संवाददाता, कोलकाता मुख्यमंत्री ममता बनर्जी शनिवार को नयी दिल्ली में हुई नीति आयोग की बैठक में शामिल नहीं हुईं. हालांकि, मुख्यमंत्री के इस बैठक में शामिल नहीं होने के कारण के बारे में राज्य सचिवालय की ओर से कोई जानकारी नहीं दी गयी है. गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को नीति आयोग की संचालन परिषद की 10वीं बैठक की अध्यक्षता की और इसमें 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की तैयारियों पर विचार-विमर्श किया गया. ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद यह प्रधानमंत्री की राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों के साथ पहली बड़ी बैठक थी. लेकिन राज्य की मुख्यमंत्री इस बैठक में शामिल नहीं हुईं. हालांकि, इस संबंध में तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता जय प्रकाश मजूमदार ने कहा कि पिछली बार नीति आयोग की बैठक के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का माइक बीच में बंद कर दिया गया था. ऐसी बैठक में शामिल होने का क्या मतलब, जहां हम अपनी बात ही नहीं रख सकते. भाजपा-कांग्रेस ने मुख्यमंत्री की आलोचना की: वहीं, नीति आयोग की बैठक में सुश्री बनर्जी के शामिल नहीं होने पर विपक्षी भाजपा और कांग्रेस ने उनकी आलोचना की है. भाजपा के राज्यसभा सदस्य समिक भट्टाचार्य ने कहा कि यह पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है कि मुख्यमंत्री ने बैठक में शामिल नहीं होने का फैसला किया. इस बैठक में कई अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री भाग ले रहे हैं. श्री भट्टाचार्य ने कहा कि मुख्यमंत्री के बैठक में शामिल न होने से राज्य के लोग वंचित रह गये, क्योंकि वहां पश्चिम बंगाल के मुद्दे नहीं उठाये जायेंगे. राज्य सरकार ने कई ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाने का मौका गंवा दिया है, जो पश्चिम बंगाल के लिए महत्वपूर्ण हैं. कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि अगर मुख्यमंत्री बैठक में शामिल होतीं, तो वह कई मुद्दे उठा सकती थीं. राज्य के बकाया फंड व नयी योजनाओं के लिए राशि की मांग कर सकती थीं. अगर फिर केंद्र सरकार मांगें पूरी नहीं करती तो उसके खिलाफ आवाज उठाने का मौका भी मिलता. लेकिन नीति आयोग की बैठक में शामिल नहीं होने से राज्य की जनता को काफी नुकसान हुआ है.
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