Kunda Moharram House Arrest: प्रशासन ने मोहर्रम को लेकर सुरक्षा और कानून-व्यवस्था की दृष्टि से बड़ा कदम उठाया है. पूर्व कैबिनेट मंत्री राजा भैया के पिता राजा उदय प्रताप सिंह को शनिवार की सुबह 5 बजे से लेकर रविवार रात 9 बजे तक नजरबंद किया गया है. नजरबंदी की नोटिस लेकर अपराध निरीक्षक संजय सिंह भारी पुलिस बल के साथ भदरी कोठी पहुंचे और वहां नोटिस चस्पा की गई. इस दौरान राजा साहब खुद कोठी में मौजूद थे, लेकिन उन्होंने प्रशासनिक आदेशों का विरोध नहीं किया. प्रशासन ने इस कार्यवाही को पूरी तरह एहतियातन और संवेदनशील माहौल को नियंत्रण में रखने के उद्देश्य से बताया है.
इन 13 लोगों को किया गया नजरबंद
नजरबंद किए गए लोगों की सूची में राजा उदय प्रताप सिंह के अतिरिक्त कई प्रभावशाली स्थानीय समर्थक और सामाजिक रूप से सक्रिय व्यक्ति शामिल हैं. इनमें जितेंद्र यादव (नौबस्ता, हथिगवां), आनंदपाल (बढ़ईपुर, कुंडा), उमाकांत (शेखपुर, कुंडा), भवानी विश्वकर्मा (बदूपुर, कुंडा), रवि सिंह व हनुमान प्रसाद पांडेय (सुभाष नगर, कुंडा), केसरी नंदन (सरैया, प्रवेशपुर हथिगवां), जमुना प्रसाद (मियां का पुरवा, कुंडा), निर्भय सिंह (बेती, हथिगवां), गया प्रसाद प्रजापति (लोहारन का पुरवा), जुगनू विश्वकर्मा (गोपालगंज, शाहपुर हथिगवां), और मोहनलाल (पन्नालाल रोड, प्रयागराज) शामिल हैं. प्रशासन ने इन सभी के घरों पर पुलिस बल तैनात कर दिया है ताकि कोई भी व्यक्ति मोहर्रम के दौरान किसी कार्यक्रम या गतिविधि में शामिल न हो सके.
2012 में बंदर की हत्या बनी थी मोहर्रम विवाद की वजह
मोहर्रम के दौरान कुंडा के शेखपुरा गांव में 2012 में हुई एक विचित्र घटना ने सांप्रदायिक तनाव की नींव रख दी थी. कुछ लोगों ने मोहर्रम के दिन एक बंदर को गोली मार दी थी, जिससे हिंदू समुदाय में आक्रोश फैल गया. इसके विरोध में उसी दिन शेखपुर आशिक गांव के हनुमान मंदिर पर भजन-कीर्तन और हनुमान चालीसा का पाठ प्रारंभ हुआ. यही विरोध प्रदर्शन धीरे-धीरे हर वर्ष आयोजित होने वाली एक धार्मिक परंपरा में तब्दील हो गया, जिससे प्रशासनिक और साम्प्रदायिक चुनौती पैदा हो गई.
2015 से मोहर्रम पर भंडारे की परंपरा और प्रशासनिक टकराव
वर्ष 2015 में पहली बार मोहर्रम के दिन भंडारे का आयोजन बड़े स्तर पर हुआ, जिसकी अगुवाई खुद राजा उदय प्रताप सिंह ने की थी. उस वर्ष प्रशासन ने ताजिया जुलूस और भंडारे दोनों को अनुमति देकर उन्हें शांतिपूर्वक सम्पन्न करवाया. लेकिन 2016 आते-आते प्रशासन का रुख बदल गया और उसने भंडारे पर आपत्ति जताई. इसके विरोध में शेखपुर आशिक समेत करीब डेढ़ दर्जन गांवों ने मोहर्रम के दिन ताजिया उठाने से मना कर दिया. यह स्थानीय परंपरा और सरकारी नीति के बीच का पहला सीधा टकराव था, जो आज तक हर साल दोहराया जा रहा है.
हर साल दोहराई जाती है नजरबंदी की कार्रवाई
2016 के बाद से यह घटनाक्रम एक नियमित वार्षिक पैटर्न में बदल चुका है. मोहर्रम से पहले प्रशासन सक्रिय हो जाता है और राजा उदय प्रताप सिंह व उनके समर्थकों को नजरबंद कर देता है. यह कार्रवाई किसी अप्रिय स्थिति को टालने और सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए की जाती है. हालांकि इसे लेकर समर्थकों और स्थानीय लोगों में प्रशासन के प्रति नाराजगी भी देखी जाती है. इस बार भी उसी परंपरा को निभाते हुए 13 लोगों को नजरबंद किया गया है, ताकि क्षेत्र में शांति बनी रहे और मोहर्रम कार्यक्रम शांतिपूर्ण तरीके से सम्पन्न हो सके.