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चार गांव के विस्थापितों ने रोका बलकुदरा छाई डैम का काम, आश्वासन के बाद लौटे

चार गांव के विस्थापितों ने रोका बलकुदरा छाई डैम का काम, आश्वासन के बाद लौटे

..आज डीसी कार्यालय में त्रिपक्षीय वार्ता के बाद लिया जायेगा फैसला

.10 दिन से पुलिस की निगरानी में हो रहा है पीवीयूएनएल का काम.

भुरकुंडा. पतरातू के बलकुदरा में 10 दिन से चल रहे छाई डैम की चहारदीवारी का काम शुक्रवार को विस्थापितों ने रोक दिया. छाई डैम के विस्थापित चार गांव के हजारों लोग शुक्रवार को एकजुट होकर निर्माण स्थल पहुंचे. उनके साथ भाजपा विधायक रोशनलाल चौधरी व झामुमो के हजारीबाग जिलाध्यक्ष संजीव बेदिया भी थे. हालांकि, पुलिस ने विस्थापितों की भीड़ निर्माण स्थल से थोड़ी दूर पहले ही बैरिकेडिंग कर रोक दी. मौके पर एसडीओ अनुराग तिवारी ने विस्थापित ग्रामीणों को समझाने का प्रयास किया, लेकिन विस्थापित काम बंद कराने की मांग पर अड़े रहे. एसडीओ ने डीसी से बात की. डीसी ने मामले की गंभीरता को समझते हुए तत्काल काम बंद रखने का आदेश देते हुए कहा कि इस मामले पर शनिवार को डीसी कार्यालय में त्रिपक्षीय वार्ता के बाद फैसला लिया जायेगा. एसडीओ के माध्यम से डीसी के इस आश्वासन के बाद विस्थापितों ने सात सूत्री मांग पत्र एसडीओ को सौंपा. इसके बाद वह लोग कार्यस्थल से लौट गये. इससे पूर्व, विस्थापितों ने अंबाटांड़ में बैठक की. बैठक में विस्थापितों ने विधायक रोशनलाल चौधरी व झामुमो नेता संजीव बेदिया को विशेष रूप से आमंत्रित किया था. बैठक में विस्थापितों की समस्या जानने के बाद पक्ष-विपक्ष के दोनों नेता ग्रामीणों के साथ पीवीयूएनएल का काम रुकवाने पहुंचे थे. मालूम हो कि यह काम आठ जुलाई से पुलिस की निगरानी के साथ शुरू किया गया था. काम शुरू होने के बाद से ही ग्रामीण इसका विरोध कर रहे थे. मौके पर जिप सदस्य राजाराम प्रजापति, मुखिया विजय मुंडा, हीरा देवी, लालू महतो, गौरव पटेल, उदय अग्रवाल, आदित्य नारायण प्रसाद, राजाराम प्रसाद, झरी मुंडा, कमलेश सिंह, अब्दुल कलाम अंसारी, बैजनाथ साव, अंकित साव, अमन साव, सुरेश मुंडा, अरुण कुमार, नागेश्वर मुंडा, भरत साव मौजूद थे. दूसरी ओर, आंदोलन को देखते हुए दंडाधिकारी निशा कुमारी, दीपक कुमार, रमेश मरांडी, अंबिका, बीडीओ मनोज गुप्ता,सत्येंद्र कुमार मौजूद थे.

