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डीए मौलिक अधिकार नहीं: राज्य सरकार

पश्चिम बंगाल सरकार के कर्मचारियों के महंगाई भत्ते (डीए) के मामले की सुनवाई मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति पीके मिश्रा की पीठ में दूसरे दिन भी हुई.

सुप्रीम कोर्ट में बंगाल सरकार के कर्मचारियों के महंगाई भत्ते के मामले में सुनवाई जारी

संवाददाता, कोलकातापश्चिम बंगाल सरकार के कर्मचारियों के महंगाई भत्ते (डीए) के मामले की सुनवाई मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति पीके मिश्रा की पीठ में दूसरे दिन भी हुई. पीठ ने मंगलवार को मामले में राज्य सरकार का पक्ष सुना. राज्य सरकार की ओर से तीन तर्क दिये गये. पहला, डीए राज्य सरकार के कर्मचारियों का मौलिक अधिकार नहीं है. दूसरा, राज्य सरकार के कर्मचारियों को डीए का कानूनी अधिकार नहीं है और तीसरा, राज्य स्थिति को समझने और सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद डीए देता है. न्यायमूर्ति पीके मिश्रा ने जानना चाहा कि राज्य किस आधार पर डीए देना चाहता है. राज्य के अधिवक्ताओं को सुनने के बाद उन्होंने कहा: अगर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर डीए नहीं दिया जाता है तो राज्य किस अंक के आधार पर डीए देता है. मामले की सुनवाई बुधवार को भी होगी. सुप्रीम कोर्ट उस दिन वादियों, यानी सरकारी कर्मचारियों की दलीलें सुनेगा. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने राज्य को बकाया डीए का 25 प्रतिशत चुकाने का आदेश दिया था. छह हफ्ते का समय दिया गया था. लेकिन राज्य उस अवधि में डीए नहीं दे सका. राज्य सरकार ने अदालत से छह महीने का और समय मांगा था. सोमवार को हुई सुनवाई में अदालत ने सवाल किया कि डीए समय पर क्यों नहीं दिया गया, इस पर राज्य सरकार ने कहा कि सरकार अदालत के आदेश का पालन करना चाहती है, लेकिन इसमें समय लगेगा, क्योंकि बकाया 25 प्रतिशत डीए चुकाने के लिए काफी धन की आवश्यकता है. उस धन को जुटाने में समय लगेगा.

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