.10 दिन से पुलिस की निगरानी में हो रहा है पीवीयूएनएल का काम.
पांच दशक पुराना है विवाद : बलकुदरा छाई डैम का विवाद करीब पांच दशक पुराना है. पीटीपीएस ने छाई डैम के लिए 1972-73 में जमीन अधिग्रहण किया था. इसमें रैयती, जीएम खास व जीएम आम तीनों तरह की जमीन मिलाकर करीब 464 एकड़ जमीन ली गयी थी. अधिग्रहण के 13-14 साल के बाद जमीन का पैसा अधिग्रहण के समय के रेट से आवंटित किया गया. इसमें गैरमजरुआ खास का कोई मुआवजा शामिल नहीं था. जमीन के बदले नौकरी भी नहीं दी गयी. इसके कारण यह मुआवजा ग्रामीणों ने स्वीकार नहीं किया. तब 1991 में सरकार के ट्रेजरी में यह पैसा जमा कर दिया गया, लेकिन ग्रामीणों ने जमीन पर अपना कब्जा बनाये रखा. जोत-कोड़ जारी रखा. ग्रामीणों के विरोध के बावजूद 1996 में जमीन पीटीपीएस को हस्तांतरित कर दिया गया. ग्रामीण इसका विरोध करते रहे. 2018 तक जमीन का लगान भी भरा. 2018 में जमीन का दाखिल-खारिज कर दिया गया. इसके बाद बाद ग्रामीणों का लगान स्वीकार नहीं किया जाने लगा. इसके बाद भी ग्रामीणों ने जमीन पर अपना कब्जा जारी रखा. वर्तमान घेराबंदी से पूर्व तक ग्रामीण अपनी क्षमता के अनुरूप जमीन पर खेती कर रहे थे.10 दिन पूर्व पुलिस की तैनाती में घेराबंदी का काम शुरू कर दिया गया. इसमें सबसे ज्यादा 192.9 एकड़ बलकुदरा गांव की है. रसदा की 47, जयनगर की 32 व गेगदा की 15 एकड़ गैरमजरुआ जमीन है. रसदा की सौ एकड़ गैरमजरुआ खास व जयनगर की 61 एकड़ गैरमजरुआ खास जमीन है. ग्रामीण 2013 के जमीन अधिग्रहण कानून के तहत सुविधाएं मांग रहे हैं.
पूर्व से अधिग्रहित जमीन पर हो रहा निर्माण : पीवीयूएनएल.
पीवीयूएनएल के अपर महाप्रबंधक जियाउल रहमान ने कहा कि चहारदीवारी का निर्माण पूर्व से अधिग्रहित जमीन पर हो रहा है. हमें नहीं पता कि ग्रामीण क्यों इसका विरोध कर रहे हैं. इस मामले में जिला प्रशासन से जानकारी ली जा सकती है.
जमीन पहले से अधिग्रहित है : एसडीओ : एसडीओ अनुराग तिवारी ने कहा कि चहारदीवारी कार्य का ग्रामीण विरोध कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि जमीन पहले ही अधिग्रहित हो चुकी है. ग्रामीणों को समझाने की कोशिश की गयी है. फिलहाल निर्माण कार्य स्थगित कर दिया गया है. शनिवार को उपायुक्त की अध्यक्षता में विस्थापितों, प्रशासन व प्रबंधन के बीच वार्ता होगी.यह विस्थापितों के अधिकार से जुड़ा मामला है : संजीव बेदिया.
संजीव बेदिया ने कहा कि यह मामला कोई राजनीतिक लड़ाई नहीं, बल्कि विस्थापितों के हक व अधिकार की लड़ाई है. सरकार को इनकी मांगों को संवैधानिक तरीके से पूरा करना चाहिए. उन्होंने कहा कि विस्थापित के मुद्दे पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन गंभीर हैं. विस्थापितों को उनका अधिकार दिलाने का प्रयास किया जा रहा है. मामले में मुख्यमंत्री से भी बात हुई है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है