचालित हो रहा है. यही नहीं, ड्रेसर और एक्स-रे टेक्नीशियन जैसे अहम पद पूरी तरह रिक्त हैं. मरीजों की ड्रेसिंग और एक्स-रे की जिम्मेदारी भी आउटसोर्स कर्मियों और जूनियर डॉक्टरों पर है.रोजाना अस्पताल में 700 से 900 मरीज इलाज के लिए आते हैं. इनमें से 150 से अधिक का एक्स-रे किया जाता है. बावजूद इसमें एक भी स्थायी कर्मचारी नहीं है. 35 पद ऐसे है जो पूरी तरह से खाली है.वेंटिलेटर का बेहतर उपयोग नए अस्पताल भवन में किया जाएगा. इसकी सूची बनाई जा रही है, ताकि यह पता चल सके कि कितने वेंटिलेटर चालू हालत में हैं और कितने खराब हैं. डॉ. जुझार माझी, उपाधीक्षक, एमजीएम अस्पताल—————-टाटानगर रेलवे हॉस्पिटल : न डॉक्टर, न जांच की सुविधा, सिर्फ होता है बुखार का इलाज
रेलवे का ‘अस्पताल’ कहे जाने वाला टाटानगर रेलवे हॉस्पिटल इन दिनों सिर्फ नाम का अस्पताल रह गया है. हजारों मरीजों का दबाव, लेकिन न डॉक्टर हैं, न जांच की सुविधा, न दवाएं और न ही गंभीर मरीजों को समय रहते रेफर करने की स्पष्ट व्यवस्था. अस्पताल के हाल यह हैं कि बुखार या मामूली चोट से इतर अगर कोई गंभीर बीमार पहुंचता है तो डॉक्टर या तो हाथ खड़े कर देते हैं. रेफर के नाम पर भी हिचकिचाते हैं. ऐसे में रेलवे कर्मचारियों और उनके परिवारों को अक्सर निजी अस्पतालों का सहारा लेना पड़ता है, वह भी तब जब वह रेलवे द्वारा मान्यता प्राप्त हों.यह अस्पताल दक्षिण-पूर्व रेलवे के चक्रधरपुर मंडल का महत्वपूर्ण चिकित्सा केंद्र है. झारसुगुड़ा, बंडामुंडा, डीपीएस सहित आसपास के तमाम स्टेशनों से रेलकर्मी और उनके परिजन इलाज के लिए यहां पहुंचते हैं. हर महीने औसतन 50,000 लोगों का इलाज होता है, लेकिन स्थायी डॉक्टर महज छह हैं, जिसमें मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. जयप्रकाश महाली भी शामिल हैं. ओपीडी में तीन विजिटिंग डॉक्टर तैनात हैं, लेकिन इतने बड़े मरीज भार के सामने यह तैनाती नाकाफी है. यहां रेफर की प्रक्रिया आसान नहीं है. गंभीर मरीजों को बेहतर इलाज के लिए रेफर करना तय है, लेकिन डॉक्टर इसे टालते हैं. परिजनों को कभी “अभी रेफर नहीं होगा”, तो कभी “थोड़ी देर देख लीजिए” जैसे जवाब मिलते हैं.कोट
टाटानगर रेलवे अस्पताल को बेहतर बनाने की कोशिश की जा रही है. सुविधाओं को बढ़ाने पर काम हो रहा है. जल्द ही रिजल्ट सामने आएगा.आदित्य चौधरी, सीनियर डीसीएम, दक्षिण पूर्व रेलवे
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इएसआइसी अस्पताल : हर महीने सैकड़ों मरीज अन्य अस्पतालों में भेजे जा रहे
