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सिलिकोसिस पीड़ित श्रमिकों और मृतकों के आश्रितों को मुआवजा दिलाने के लिए 22 साल से प्रयासरत हैं समीत कुमार कार

ऑक्यूपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ एसोसिएशन ऑफ झारखंड (ओशाज इंडिया) के महासचिव समीत कुमार कार ने सिलिकोसिस से पीड़ित श्रमिकों और मृतकों के आश्रितों को तत्काल मुआवजा देने की मांग की है.

ओशाज इंडिया के महासचिव समीत कुमार कार ने विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर प्रभावित श्रमिकों और मृतकों के आश्रितों को न्याय दिलाने की मांग की

Jamshedpur News :

ऑक्यूपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ एसोसिएशन ऑफ झारखंड (ओशाज इंडिया) के महासचिव समीत कुमार कार ने सिलिकोसिस से पीड़ित श्रमिकों और मृतकों के आश्रितों को तत्काल मुआवजा देने की मांग की है. उन्होंने 29 जुलाई को झारखंड विधानसभा अध्यक्ष रवींद्र नाथ महतो को एक पत्र लिखकर इस मुद्दे को गंभीरता से उठाया. पत्र में कहा गया है कि संस्था पिछले 22 वर्षों से (साल 2003 से) झारखंड के विभिन्न जिलों में सिलिकोसिस जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे श्रमिकों की पहचान, अनुसंधान और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के प्रयास कर रही है, लेकिन अभी तक अपेक्षित सफलता नहीं मिल पायी है.

योजना में संशोधन की मांग

उन्होंने कहा कि कारखाना सिलिकोसिस लाभुक सहायता योजना 2021 में तत्काल संशोधन की जरूरत है, क्योंकि इसके मौजूदा स्वरूप में प्रभावित श्रमिकों और मृतक श्रमिकों के आश्रितों को मुआवजा देना संभव नहीं हो पा रहा है. मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप (पत्रांक-8503683, दिनांक 07 मई 2025) से सिलिकोसिस पहचान की प्रक्रिया शुरू होने की उम्मीद तो जगी है, लेकिन योजना में संशोधन को लेकर कोई ठोस जानकारी अब तक सामने नहीं आयी है.

सरकारी डॉक्टरों की रिपोर्ट पर सवाल

समीत कार ने आरोप लगाया कि अधिकांश सरकारी डॉक्टर भ्रामक जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं. इससे श्रमिकों को सिलिकोसिस पीड़ित घोषित कराने में बड़ी बाधा आती है. वहीं जिले के संबंधित विभागों के अधिकारी भी संवेदनहीन और गैर-जिम्मेदाराना रवैया अपनाते हैं. उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में श्रमिकों के पास कारखाना श्रमिक होने का कोई प्रमाण पत्र नहीं है. ऐसे में वे पीएफ और इएसआइ जैसी बुनियादी श्रम सुविधाओं से वंचित हैं.

मौतों का आंकड़ा चिंताजनक

समीत कार ने बताया कि पूर्वी सिंहभूम जिले के सभी बंद और चालू कारखानों में काम करने वाले स्थानीय और प्रवासी श्रमिकों को जोड़ दिया जाये तो सिलिकोसिस से होने वाली मौतों का आंकड़ा एक हजार से अधिक है. सिर्फ पिछले दो महीनों में ही छह श्रमिकों की मौत हो चुकी है. उन्होंने कहा कि प्रभावितों में ज्यादातर आदिवासी, दलित, पिछड़े वर्ग और मूल निवासी हैं. वहीं राजस्थान, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड के अन्य जिलों से आये प्रवासी श्रमिकों का कोई डेटा अब तक उपलब्ध नहीं है.

ओशाज इंडिया ने 176 मृत श्रमिकों की पहचान की

ओशाज इंडिया द्वारा पूर्वी सिंहभूम जिले में अब तक 176 मृत श्रमिकों की पहचान की गयी है, लेकिन इनमें से केवल 37 आश्रितों को ही मुआवजा मिल पाया है. वहीं 385 जीवित श्रमिक, जो सिलिकोसिस से जूझ रहे हैं, उन्हें अब तक किसी तरह की कोई सहायता नहीं मिली है. संस्था ने 25 जुलाई को उपायुक्त को ज्ञापन सौंपकर एमजीएम अस्पताल में वर्ष 2014, 2018, 2019, 2021, 2023 और 2024 में जांचे गये सिलिकोसिस पीड़ित श्रमिकों और मृतकों के आश्रितों को मुआवजा देने की मांग भी की थी.

आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार, मुसाबनी ब्लॉक के 27 श्रमिकों में जून 2014 में सिलिकोसिस की पुष्टि हुई थी. इनमें पांच मृतकों के परिजनों को मुआवजा मिला है, लेकिन शेष 22 श्रमिकों और उनके परिवारों को अब तक कुछ नहीं मिला. इसी तरह धालभूमगढ़ और डुमरिया ब्लॉक के आठ-आठ श्रमिकों को 2019 में चिकित्सीय प्रमाण पत्र तो मिला, परंतु मृतक बासुदेव भगत, साधन दास और सुमन कुमार दत्ता के परिजनों के साथ-साथ सुरेश राजवाड़, मासांग मुर्मू और खुदीराम मार्डी जैसे जीवित श्रमिकों को मुआवजा नहीं मिला है.

सिलिका धूल पर नियंत्रण की मांग

समीत कार ने रैमिंग मास इकाइयों में सिलिका धूल की मात्रा जानने की वैज्ञानिक व्यवस्था लागू करने की भी मांग की. उनका कहना था कि हवा में सिलिका धूल के सांद्रण स्तर को मापे बिना समस्या पर नियंत्रण संभव नहीं है. उन्होंने इस बीमारी के कारण हो रही मौतों को गंभीर मानवाधिकार संकट करार दिया और कहा कि जब तक नौकरशाही की बाधाएं दूर नहीं होंगी, तब तक सिलिकोसिस पीड़ित श्रमिकों और उनके परिवारों को न्याय नहीं मिल सकेगा.

सरकार से तत्काल कार्रवाई की अपील

उन्होंने कहा कि सिलिकोसिस मामलों में वे वर्ष 2003 से शिकायतकर्ता की भूमिका निभा रहे हैं और लगातार सरकार को पत्र लिख रहे हैं. अब तक आंशिक हस्तक्षेप के बावजूद इसका कोई ठोस असर नहीं दिखा है. उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष से अपील की है कि इस याचिका पर तुरंत विचार कर योजना को संशोधित और प्रभावी बनाया जाये, ताकि प्रभावित श्रमिकों और मृतकों के आश्रितों को न्याय मिल सके.

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