बेतला़ भारतीय सिनेमा जगत के अमर पार्श्व गायक मोहम्मद रफी की यादें झारखंड के बेतला नेशनल पार्क से भी जुड़ी हैं. अस्सी के दशक में चियांकी हवाई अड्डा में आयोजित मोहम्मद रफी नाइट कार्यक्रम के बाद वे देर रात बेतला पहुंचे थे. उनके ठहरने की व्यवस्था महुआ के पेड़ पर बने उस प्रसिद्ध ट्री हाउस में की गयी थी, जो विदेशी शैली में 1977 में निर्मित था और उस समय वीआइपी के लिए आरक्षित रहता था. रफी साहब ने वहां केवल दो घंटे बिताये. दरअसल, रात के समय सैकड़ों हिरण ट्री हाउस के आसपास पहुंच गये और उनकी आवाजें पूरे जंगल में गूंजने लगीं. रफी साहब को भ्रम हुआ कि कोई हिंसक जंगली जानवर पास आ गया है. उन्होंने तत्काल रेंजर से अनुरोध कर किसी अन्य कमरे में शिफ्ट होने की बात कही. उस समय बेतला नेशनल पार्क की आधिकारिक स्थापना नहीं हुई थी. यह क्षेत्र 1973 में बने पलामू टाइगर रिजर्व के तहत पलामू सेंचुरी कहलाता था. जानकारों के अनुसार पलामू का यह मोहम्मद रफी नाइट, उनके जीवन का अंतिम सार्वजनिक कार्यक्रम था. क्योंकि इसके कुछ दिनों बाद 31 जुलाई 1980 को उनका निधन हो गया. जैसे ही यह खबर बेतला और आसपास के क्षेत्रों में फैली, लोग भावुक हो उठे. मोहिउद्दीन अंसारी, गफूर अंसारी जैसे स्थानीय लोग आज भी उस दिन को याद कर भावुक हो जाते हैं. हजारों की संख्या में लोग उन्हें देखने पहुंचे थे. रफी साहब ने दोबारा आने का वादा किया था, पर नियति ने उन्हें फिर लौटने नहीं दिया. आज वह ट्री हाउस भी ढह चुका है, पर उनकी यादें आज भी बेतला की फिजा में जिंदा हैं.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है