लोहरदगा़ जिले के अति नक्सल प्रभावित पेशरार प्रखंड में बरसात के मौसम में प्रकृति का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है. कभी भय और हिंसा के लिए जाना जाने वाला यह क्षेत्र अब विकास और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है. एक समय था जब यहां उग्रवादियों की गोलियों की तड़तड़ाहट सुनायी देती थी और पुलिस भी जाने से डरती थी. लेकिन आज हालात पूरी तरह बदल चुके हैं. प्रखंड की लगभग 31 हजार की आबादी अब केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ उठा रही है. ग्रामीण शिक्षा, आवास, बिजली, सड़क, पेयजल, कृषि यंत्र, शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाओं के जरिये आत्मनिर्भर बन रहे हैं. जिला और पुलिस प्रशासन की सक्रियता ने विकास को धरातल पर उतारा है. लावापानी जलप्रपात और केकरांग झरना जैसे प्राकृतिक स्थल अब पर्यटकों को आकर्षित कर रहे हैं. पेशरार की हसीन वादियों में लोग बेझिझक घूमने आने लगे हैं. विकास की रफ्तार को कुछ समस्याएं अब भी बाधित कर रही : पेशरार से होकर गुजरने वाली उबड़-खाबड़ सड़कें अब पक्की हो चुकी हैं. बैंक, थाना और प्रखंड कार्यालय की स्थापना से लोगों को बुनियादी सेवाएं सुलभ हुई हैं. हालांकि, विकास की रफ्तार को कुछ समस्याएं अब भी बाधित कर रही हैं. प्रखंड और अंचल कार्यालयों में अधिकारी नियमित रूप से नहीं रहते, जिससे जनता को परेशानी होती है. स्वास्थ्य विभाग की अनदेखी के कारण चिकित्सा सेवाएं बेहद कमजोर हैं. सबसे गंभीर स्थिति जनवितरण प्रणाली की है. कई दुकानों में गड़बड़ी की शिकायतें हैं, लेकिन निगरानी करने वाला कोई नहीं है. नाशपाती की खेती का प्रयास असफल : पेशरार प्रखंड में तुईमू और हेसाग पंचायत क्षेत्र में नाशपाती की खेती का प्रयास किया गया था, लेकिन यह प्रयोग असफल रहा. इसके बावजूद क्षेत्र के लोग खेती, पशुपालन और अन्य सरकारी योजनाओं के माध्यम से स्वावलंबन की ओर बढ़ रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि यदि जिला प्रशासन ध्यान दे और नियमित निगरानी हो, तो पेशरार को आदर्श प्रखंड बनाया जा सकता है. वर्तमान में यह क्षेत्र नक्सलवाद से मुक्त होकर विकासशील भविष्य की ओर अग्रसर है.
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