Indoor Saffron Farming: इंदौर केसर को अब तक सिर्फ कश्मीर की पहाड़ियों तक सीमित माना जाता था, लेकिन मध्य प्रदेश के इंदौर में रहने वाले अनिल जायसवाल ने इस सोच को बदल दिया है. उन्होंने शहर की साईं कृपा कॉलोनी स्थित अपने घर में बिना मिट्टी, खेत या परंपरागत कृषि उपकरणों के केसर की खेती शुरू की, और वह भी घर की पहली मंजिल पर बने कमरे में. उनकी मेहनत और तकनीक के प्रति विश्वास का नतीजा यह रहा कि पहली ही फसल से उन्होंने करीब 8 लाख रुपये की कमाई कर ली. यह कहानी सिर्फ एक किसान की नहीं, बल्कि भारत में शहरी फार्मिंग और स्मार्ट खेती के बढ़ते कदमों की मिसाल बन चुकी है.
बिना मिट्टी, खेत और खुले वातावरण के केसर की खेती
अनिल जायसवाल ने अपने घर की एक पूरी मंजिल को हाईटेक एयरोपोनिक्स सिस्टम में बदला, जहां मिट्टी नहीं बल्कि नियंत्रित तापमान, नमी, कार्बन डाइऑक्साइड और प्रकाश का खास ख्याल रखा जाता है. इस सिस्टम में पौधों की जड़ें हवा में लटकी रहती हैं और जरूरी पोषक तत्वों वाला स्प्रे उन्हें समय-समय पर दिया जाता है. उन्होंने बताया कि यह तकनीक विदेशों में तो पहले से ही इस्तेमाल की जा रही है, लेकिन भारत में केसर जैसी संवेदनशील फसल के लिए यह एक अनूठा प्रयोग है. इस कमरे में रंग-बिरंगी एलईडी लाइटें, गायत्री मंत्र की ध्वनि, पक्षियों की चहचहाहट और एक शांत वातावरण के बीच केसर के फूल खिले.
15 लाख का शुरुआती निवेश, लेकिन उम्मीदों से दुगनी कमाई
अनिल ने इस हाईटेक सिस्टम को बनाने में करीब 6.5 लाख रुपये खर्च किए, जिसमें चिलर, ह्यूमिडिफायर, CO₂ कंट्रोलर और स्मार्ट लाइटिंग जैसी सुविधाएं शामिल थीं. इसके अलावा, कश्मीर के पंपोर इलाके से मंगाए गए केसर के 24 हजार बल्बों की कीमत लगभग 7–8 लाख रुपये रही. यानी कुल मिलाकर करीब 14 से 15 लाख रुपये का निवेश हुआ. हालांकि यह निवेश बड़ा लग सकता है, लेकिन पहली फसल में ही उन्हें करीब 8 लाख रुपये की आमदनी हुई, जिससे यह साबित हो गया कि यह फार्मिंग मॉडल न सिर्फ नया है, बल्कि लाभकारी भी है.
इंदौर में उगा कश्मीर का स्वाद, अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारी मांग
उनकी पहली फसल से 1.5 से 2 किलो केसर निकली, जिसे घरेलू बाजार में 4–5 लाख रुपये प्रति किलो और अंतरराष्ट्रीय बाजार में 8–9 लाख रुपये प्रति किलो के हिसाब से खरीदार मिले. खास बात यह रही कि यह केसर पूरी तरह से जैविक तरीके से उगाया गया था, जिसमें किसी रसायन या कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं हुआ. यही वजह है कि इसके स्वाद, रंग और सुगंध में कश्मीरी केसर जैसी ही गुणवत्ता देखी गई. अब तक जिन लोगों ने इसे इस्तेमाल किया है, वे इसकी गुणवत्ता से बेहद संतुष्ट हैं.

अब शहर में तैयार हो रहा ‘मिनी कश्मीर’, लोग ले रहे हैं ट्रेनिंग
केवल अपने लिए ही नहीं, अनिल जायसवाल अब इस तकनीक को आम लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं. वह अब तक 200 से ज्यादा लोगों को ट्रेनिंग दे चुके हैं और अन्य किसानों के लिए डेमो सेटअप भी तैयार कर रहे हैं. उनका सपना है कि इंदौर और आसपास के इलाकों में इस तकनीक को अपनाकर लोग घर की छत या कमरे में ही केसर और अन्य महंगी फसलें उगाएं. वह अब सुपर-मशरूम और अन्य औषधीय पौधों पर भी प्रयोग कर रहे हैं ताकि आने वाले समय में उनका फार्म “स्मार्ट हर्बल लैब” बन जाए.
बदलते भारत की नई कहानी – जहां शहर में उगती है खुशबूदार केसर
अनिल जायसवाल की कहानी उस नए भारत की तस्वीर है, जहां कृषि अब केवल गांवों की सीमा में नहीं रही, बल्कि तकनीक और नवाचार के साथ शहरों के कोनों में भी लाभ का जरिया बन रही है. जहां पहले केसर को उगाने के लिए कश्मीर की जलवायु जरूरी मानी जाती थी, वहीं आज इंदौर जैसे शहर में उसका सफल उत्पादन यह साबित करता है कि अगर सोच वैज्ञानिक हो और इरादा मजबूत, तो घर भी खेत बन सकता है.
अगर आप भी इस तरह की स्मार्ट फार्मिंग में रुचि रखते हैं, तो यह कहानी आपके लिए प्रेरणा बन सकती है. अनिल जायसवाल का कहना है, अगर हम सही तकनीक अपनाएं और पारंपरिक सोच से बाहर निकलें, तो खेती सिर्फ खेतों तक सीमित नहीं रह जाती, वह हर घर में समृद्धि का बीज बन सकती है.