श्रावणी मेला. गाजेश्वरनाथ धाम में 11 से लगेगा बोलबम के जयकारे, कमेटी ने पूरी की तैयारी
नागराज साह, बरहेटजिले के बरहेट प्रखंड में सुरम्य प्राकृतिक वादियों के बीच भगवान विश्वकर्मा द्वारा स्थापित प्रसिद्ध पौराणिक मंदिर बाबा गाजेश्वरनाथ धाम अवस्थित है. प्राकृतिक ने यहां अपने दोनों हाथों से उपहार बांटे हैं. इस मंदिर में सावन व महाशिवरात्रि में झारखंड, बंगाल और बिहार के श्रद्धालु भारी भीड़ उमड़ती है. श्रद्धालु इन्हें बाबा गाजेश्वरनाथ धाम से पुकारते हैं. बाबा गाजेश्वरनाथ धाम को मिनी बाबा धाम, शिवगादी, पहाड़ी बाबा आदि नामों से भी जाना जाता है. यह एक दर्शनीय, पौराणिक और पूजनीय मंदिर है, जो प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण राजमहल की पहाड़ियों के मनोरम दृश्य व झर-झर गिरते झरने की नैसर्गिक सौंदर्य के बीचों-बीच गुफा में स्थित है. मानचित्र में मंदिर झारखंड राज्य के साहिबगंज जिला अंतर्गत बरहेट प्रखंड से 6 किलोमीटर उत्तर की ओर अवस्थित हैं. यह मंदिर 500 फीट पहाड़ी की ऊंचाई पर स्थित है. अतः श्रद्धालुओं को 195 सीढ़ियों की चढ़ाई के पश्चात बाबा गाजेश्वरनाथ का दर्शन होता है. गुफा में अवस्थित बाबा के प्राकृतिक पीतांबरी शिवलिंग पर ऊपरी चट्टानों से अनवरत जल टपकती रहती हैं, जो अद्भुत एवं अनुपम है. यहां सालों भर पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है. बाबा गाजेश्वरनाथ धाम में सोमवार को विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है. 11 जुलाई से शुरू हो रहे श्रावणी मेले को देखते हुए कमेटी ने भी तैयारी पूरी कर ली है. मंदिर के आसपास के धर्मशाला की साफ-सफाई की गयी है. भक्तों को जलार्पण के लिए प्रवेश द्वार के पास बैरिकेडिंग कर दी गयी है. भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं बाबा गाजेश्वरनाथबाबा गाजेश्वरनाथ का आकर्षक एवं मनोरम गर्भ गृह राजमहल की पहाड़ियों में प्रवेश द्वार के बिल्कुल ऊपर पर्वतराज की तरह खड़ा है. इस गृह गुफा के प्रवेश द्वार के ऊपर विद्यमान विशाल अक्षय वट वृक्ष की जड़ें अध्यात्म रूप से जुड़ी है. यह अक्षय वट वृक्ष भारतवर्ष में बोधगया के बाद यहां पाये गये हैं. वट वृक्ष के जड़ें प्रवेश द्वार के बाई और मंदिर सतह तक फैली है. जिसे देखने से ऐसा लगता है कि मानो भगवान भोलेनाथ की जटाएं जड़ी हो. लहलहा रही है. यह वृक्ष मनोकामना कल्पतरु के नाम से प्रसिद्ध है. ऐसी मान्यता है कि इस कल्पतरु के जड़ में पत्थर बांधने से बाबा गाजेश्वर नाथ भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं. इसके ठीक बगल में झर-झर गिरते हुए झरने भगवान शंकर के जटाओं से अविरल बहते हुए गंगा की धारा का अहसास दिलाते हैं. इस जल से स्नान करने पर शरीर की सारी थकान मिट जाती है, जब भी भक्तगण यहां दर्शन के लिए आते हैं तो शिवगादी बाबाधाम मंदिर की पवित्र गुफा में प्रवेश करने से पहले इस झरने की धारा उन्हें पवित्र कर देती है. गर्भ गृह में भक्तों को बाबा गाजेश्वरनाथ महादेव के पीतांबरी शिवलिंग के दर्शन होते हैं. शिवलिंग के ठीक ऊपर की चट्टानों से सालभर बूंद-बूंद कर जल की बूंदें टपकती रहती है. ऐसा प्रतीत होता है कि प्राकृतिक स्वयं ही निरंतर भगवान शंकर का जलाभिषेक कराती रहती है. शिवलिंग के बाएं और गुफा के अंदर एक और गुफा है. ऐसा कहा जाता है कि इस गुफा मार्ग से प्राचीन समय में ऋषिगण उत्तर वाहिनी गंगा राजमहल से जल लाकर बाबा का जलाभिषेक एवं पूजार्चना किया करते थे. वर्तमान समय में इस गुफा के मुख को बंद कर दिया गया है. मंदिर के बाहर दाएं और एक दूसरी सीढी नंदी के पद चिन्हों जाकर मिलते हुए दर्शन करते हैं. इसे शिवगंगा भी कहा जाता है. यहां एक चट्टान पर नंदी बैल के दो पैरों के निशान है. नदी के खुर रूपी पैरों से सालों भर यहां तक की चिलचिलाती गर्मी में भी पानी भरा रहता है. जो शिवगंगा के नाम से दर्शन एवं पूजा-अर्चना करते करते हैं. बाबा भोलेनाथ पीतांबरी शिवलिंग के ठीक सामने माता पार्वती के दोनों पुत्र भगवान गणेश और कार्तिकेय की मूर्ति स्थापित है. प्राचीन समय में इस मंदिर तक जाने का रास्ता दुर्गम एवं कठिन था. इसी दुर्गम पहाड़ियों में आदिवासी द्वारा बाबा पूजित होते रहे और उन्होंने इस मंदिर का नाम शिवगादी अर्थात शिव का घर रखा. सावन माह में श्रद्धालु पश्चिम बंगाल फरक्का गंगा नदी, राजमहल गंगा नदी से जल भरकर शिवगादी जलार्पण करने पहुंचते हैं.
कहां से कितनी दूरी
बरहरवा जंक्शन- 25 किमीसाहिबगंज से – 50 किमीपाकुड़ से – 50 किमीगोड्डा से – 60 किमीदुमका से -100 किमीदेवघर से – 160 किमीडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है