लोहरदगा़ लोहरदगा शहरी क्षेत्र के महादेव टोली स्थित बुढ़वा महादेव लोगों की आस्था का केंद्र है. प्राचीन काल से ही इस मंदिर का महत्व अत्यधिक है. सावन के महीने में यहां शिवभक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. कहा जाता है कि यहां जो सच्चे मन से कामना करता है, उसकी मनोकामना बाबा जरूर पूरी करते हैं. यही कारण है कि लोहरदगा ही नहीं, आसपास के इलाकों से भी श्रद्धालु यहां पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं. सावन के अलावा महाशिवरात्रि पर भी यहां भक्तों की भारी भीड़ जुटती है. लोग यहां आकर मानसिक शांति महसूस करते हैं और विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान भी कराते हैं. सावन के अलावा अन्य महीनों में भी यहां पूजा-अर्चना का सिलसिला चलता रहता है. शहरी क्षेत्र में स्थित होने के कारण मंदिर में लोगों की भीड़ हमेशा बनी रहती है. कहा जाता है कि पुराने समय से ही लोग अपनी मनोकामना पूरी करने बाबा के दरबार में आते रहे हैं. सावन में विशेष व्यवस्था की जाती है और बड़ी संख्या में भक्त जलाभिषेक करते हैं. इस संबंध में मदन मोहन पांडेय बताते हैं कि बुढ़वा महादेव मंदिर का इतिहास काफी प्राचीन है. यहां लोगों की आस्था अपार है. सावन में भक्तों की भीड़ उमड़ती है. इस वर्ष यहां विशेष रुद्राभिषेक का आयोजन किया जा रहा है, जिसके लिए बनारस से पंडितों को आमंत्रित किया गया है. श्री पांडेय ने बताया कि यह मंदिर धार्मिक आस्था का प्रमुख केंद्र है. यह क्षेत्र कभी नागपूजकों का रहा है. शिव मृत्युंजय कहलाते हैं क्योंकि वे मृत्यु पर विजय प्राप्त करते हैं. चंद्रमा उनके मस्तक पर अमृत का प्रतीक हैं. वेदों में शिव को अग्नि का रूप कहा गया है. शिव का स्वरूप विष और अमृत का योग माना जाता है. गंगा उनके जटाजूट से प्रवाहित होती है, जो प्राण की शाश्वत धारा है. शिव में प्राचीन मुनियों की परंपरा भी समाहित है. वे योगेश्वर हैं. दो रूपों में उनकी व्याख्या होती है एक स्थिर (स्थानु) और दूसरा नटराज, जो सृष्टि के लिए नृत्य करते हुए परिवर्तनशील हैं. ऋग्वेद में इंद्र को निरतु कहा गया है और पुराणों में शिव को नटराज. इंद्र और शिव में कई बातें समान हैं. इंद्र वाणी के परखी हैं, तो शिव संगीत के आचार्य. ऐसे देवाधिदेव महादेव लोहरदगा जनपद को अपने आशीर्वाद से सदैव पुष्ट करते रहें, यही प्रार्थना है.
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