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अमर शहीद तेलंगा खड़िया शहादत दिवस पर किए गए याद, समाज को एकजुट कर अंग्रेजों के खिलाफ किया था विद्रोह

Telanga Kharia Martyrdom Day: अमर शहीद तेलंगा खड़िया को आज उनके शहादत दिवस पर याद किया गया. सिमडेगा जिले के कोलेबिरा प्रखंड क्षेत्र के लचरागढ़ प्रिंस चौक पर लोगों ने तेलंगा खड़िया की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें नमन किया. ब्रिटिश शासन के दौरान तेलंगा खड़िया ने समाज को एकजुट कर अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया था.

Telanga Kharia Martyrdom Day: बानो (सिमडेगा), धर्मवीर-सिमडेगा जिले के कोलेबिरा प्रखंड क्षेत्र के लचरागढ़ प्रिंस चौक पर तेलंगा खड़िया की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उनका शहादत दिवस मनाया गया. इस दौरान काफी संख्या में लोग उपस्थित थे. उनकी शहादत गाथा के जरिए शहादत दिवस पर उन्हें याद किया गया. तेलंगा खड़िया की स्मृति में आज सुबह 8 बजे पारंपरिक खड़िया विधि-विधान से खड़िया पाहन किशन पाहन, पालतू पुजार एवं हुकूम पाहन द्वारा पूजा की गयी. इसके बाद माल्यार्पण क्लेमेंट टेटे, जोसेफ सोरेन, संजय पॉल, क्रिकेटर एंथोनी बागवार, पुनीत कुल्लू, फभियान कुल्लू, फुलकारिया डांग, लक्ष्मण केरकेट्टा, कल्याण टेटे, सुनील बघवार, विजय बघवार, संजय टेटे के अलावा अन्य लोग उपस्थित थे.

ब्रिटिश हुकूमत का किया डटकर मुकाबला


तेलंगा खड़िया का जन्म 9 फरवरी 1806 को झारखंड के गुमला जिले के सिसई थाना क्षेत्र के मुर्गू गांव में एक खड़िया आदिवासी कृषक परिवार में हुआ था. स्वतंत्रता सेनानी तेलंगा खड़िया ने ब्रिटिश हुकूमत का डटकर मुकाबला किया था. उन्होंने संगठन बनाकर अपने समर्थकों को लाठी, तलवार, तीर, धनुष एवं गदा चलाना सिखाया. इनकी संख्या करीब 1500 से अधिक थी. इनके पिता ठुइया खड़िया, माता पेतो खड़िया, पत्नी रतनी खड़िया और पुत्र जोगिया खड़िया थे. खड़िया भाषा में वीर, साहसी और अधिक बोलने वाले को तेबलंगा कहते हैं. इसी से इनका नाम तेलंगा पड़ा. इनके दादा सिरू खड़िया और दादी बुच्ची खड़िया थीं.

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तेलंगा को सभा करने के दौरान अंग्रेजों ने पकड़ लिया


तेलंगा खड़िया ने अंग्रेजों, जमींदारों और अन्य अत्याचारियों से लड़ने के लिए संगठन बनाया और खड़िया समाज को संगठित कर अंग्रेजों के विरुद्ध 1849-50 में विद्रोह किया. इससे अंग्रेज डर गए और सतर्क हो गए. एक दिन जब तेलंगा खड़िया बसिया थाना के कुम्हारी गांव में सभा कर रहे थे तो अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ लिया और कोलकाता भेज दिया. वहां वह कई वर्षों तक जेल में रहे. 1859 में उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया.

बोधन सिंह ने मार दी थी गोली

23 अप्रैल 1880 में सिसई अखाड़े में सुबह जब उन्होंने प्रशिक्षण शुरू करने से पहले प्रार्थना के लिए सिर झुकाया तो निकट की झाड़ी में छिपे बोधन सिंह ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी. तेलंगा खड़िया के शिष्यों ने उनके शव को कोयल नदी पार कर गुमला के शोषण नेम टोली के एक टांड़ में दफना दिया था. आज यह स्थल तेलंगा तोपा टांड़ के नाम से जाना जाता है.

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Guru Swarup Mishra
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मैं गुरुस्वरूप मिश्रा. फिलवक्त डिजिटल मीडिया में कार्यरत. वर्ष 2008 से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से पत्रकारिता की शुरुआत. आकाशवाणी रांची में आकस्मिक समाचार वाचक रहा. प्रिंट मीडिया (हिन्दुस्तान और पंचायतनामा) में फील्ड रिपोर्टिंग की. दैनिक भास्कर के लिए फ्रीलांसिंग. पत्रकारिता में डेढ़ दशक से अधिक का अनुभव. रांची विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एमए. 2020 और 2022 में लाडली मीडिया अवार्ड.

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