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हुगली के गुप्तिपाड़ा निवासी दिव्यांग सौनक ने माध्यमिक परीक्षा में लहराया परचम

कमर से नीचे पूरी तरह से असंवेदनशील और एक दुर्लभ स्नायविक रोग से पीड़ित सौनक सिर्फ व्हीलचेयर के सहारे हैं.

शारीरिक बाधाओं को हराकर प्रथम श्रेणी में हुआ उत्तीर्ण हुगली. जिले के गुप्तिपाड़ा निवासी सौनक चक्रवर्ती ने यह साबित कर दिखाया है कि अगर इच्छाशक्ति मजबूत हो, तो शारीरिक बाधाएं भी हार मान जाती हैं. कमर से नीचे पूरी तरह से असंवेदनशील और एक दुर्लभ स्नायविक रोग से पीड़ित सौनक सिर्फ व्हीलचेयर के सहारे हैं. इसके बावजूद उन्होंने इस साल माध्यमिक परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होकर समाज को एक नयी प्रेरणा दी है. बचपन से ही गंभीर बीमारियों से जूझ रहे सौनक को कभी थैलेसीमिया का संदेह हुआ, तो कभी उनकी रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर पाया गया. आखिरकार गलत इलाज के कारण वह चलने-फिरने में असमर्थ हो गया. उनके पिता सुमंत चक्रवर्ती ने इलाज के लिए कोलकाता, बेंगलुरू और वेल्लोर तक प्रयास किये. लेकिन वेल्लोर के डॉक्टरों ने साफ कह दिया कि अब कोई सुधार संभव नहीं है. इसके बाद भी परिवार ने हिम्मत नहीं हारी. एक छोटे से बाइक गैराज से होने वाली आय से उन्होंने सारा खर्च उठाया, बेटे को गोद में लेकर स्कूल पहुंचाया और हमेशा उसकी पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया. सौनक ने भूगोल में सबसे अधिक अंक प्राप्त करके यह दिखा दिया कि परिस्थितियां हार का कारण नहीं होतीं, बल्कि यह हमारे हौसले की परीक्षा होती हैं. सौनक का सपना है कि वह एक दिन शिक्षक बने और दूसरों को भी जीवन का सही अर्थ समझाये. गुप्तिपाड़ा हाई स्कूल के शिक्षक सुधींद्रनाथ कहते हैं कि सौनक जैसे छात्र ही सच्ची प्रेरणा होते हैं. वास्तव में सौनक आज उन सभी विशेष रूप से सक्षम बच्चों के लिए उम्मीद की किरण बन चुका है.

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