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मशरूम की खेती: पश्चिम बंगाल में किसानों के लिए नयी उम्मीद

हीरापुर ब्लाक में कृषि विभाग मशरूम की खेती के लिए कृषकों को कर रहा प्रशिक्षित

संतोष विश्वकर्मा, आसनसोल

पश्चिम बंगाल सहित भारत के विभिन्न हिस्सों में मशरूम की खेती कृषि क्षेत्र में एक नयी संभावना बनकर उभरी है. पौष्टिक, लाभदायक और कम ज़मीन में आसानी से उगाई जा सकने वाली मशरूम अब युवा किसानों की पसंदीदा फसलों में से एक बन गयी है. जिसका निर्यात किया जा सकता है और स्थानीय बाजार में इसकी काफी मांग भी है.

लोकप्रियता और लाभ

विशेष रूप से बटन, ऑयस्टर और शिटाके मशरूम की खेती अब बहुत लोकप्रिय हो रही है. कम पूंजी, कम जगह और सरल तकनीक का उपयोग करके मशरूम की खेती घर के अंदर की जा सकती है. कृषि विभाग के हीरापुर ब्लॉक के टेक्निकल मैनेजर अपूर्व दास ने बताया कि मशरूम की खेती के लिए उपयुक्त तापमान, आर्द्रता और स्वच्छ वातावरण की आवश्यकता होती है.

आय और बाजार क्षमता

प्रत्येक 100 बैग से औसतन 25-30 किलोग्राम मशरूम का उत्पादन होता है, जिसे बाजार में बेचकर आसानी से 15,000 से 30,000 रुपये प्रति महीने तक कमाये जा सकते हैं. इसके अलावा, इस खेती ने घरेलू माहौल में घरेलू काम के अलावा महिलाओं के लिए अच्छी आय का अवसर भी पैदा किया है.

चुनौतियां और समाधान

उचित प्रशिक्षण के अभाव, विपणन में समस्याओं और कमजोर भंडारण व्यवस्था के कारण, कई किसान रुचि होने पर भी ठीक से सफल नहीं हो पाते हैं. हालांकि, विभिन्न कृषि विभाग और गैर-सरकारी संगठन वर्तमान में मशरूम की खेती में प्रशिक्षण और सहायता प्रदान कर रहे हैं, जो एक सकारात्मक पहलू है. सरकारी सहयोग और किसानों में बढ़ती जागरूकता के साथ, यह क्षेत्र मशरूम की खेती में नयी क्रांति लाया है.

स्वास्थ्य लाभ और खेती के प्रकार

मशरूम एक उच्च प्रोटीन और कम कैलोरी वाला भोजन है. सुपाच्य होने के कारण यह बच्चों और बुजुर्गों दोनों के लिए उपयुक्त है. यह हृदय के लिए लाभदायक, कैंसर से बचाव में सहायक और मधुमेह रोगियों के लिए सुरक्षित पौष्टिक खाद्य है. प्राकृतिक रूप से उगाई गई फसलों में रसायनों का उपयोग नहीं होता, इसलिए ये स्वास्थ्यवर्धक और पर्यावरण के अनुकूल हैं.

खेती के लिए सब्सट्रेट बनाने के लिए पुआल (सड़ा हुआ भूसा) और पोषण बढ़ाने के लिए गेहूं या चावल की भूसी को सब्सट्रेट में मिलाया जाता है. मशरूम स्पॉन मशरूम के बीज का काम करता है. खेती के दौरान सब्सट्रेट को स्पॉन से भरा रखने के लिए पॉलीथीन बैग, शिटाके और ऑयस्टर मशरूम में इस्तेमाल होने वाला लकड़ी का चूरा, कीटाणुशोधन के लिए फॉर्मेलिन और ब्लीचिंग पाउडर, नमी बनाए रखने के लिए स्प्रे बोतल और पानी की भाप का ब्लीच किया हुआ घर या शेड जहाँ प्रकाश और तापमान नियंत्रित हो, आवश्यक है.

लागत और आय अनुमान

100 बैग बनाने की लागत 3,000 से 4,000 रुपये (भारतीय मुद्रा में) आती है. प्रति बैग 300 से 500 ग्राम उपज होती है, और बिक्री मूल्य 150 से 250 रुपये प्रति किलो (बाजार के आधार पर) है. सफल खेती के साथ मासिक आय 15,000 से 30,000 रुपये तक हो सकती है.

उत्पाद को स्थानीय बाजैरों और मंडियों में, सुपरमार्केट और जैविक दुकानों में बेचा जा सकता है. ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और होम डिलीवरी सेवाएं भी उपलब्ध हैं. प्रसंस्कृत उत्पाद जैसे सूप, पाउडर, पैकेज्ड मशरूम भी बेचे जा सकते हैं.

सरकारी सहायता और प्रशिक्षण केंद्र जैसे कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी (आत्मा), कृषि विश्वविद्यालय और कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके), नाबार्ड और एमएसएमइ परियोजना सहायता मिलती है. विभिन्न गैर सरकारी संगठन और स्वयं सहायता समूह भी इसमें सहयोग करते हैं.

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