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Jharkhand News : नाजीर हेंब्रम को साहित्य अकादमी-2024 का अनुवाद पुरस्कार मिला

Jharkhand News : साहित्य अकादमी ने अनुवाद पुरस्कार 2024 की शुक्रवार को घोषणा की. साहित्य अकादमी के अध्यक्ष माधव कौशिक की अध्यक्षता में अकादमी के कार्यकारी मंडल की बैठक में 21 अनुवादकों को अनुवाद पुरस्कार के लिए अनुमोदित किया गया.

नीलोत्पल मृणाल द्वारा लिखित हिंदी उपन्यास डार्क हार्स के संताली अनुवाद पुस्तक हेंदे सादोम के लिए मिला है पुरस्कार

Jharkhand News : साहित्य अकादमी ने अनुवाद पुरस्कार 2024 की शुक्रवार को घोषणा की. साहित्य अकादमी के अध्यक्ष माधव कौशिक की अध्यक्षता में अकादमी के कार्यकारी मंडल की बैठक में 21 अनुवादकों को अनुवाद पुरस्कार के लिए अनुमोदित किया गया. संताली में इसबार संताल परगना के पाकुड़ जिला, महेशपुर प्रखंड अंतर्गत चंदालमारा गांव के रहने वाले नाजीर हेंब्रम को साहित्य अकादमी अनुवाद पुरस्कार मिला को मिला है. उन्हें यह पुरस्कार नीलोत्पल मृणाल द्वारा लिखित हिंदी उपन्यास डार्क हार्स के संताली अनुवाद पुस्तक हेंदे सादोम के लिए मिला. नाजीर हेंब्रम पेशे से प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी हैं और वे महेशपुर प्रखंड में पदास्थापित हैं. हेंदे सादोम के अलावे उन्होंने कई पुस्तकें लिखी है. इनमें सेदाय काथा (कहानी-2013 ), बांदोंग (कविता संग्रह-2020), कोरोम कोपाल (कविता संग्रह-2022),हेंदे सादोम (अनुवाद पुस्तक-2022) आदि प्रमुख हैं. इसके साथ कई पत्र-पत्रिकाओं से भी जुड़े हुए हैं. लेखक नाजीर हेंब्रम को दुमका की जोहार एंड गोटा भारोत सिदो-कान्हू हूल बैसी के द्वारा सर्वश्रेष्ठ कहानीकार का पुरस्कार से नवाजा है. वहीं आइसवा संताल परगना जोन द्वारा नारायण सोरेन-तोड़ेसुतम अवार्ड भी सम्मानित हो चुके हैं.

मातृभाषा में साहित्य सृजन की चाह में लेखक बने नाजीर हेंब्रम

लेखक नाजीर हेंब्रम का साहित्यिक सफर उस समय शुरू हुआ जब वे कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे. हिंदी और अंग्रेजी की किताबें खरीदकर पढ़ते हुए उनके मन में एक सवाल उठा, क्या अपनी मातृभाषा की लिपि ओलचिकी में भी पुस्तकें उपलब्ध हो सकती हैं? इसी सोच ने उन्हें लेखन की ओर प्रेरित किया. वर्ष 2013 में उन्होंने अपनी पहली पुस्तक ‘सेदाय काथा’ (कहानी संग्रह) लिखी, जो संताली भाषा और संस्कृति को समर्पित थी. इसके बाद से उनका लेखन सफर अनवरत जारी है. नाजीर हेंब्रम न केवल साहित्य सृजन कर रहे हैं, बल्कि साहित्यिक गतिविधियों में भी सक्रिय रूप से योगदान दे रहे हैं, जिससे उनकी मातृभाषा और संस्कृति को एक नई पहचान मिल रही है.

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