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साहिबगंज रेल विकास आंदोलन के 31 वर्ष, आज भी याद कर सिहर उठते हैं आंदोलनकारी

घटना के बाद शहर में उग्र प्रदर्शन हुए

साहिबगंज. 27 जुलाई को साहिबगंज रेल विकास आंदोलन को 31 वर्ष पूरे हो जाएंगे. यह आंदोलन साहिबगंज को रेलवे डिवीजन का दर्जा दिलाने की मांग को लेकर हुआ था, लेकिन जानकारों के अनुसार इससे क्षेत्र को कोई विशेष लाभ नहीं मिला. उल्टे कई महत्वपूर्ण रेल सुविधाएं समाप्त कर दी गयीं और कई ट्रेनें बंद कर दी गयी. इस आंदोलन की शुरुआत उस समय हुई जब 1984 में तत्कालीन रेल मंत्री ने साहिबगंज की उपेक्षा कर अपने गृह क्षेत्र मालदा को रेल डिवीजन बना दिया. इसके बाद 1992 में साहिबगंज का रेलवे लोको हटाया गया, जिससे जनता आक्रोशित हो उठी. लोगों ने साहिबगंज की रेलवे गरिमा की पुनर्स्थापना के लिए व्यापक आंदोलन की योजना बनायी. 27 जुलाई 1994 को हजारों लोगों ने साहिबगंज स्टेशन पर जुटकर ट्रेनों का संचालन ठप कर दिया, जिसमें ब्रह्मपुत्र मेल सहित कई ट्रेनें शामिल थीं. आंदोलन की निगरानी रेलवे बोर्ड दिल्ली, मालदा डिवीजन और कोलकाता ज़ोन से की जा रही थी. आंदोलनकारियों को आश्वासन भी दिया गया कि उनकी मांगों पर विचार होगा, और आंदोलन को शांतिपूर्ण रूप से समाप्त करने की घोषणा की गयी. लेकिन इसी दौरान एक अप्रत्याशित भगदड़ मच गयी और माहौल तनावपूर्ण हो गया. स्थिति नियंत्रित करने के लिए रेल पुलिस ने गोलीबारी की, जिसमें पुरानी साहिबगंज निवासी निर्दोष शंभू स्वर्णकार की मौत हो गयी. उनकी मौत का सदमा आज भी उनके परिजनों के दिल में जिंदा है. इस घटना के बाद शहर में उग्र प्रदर्शन हुए. नगर थाना के तत्कालीन चालक हवलदार उमेश साह ने सभी आंदोलनकारियों पर पुलिस जीप जलाने का आरोप लगाया था. इस मामले में जीप चालक हवलदार उमेश साह ने पूर्व विधायक ध्रुव भगत, अधिवक्ता अजय कुमार वर्मा, विजय कर्ण, ललित स्वदेशी, रामानंद साह, प्रो नसीर अहमद अंसारी, प्रो रघुनंदन राम समेत 27 लोगों को आरोपी बनाया गया था. बाद में इसको लेकर न्यायालय में काफी लंबे समय तक मुकदमा चला, जिसमें साक्ष्य के अभाव में पहले न्यायालय ने ललित स्वदेशी, प्रो रघुनंदन राम, प्रो नसीर अहमद अंसारी को रिहा किया गया, जबकि शेष बचे अजय वर्मा, विजय कर्ण, ध्रुव भगत, रामानंद साह सहित सभी 24 आरोपियों को जिला व सत्र न्यायाधीश ने 7 दिसंबर 2017 को साक्ष्य के अभाव में रिहा कर दिया था. क्या कहते हैं आंदोलन का नेतृत्व करने वाले पूर्व विधायक ध्रुव भगत : 27 जुलाई 1994 को साहिबगंज में हुए रेल विकास आंदोलन का नेतृत्व करने वाले पूर्व भाजपा विधायक ध्रुव भगत आज भी उस क्षण को मलाल से याद करते हैं, जब रेलवे अधिकारियों से मिली सहमति के बाद भी आंदोलन अचानक विफल हो गया. उन्होंने आरोप लगाया कि यह एक पूर्व नियोजित साजिश थी, जिससे साहिबगंज को रेलवे विकास से वंचित रखा गया. आंदोलन के दौरान शंभू स्वर्णकार जैसे निर्दोष युवक की शहादत भी व्यर्थ चली गयी. आज भी साहिबगंज से सीधे दिल्ली जाने वाली एक भी ट्रेन नहीं है, जबकि कभी चर्चित रही अपर इंडिया एक्सप्रेस को भी बंद कर दिया गया. उन्होंने गोड्डा का उदाहरण देते हुए कहा कि जो कभी रेलवे मानचित्र में नहीं था, वह आज साहिबगंज से कई गुना अधिक विकसित हो चुका है और वहां से तीन गुनी अधिक ट्रेनें चल रही हैं. उन्होंने अफसोस जताया कि अगर साजिश नहीं होती, तो साहिबगंज का रेलवे विकास आज अलग ही होता.

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