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सीसीएल के छलावे का दंश झेल रहे हैं विस्थापित ग्रामीण

सीसीएल के छलावे का दंश झेल रहे हैं विस्थापित ग्रामीण

उरीमारी उरीमारी के विस्थापित समिति कार्यालय में प्रभात खबर आपके द्वार कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में लोगों ने कोयलांचल व ग्रामीण क्षेत्र की समस्याओं को रखा. लोगों ने कहा कि उरीमारी परियोजना 1989 में शुरू हुई थी. इसके बाद परियोजना का विस्तारीकरण हुआ. सीसीएल ने विस्थापितों को हेसाबेड़ा बस्ती में बसाने का काम किया, लेकिन आज तक पर्याप्त मूलभूल सुविधा नहीं मिली है. लोग सुविधाओं के अभाव में बदतर स्थिति में है. परियोजना शुरू हुए 35 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन आज तक सभी लोगों को नौकरी, मुआवजा व पुनर्वास की सुविधा नहीं मिली है. प्रबंधन ने आरएंडआर पॉलिसी के तहत विकास कार्य कराने का वादा किया था. विस्थापितों को आज तक विस्थापित प्रमाण पत्र भी नहीं मिला. लोग प्रमाण पत्र के लिए आज भी आस लगाये बैठे हैं. आश्वासन देकर काम निकालता रहा है प्रबंधन : दसई विस्थापित समिति के नेता दसई मांझी ने कहा कि विस्थापितों की समस्या को प्रबंधन के समक्ष कई बार उठाया गया, लेकिन प्रबंधन हमेशा आश्वासन देकर अपना काम निकालता आया है. पूर्व में उरीमारी परियोजना से हुए विस्थापितों को अब तक पुनर्वास नहीं मिला है. नौकरी के लंबित मामलों का निष्पादन नहीं हो रहा है. नॉर्थ उरीमारी साइडिंग खुलवाने के लिए प्रबंधन ने रोजगार का प्रलोभन दिया. साइडिंग खुली, लेकिन लोगों को रोजगार नहीं मिला. नहीं मिली नौकरी : दिनेश विस्थापित नेता दिनेश करमाली ने कहा कि उरीमारी व हेसाबेड़ा बस्ती को प्रबंधन ने आज तक आरएंडआर के तहत सुविधाएं नहीं दी है. जिनकी जमीन गयी है, उन्हें नौकरी नहीं मिली है. पेंडिंग मामलों को अब तक लटका कर रखा गया है. प्रबंधन केवल कोयला निकालने पर ध्यान दे रहा है. विस्थापितों की ओर उसका ध्यान नहीं है. हमें केवल छला जा रहा है : कार्तिक : कार्तिक मांझी ने कहा कि प्रबंधन ने हमलोगों के साथ छल किया है. हम अपनी जमीन देकर घर से बेघर हो गये हैं. क्षेत्र में आउटसोर्सिंग कंपनियों के आने के बाद भी लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा है. लोग पलायन कर रहे हैं. विस्थापितों को बिजली, पानी, सड़क की समस्या से जूझना पड़ रहा है. झेल रहे हैं प्रदूषण का दंश : सुरेश सुरेश मुर्मू ने कहा कि मुरगा टोला व जोजो टोला के ग्रामीणों ने सीएचपी साइलो निर्माण में अपनी जमीन दी है. बदले में प्रबंधन ने हमें साइलो के बगल में ही बसा दिया, लेकिन यहां रहना काफी मुश्किल है. प्रदूषण से जीना मुहाल हो गया है. जोजो टोला व मुरगा टोला में अभी तक बिजली, सड़क व पानी की व्यवस्था नहीं मिली है. मापी के बाद भी नहीं मिल रहा मुआवजा : सुखु. सुखु मांझी ने कहा कि साइलो सीएचपी के अगल-बगल के घरों की मापी प्रबंधन ने की है. लेकिन मुआवजे का भुगतान नहीं किया गया है. इस कारण अभी तक हमलोग इसी जगह पर रह रहे हैं. बार-बार मुआवजा की गुहार लगायी जा रही है, लेकिन प्रबंधन का रवैया सकारात्मक नहीं है. पुनर्वास व मुआवजा नहीं मिला : तालो. उरीमारी बस्ती निवासी तालो हांसदा ने कहा कि 2003 में बिरसा परियोजना से 52 घर विस्थापित हुए थे. प्रबंधन ने सभी लोगों को भरोसा दिया था कि विस्थापित परिवारों को पुनर्वास, मुआवजा व विस्थापित प्रमाण पत्र दिया जायेगा, लेकिन प्रबंधन ने कुछ भी नहीं दिया. आंदोलन के बाद भी प्रबंधन की ओर से केवल आश्वासन ही मिलता है. क्षेत्र में नहीं है कोई अस्पताल : शिकारी. शिकारी टुडू ने कहा कि क्षेत्र में तीन बड़ी कोयला कंपनियां काम कर रही हैं, लेकिन स्वास्थ्य के मामले में क्षेत्र में सुविधाएं नदारद हैं. कोई अस्पताल नहीं हैं. जबकि क्षेत्र की कोलियरियों में करीब दो हजार वर्कर व 20 हजार विस्थापित ग्रामीण हैं. लोगों को इलाज के लिए हजारीबाग या रांची जाना पड़ता है. दुर्घटना की स्थिति में जान बचना मुश्किल हो जाता है. नहीं मिल रहा रोजी-रोटी का साधन : जुगल. जुगल करमाली ने कहा कि हमलोगों ने बड़ी उम्मीद से जमीन दी थी. भरोसा था कि नॉर्थ उरीमारी साइडिंग खुलने से हमलोगों को रोजी-रोटी का जरिया मिलेगा, लेकिन हालत यह है कि लोगों को रोजगार के लिए बाहर जाना पड़ रहा है. आउटसोर्सिंग कंपनियों में बाहरी लोगों को रखा जाता है. कोई देखने-सुनने वाला नहीं है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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