कर्मचारी राज्य बीमा निगम (इएसआइसी) अस्पताल आदित्यपुर में इलाज के लिए आने वाले मरीजों को अब भी उम्मीद से अधिक निराशा झेलनी पड़ रही है. प्रतिदिन यहां 15 से 20 मरीजों को इलाज के अभाव में अन्य अस्पतालों में रेफर कर दिया जाता है. पिछले महीने अकेले रेफर मरीजों की संख्या करीब 450 रही. इसका मुख्य कारण है अस्पताल में आइसीयू, सीसीयू और वेंटिलेटर जैसी बुनियादी आपात चिकित्सा सेवाओं का न होना. बीते एक महीने में अस्पताल से करीब 450 मरीजों को बाहर रेफर किया गया. यह आंकड़ा दिखाता है कि अस्पताल की सेवाएं अब भी पर्याप्त नहीं हैं. जिन मरीजों को तुरंत आईसीयू, वेंटिलेटर या अन्य स्पेशलिस्ट सेवा की ज़रूरत होती है, उन्हें प्राथमिक देखभाल के बाद संबंधित टाइअप अस्पतालों में भेज दिया जाता है. ईएसआईसी अस्पताल का टाइअप सुपर स्पेशियलिटी सेवाओं के लिए स्पंद अस्पताल से है. नेत्र विभाग से संबंधित मरीजों के लिए पूर्णिमा नेत्रालय, एएसजी आइ हॉस्पिटल और संजीव नेत्रालय से अनुबंध किया गया है. हालांकि, गंभीर मरीजों को प्राथमिक जांच के बाद तुरंत रेफर कर दिया जाता है. अस्पताल की अपनी इमरजेंसी यूनिट जरूर है, लेकिन विशेषज्ञ चिकित्सकों को आपात स्थिति में कॉल कर बुलाना पड़ता है, जिससे समय पर उपचार बाधित होता है.कोटप्रमुख बीमारियों के विशेषज्ञ अस्पताल में उपलब्ध हैं, लेकिन इएनटी भाग की सेवा अभी शुरू नहीं हुई है. इसे जल्द शुरू करने की प्रक्रिया चल रही है.
डॉ. प्रदुम्न, अस्पताल अधीक्षक————घाटशिला अनुमंडल अस्पताल :
खराब एंबुलेंस और बंद ब्लड बैंक से मरीजों को होती है परेशानी
घाटशिला अनुमंडल अस्पताल अब मरीजों के इलाज का नहीं, बल्कि रेफर सेंटर बनकर रह गया है. नाम भले ही अनुमंडल अस्पताल हो, लेकिन हकीकत में यहां अधिकांश मरीजों को एमजीएम अस्पताल रेफर कर दिया जाता है. विशेषज्ञ चिकित्सकों की भारी कमी, आधुनिक सुविधाओं का अभाव और जर्जर एंबुलेंस सेवा ने इस अस्पताल को केवल एक औपचारिक ढांचा बनाकर रख दिया है. अस्पताल में सर्जन, स्त्री रोग, बाल रोग, निश्चेतक, नेत्र रोग, रेडियोलॉजिस्ट जैसे विभागों के विशेषज्ञ डॉक्टरों के सभी आठ पद रिक्त हैं. गंभीर रूप से घायल या प्रसव पीड़ित महिला को यहां केवल प्राथमिक उपचार मिलता है, इसके बाद उन्हें रेफर कर देना ही एकमात्र विकल्प बचता है. ओपीडी में मई माह में 2991 मरीजों का इलाज हुआ, लेकिन इनमें से 36 मरीजों को गंभीर स्थिति में बाहर रेफर करना पड़ा . 22 मई को घाटशिला के कालापाथर में दो बाइकों की टक्कर में घायल चार युवकों को प्राथमिक इलाज के बाद एमजीएम रेफर किया गया. लेकिन जिस एंबुलेंस से दो घायल जा रहे थे, वह खराब हो गयी और मरीज फंस गये. यहां डॉक्टरों के कुल 14 पद स्वीकृत हैं, जिनमें सिर्फ 5 डॉक्टर कार्यरत हैं. आइसीयू और सीसीयू की सुविधा भी नहीं है.मिनी ब्लड बैंक भी बंद है, जिससे मरीज परेशान होते हैं.कोट
हम मरीजों के इलाज की पूरी कोशिश करते हैं, लेकिन डॉक्टरों की कमी एक बड़ी चुनौती है. हमने विभाग को डॉक्टर और उपकरण की मांग भेजी है. डॉ. आरएन. सोरेन, चिकित्सा प्रभारी, घाटशिला अनुमंडल अस्पतालडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है