पांच दशक पुराना है विवाद : बलकुदरा छाई डैम का विवाद करीब पांच दशक पुराना है. पीटीपीएस ने छाई डैम के लिए 1972-73 में जमीन अधिग्रहण किया था. इसमें रैयती, जीएम खास व जीएम आम तीनों तरह की जमीन मिलाकर करीब 464 एकड़ जमीन ली गयी थी. अधिग्रहण के 13-14 साल के बाद जमीन का पैसा अधिग्रहण के समय के रेट से आवंटित किया गया. इसमें गैरमजरुआ खास का कोई मुआवजा शामिल नहीं था. जमीन के बदले नौकरी भी नहीं दी गयी. इसके कारण यह मुआवजा ग्रामीणों ने स्वीकार नहीं किया. तब 1991 में सरकार के ट्रेजरी में यह पैसा जमा कर दिया गया, लेकिन ग्रामीणों ने जमीन पर अपना कब्जा बनाये रखा. जोत-कोड़ जारी रखा. ग्रामीणों के विरोध के बावजूद 1996 में जमीन पीटीपीएस को हस्तांतरित कर दिया गया. ग्रामीण इसका विरोध करते रहे. 2018 तक जमीन का लगान भी भरा. 2018 में जमीन का दाखिल-खारिज कर दिया गया. इसके बाद बाद ग्रामीणों का लगान स्वीकार नहीं किया जाने लगा. इसके बाद भी ग्रामीणों ने जमीन पर अपना कब्जा जारी रखा. वर्तमान घेराबंदी से पूर्व तक ग्रामीण अपनी क्षमता के अनुरूप जमीन पर खेती कर रहे थे.10 दिन पूर्व पुलिस की तैनाती में घेराबंदी का काम शुरू कर दिया गया. इसमें सबसे ज्यादा 192.9 एकड़ बलकुदरा गांव की है. रसदा की 47, जयनगर की 32 व गेगदा की 15 एकड़ गैरमजरुआ जमीन है. रसदा की सौ एकड़ गैरमजरुआ खास व जयनगर की 61 एकड़ गैरमजरुआ खास जमीन है. ग्रामीण 2013 के जमीन अधिग्रहण कानून के तहत सुविधाएं मांग रहे हैं.

पूर्व से अधिग्रहित जमीन पर हो रहा निर्माण : पीवीयूएनएल.

पीवीयूएनएल के अपर महाप्रबंधक जियाउल रहमान ने कहा कि चहारदीवारी का निर्माण पूर्व से अधिग्रहित जमीन पर हो रहा है. हमें नहीं पता कि ग्रामीण क्यों इसका विरोध कर रहे हैं. इस मामले में जिला प्रशासन से जानकारी ली जा सकती है.

जमीन पहले से अधिग्रहित है : एसडीओ : एसडीओ अनुराग तिवारी ने कहा कि चहारदीवारी कार्य का ग्रामीण विरोध कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि जमीन पहले ही अधिग्रहित हो चुकी है. ग्रामीणों को समझाने की कोशिश की गयी है. फिलहाल निर्माण कार्य स्थगित कर दिया गया है. शनिवार को उपायुक्त की अध्यक्षता में विस्थापितों, प्रशासन व प्रबंधन के बीच वार्ता होगी.

यह विस्थापितों के अधिकार से जुड़ा मामला है : संजीव बेदिया.

संजीव बेदिया ने कहा कि यह मामला कोई राजनीतिक लड़ाई नहीं, बल्कि विस्थापितों के हक व अधिकार की लड़ाई है. सरकार को इनकी मांगों को संवैधानिक तरीके से पूरा करना चाहिए. उन्होंने कहा कि विस्थापित के मुद्दे पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन गंभीर हैं. विस्थापितों को उनका अधिकार दिलाने का प्रयास किया जा रहा है. मामले में मुख्यमंत्री से भी बात हुई है.

ग्रामीणों के संघर्ष में साथ हूं : विधायक.

विधायक रोशनलाल चौधरी ने कहा कि विधानसभा के सत्र में हमेशा विस्थापन का मुद्दा उठाते रहे हैं. ग्रामीणों के संघर्ष में हम साथ हैं. क्षेत्र के विस्थापितों का आंदोलन लंबे समय से जारी है. सरकार को इसपर संज्ञान लेना चाहिए. राजनीति से ऊपर उठकर हमारा संघर्ष जारी रहेगा.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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