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बेटे के सिर पर था मां का शव, पैरों में दर्द, आंखों में आंसू… और सामने बेरहम सिस्टम, पूरी कहानी पढ़ दहल जाएगा दिल!

Humanity Fails On Yamuna Bridge: यमुना पुल की मरम्मत के कारण वाहनों की आवाजाही रोकी गई. शव वाहन को भी प्रवेश नहीं मिला, जिससे बेटे को अपनी मां के शव को स्ट्रेचर पर रखकर एक किलोमीटर पैदल पुल पार करना पड़ा. इस दृश्य ने हर राहगीर को झकझोर कर रख दिया.

Humanity Fails On Yamuna Bridge: कानपुर-सागर हाईवे पर यमुना पुल की मरम्मत के चलते शनिवार सुबह छह बजे से वाहनों का आवागमन पूरी तरह रोक दिया गया. केवल पैदल यात्रियों को ही पुल पार करने की अनुमति दी गई. लेकिन इसी दौरान ऐसी तस्वीर सामने आई जिसने मानवता को शर्मसार कर दिया. जब एक बेटे को अपनी मां के शव को स्ट्रेचर पर रखकर एक किलोमीटर लंबा पुल पैदल पार करना पड़ा, क्योंकि प्रशासन ने शव वाहन को भी पुल पर चढ़ने की इजाजत नहीं दी.

मरम्मत के नाम पर हर शनिवार-रविवार बंद रहता पुल

यमुना पुल की मरम्मत का कार्य हर शनिवार और रविवार तय किया गया है. इसी क्रम में शनिवार सुबह छह बजे से पुल पर वाहनों की आवाजाही बंद कर दी गई. यह व्यवस्था पहले से लागू थी, लेकिन इसमें आपातकालीन और मानवीय मामलों के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई, जिसका खामियाजा एक बेटे को अपनी मां के शव के साथ भुगतना पड़ा.

शव वाहन रोका गया, गिड़गिड़ाए पर नहीं पसीजा प्रशासन

शनिवार सुबह करीब साढ़े नौ बजे एक शव वाहन कानपुर की ओर से हमीरपुर की ओर आ रहा था. वाहन में टेढ़ा गांव निवासी बिंदा की मां शिवदेवी का पार्थिव शरीर था, जिनका इलाज के दौरान निधन हो गया था. जब शव वाहन पुल पर पहुंचा तो वहां मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने उसे आगे बढ़ने नहीं दिया. स्वजन बार-बार विनती करते रहे, गिड़गिड़ाते रहे, लेकिन किसी ने कोई सुनवाई नहीं की.

बेटे ने उठाया मां का शव, चार बार रास्ते में रखा

आखिरकार मजबूरी में, शव वाहन के चालकों की मदद से बेटे ने अपनी मां के शव को स्ट्रेचर पर रखा और पैदल पुल पार करने लगा. लगभग एक किलोमीटर लंबे पुल को पार करते हुए वह बीच में चार बार रुका, शव को नीचे रखा और फिर दोबारा उठाया. हर बार जब उसने मां के शव को जमीन पर रखा, हर गुजरने वाले की आंखें नम हो गईं.

फ्रैक्चर के इलाज के दौरान हुई मौत

बिंदा ने बताया कि उसकी मां शिवदेवी का पैर कुछ दिन पहले फ्रैक्चर हो गया था, जिसके चलते उन्हें कानपुर के अस्पताल में भर्ती कराया गया था. इलाज के दौरान शनिवार सुबह उनका निधन हो गया. वह शव वाहन के जरिए उन्हें हमीरपुर होते हुए गांव वापस ला रहा था. लेकिन पुल पर लगी पाबंदी ने इस संवेदनशील क्षण को भी नहीं समझा.

पैदल पार कर शव को ऑटो में ले गया गांव

एक किलोमीटर की दर्दभरी यात्रा के बाद बेटे ने शव को फिर एक ऑटो में रखवाया और अपने गांव टेढ़ा के लिए रवाना हो गया. जो दृश्य देखने वालों ने देखा, वह किसी हादसे से कम नहीं था. लोगों की मानें तो जब शव जैसे मामलों में भी प्रशासन नरमी नहीं दिखाता, तब ऐसी व्यवस्था पर सवाल उठना स्वाभाविक है.

लोग बोले- प्रशासन संवेदनहीन, सिस्टम फेल

इस घटना ने हर उस शख्स को झकझोर कर रख दिया जो शनिवार को पुल पार कर रहा था. कई लोगों ने प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल उठाए. कुछ ने कहा कि पुल मरम्मत के नाम पर आमजन की परेशानियों को नजरअंदाज करना अमानवीय है. किसी ने यह भी कहा कि क्या एक शव वाहन को निकलने देने से पुल टूट जाता?

यह घटना न केवल सिस्टम की संवेदनहीनता को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि किस तरह मरम्मत कार्यों के नाम पर आम लोगों की बुनियादी सहानुभूति तक कुचल दी जाती है. जब एक मां की लाश को भी सम्मान से घर ले जाना प्रशासन के नियमों में फिट न बैठे, तो सोचिए व्यवस्था कितनी कठोर हो गई है.

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