Up Crocodile attack News: उत्तर प्रदेश के आगरा जनपद के थाना खेडा राठौर अंतर्गत भगवानपुरा गांव में शनिवार सुबह 9 बजे दिल दहला देने वाली घटना सामने आई. गांव की 60 वर्षीय वृद्धा सिरोमनी देवी पत्नी रामप्रकाश अन्य महिला चरवाहों के साथ अपने पशुओं को पानी पिलाने के लिए चंबल नदी के किनारे गई थीं. सभी पशु नदी से पानी पी रहे थे, तभी अचानक एक मगरमच्छ ने पानी के पास खड़ी सिरोमनी पर हमला कर दिया और देखते ही देखते उसे नदी में खींच ले गया. यह दृश्य देख साथ की महिलाओं ने चीखना-चिल्लाना शुरू कर दिया.
ग्रामीणों ने शुरू की तलाश, मौके पर पहुंची पुलिस और वन विभाग की टीम
चरवाहों की चीख-पुकार सुनकर गांव के कई ग्रामीण मौके पर पहुंचे और बिना समय गंवाए महिला की तलाश में जुट गए. घटना की सूचना मिलते ही गांव के प्रधान बच्छराज सिंह ने पुलिस और वन विभाग को सूचना दी. थोड़ी देर में खेरागढ़ पुलिस और बाह वन रेंज की टीम मौके पर पहुंची. महिला की तलाश के लिए नदी में जाल डाले गए हैं और गोताखोरों को भी बुलाया गया है. नदी के चारों ओर सघन तलाशी अभियान चलाया जा रहा है, लेकिन खबर लिखे जाने तक महिला का कोई सुराग नहीं मिला है.
पहले भी हो चुके हैं हमले, फिर भी नहीं चेत रहे ग्रामीण
चंबल नदी में मगरमच्छ के हमले कोई नई बात नहीं है. कुछ समय पूर्व गौसिंली क्षेत्र में एक बकरी को मगरमच्छ ने नदी में खींच लिया था. इसी तरह कैंजराघाट पर नहाते वक्त गौसिंली और बिचोला गांव के युवक मगरमच्छ के हमले में घायल हो गए थे. वन विभाग द्वारा लगातार चेतावनियां दी जा रही हैं कि हैचिंग सीजन में मगरमच्छ आक्रामक हो जाते हैं, लेकिन ग्रामीण इन चेतावनियों को नजरअंदाज कर नदी किनारे जानवरों को पानी पिलाने और नहाने के लिए जाते हैं.
हैचिंग पीरियड में बेहद खतरनाक हो जाते हैं मगरमच्छ
बाह के रेंजर उदय प्रताप सिंह ने बताया कि वर्तमान में चंबल नदी के किनारों पर मगरमच्छों का हैचिंग पीरियड चल रहा है. बालू में बने नेस्ट में उनके अंडे होते हैं और जरा सी गतिविधि होने पर मगरमच्छ हमलावर हो जाते हैं. ऐसे में किसी का भी नदी किनारे जाना खतरे से खाली नहीं है. उन्होंने ग्रामीणों से अपील की है कि वे नदी के किनारे अनावश्यक रूप से न जाएं और वन विभाग द्वारा लगाए गए चेतावनी बोर्डों को गंभीरता से लें.
डर और दहशत के बीच उम्मीद की तलाश
घटना के बाद भगवानपुरा गांव में मातम पसरा हुआ है. सिरोमनी देवी के परिजन और गांववाले लगातार नदी किनारे डटे हुए हैं. पुलिस और वन विभाग भी पूरी कोशिश में लगे हैं, लेकिन समय बीतने के साथ चिंता बढ़ती जा रही है. सवाल यह भी है कि आखिर कब तक ग्रामीण ऐसे खतरों को नजरअंदाज करते रहेंगे? क्या बार-बार की घटनाएं भी उन्हें सबक नहीं सिखा रहीं?