लोहरदगा. जिला कृषि प्रधान जिला है, यहां के 80 प्रतिशत लोग खेती किसानी पर आश्रित है. लेकिन सिंचाई की सुविधा के अभाव में को किसान मॉनसून पर आश्रित रहते हैं. कभी अत्यधिक वृष्टि तो कभी अल्प वृष्टि की मार जिले के किसानों को झेलना पड़ता है. अगर मानसून सामान्य रहा, तो यहां के किसानों को खेती बाड़ी में अच्छा मुनाफा होता है. बावजूद इसके क्षेत्र के किसान इतना मेहनती है कि कृषि कार्य को अपना कर ही अपना जीविकोपार्जन करने में लगे रहते हैं. जिले में किसानों के लिए ना तो कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था है और सिंचाई की. बाजार की व्यवस्था का भी अभाव है, जिसके कारण किसानों को अपना उपज बेचने में परेशानी होती है. ग्रामीण इलाके के किसान अपनी उपज को सालों भर रखना और उचित मूल्य मिलने की फिराक में देसी तकनीक अपनाकर अपने उपज को बचाते हैं. निंगनी ऊपर टोली निवासी किसान सुगन साहू ने बताया कि वे कई वर्षों से उत्पादित प्याज को बचाने की फिराक में अपने पाटन घर में रखते हैं. इससे प्याज सालों भर सूखता नहीं है. प्याज खोदने के बाद पत्ता सहित चोटी बांधकर प्याज को पाटन घर के छत में रख दिया जाता है. इससे प्याज सालों भर रहता है. जबकि प्याज को बोरा या एक जगह इकट्ठा कर कर रखने में प्याज सड़ने लगता है. सुगन साहू ने बताया कि कोल्ड स्टोरेज के अभाव में देसी तकनीक को अपनाया गया और यह तकनीक आज के समय में कारगर है. प्याज का मूल्य जैसे ही बाजार में बढ़ता है, प्याज को बाजार में बेचते हैं. जिससे अच्छा खासा मुनाफा हो जाता है. सुगन साहू ने बताया कि सिर्फ वे ही इस तकनीक को नहीं अपनाते, बल्कि गांव के अधिकांश किसान इस तकनीक को अपनाकर अपने प्याज को सालों भर सड़ने से बचा कर रखते हैं और बाजार में कीमत बढ़ने के बाद बेचते हैं. सुगन साहू ने बताया कि प्याज के अलावा किसान आलू, लहसुन तथा महुआ को इसी तरह रखकर सालों भर बेचते हैं. सुगन साहू ने बताया कि सुगमता के साथ कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था हो जाये, तो किसानों को इस देसी तकनीक को अपनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. हालांकि इस देसी तकनीक भी ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के लिए कारगर साबित होता है. क्योंकि उत्पादित सामान अपने घर में रहता है और इसके लिए किसी तरह का टैक्स या पैसा देने की जरूरत किसानों को नहीं पड़ता है.
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