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पश्चिम बंगाल में थैलेसीमिया का बढ़ता संकट

भारत में थैलेसीमिया के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, और पश्चिम बंगाल इस मामले में एक प्रमुख राज्य है, जहां इस बीमारी का प्रभाव विशेष रूप से देखा जा सकता है.

थैलेसीमिया एक वंशानुगत (आनुवांशिक रूप से प्रसारित) ऑटोसोमल रिसेसिव विकार है, जो माता-पिता (या तो एक या दोनों) से प्राप्त होता है. यह आनुवंशिक उत्परिवर्तन के कारण लाल रक्त कोशिकाओं को प्रभावित करता है, जिससे हीमोग्लोबिन की अल्फा और/या बीटा-ग्लोबिन श्रृंखलाओं में कमी आती है. इसके परिणामस्वरूप लाल रक्त कोशिकाओं का कम उत्पादन होता है और शरीर के अंगों में ऑक्सीजन युक्त रक्त की आपूर्ति में कमी होती है. भारत में एक लाख से अधिक रोगी थैलेसीमिया के शिकार हैं, जिनमें 40 लाख वाहक हैं. ऐसे इस जटिल बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 8 मई को विश्व थैलेसीमिया डे मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य इस गंभीर रक्त विकार के प्रति जागरूकता फैलाना और इसके इलाज की प्रक्रिया को बेहतर बनाना है. भारत में थैलेसीमिया के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, और पश्चिम बंगाल इस मामले में एक प्रमुख राज्य है, जहां इस बीमारी का प्रभाव विशेष रूप से देखा जा सकता है. राज्य के विभिन्न हिस्सों में इसके मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है, जो स्वास्थ्य सेवाओं के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुका है.

पेश है शिव कुमार राउत की एक रिपोर्ट…

कोलकाता व उत्तर 24 परगना में मरीजों की संख्या अधिक

श्चिम बंगाल में थैलेसीमिया के मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, राज्य में करीब 25,000 थैलेसीमिया मरीज हैं, और हर साल लगभग 2,500 नये मरीज इस बीमारी का शिकार होते हैं. वैसे राज्य के विभिन्न जिलों में इस बीमारी से पीड़ित मरीज हैं. लेकिन कोलकाता ओर उत्तर 24 परगना जिलों में पीड़ितों की संख्या अधिक है. इसके अलावा, पश्चिम बंगाल में जनसंख्या घनत्व और गरीबी दर के कारण इस रोग के इलाज में कई जटिलताएं उत्पन्न होती हैं. चिकित्सकों के अनुसार, इस रोग के प्रभावी इलाज के लिए नियमित रक्त ट्रांसफ्यूजन और आयरन ओवरलोड को नियंत्रित करने वाली दवाओं की आवश्यकता होती है, जो अक्सर महंगी होती हैं. इस विषय में टेक्नो इंडिया डामा अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ एमएस पुरकैत ने कहा कि, कोलकाता में थैलेसीमिया के मामले काफी बढ़ रहे हैं. शहर में लगभग 20 फीसदी आबादी थैलेसीमिया से पीड़ित है. उन्होंने कहा कि टेक्नो इंडिया डामा अस्पताल में हमारे पास एनएबीएल से मान्यता प्राप्त लैब है जो जरूरी टेस्ट कर सकते हैं. इसके बाद हम जरूरी इलाज शुरू करते हैं. उन्होंने कहा कि अस्पताल में हम हर महीने लगभग 10 ऐसे मरीजों का इलाज करते हैं जो थैलेसीमिया से पीड़ित हैं या इसके संभावित वाहक हैं. उन्होंने कहा कि हाल ही में हमने कुछ ऐसे मरीजों की प्लीहा सर्जरी भी की है जिन्हें इसकी जरूरत थी. आइएलएस अस्पताल के वरिष्ठ फिजिशियन डॉ हिमांशु खान ने कहा कि थैलेसीमिया संक्रामक नहीं है, बल्कि यह विरासत में मिलता है. यानी वंशानुगत विकार है. थैलेसीमिया को रोकना केवल एक चिकित्सकीय आवश्यकता ही नहीं है यह एक नैतिक जिम्मेदारी है. इसलिए दोनों भागीदारों को शादी से पहले थैलेसीमिया की जांच करवानी चाहिए. ढाकुरिया स्थित मणिपाल अस्पताल के हेमाटोलॉजी विशेषज्ञ डॉ जसश्वी चक्रवर्ती ने बाया कि थैलेसीमिया एक आनुवंशिक बीमारी है जिसमें ग्लोबिन श्रृंखला निर्माण में दोष के कारण लाल रक्त कोशिकाओं का समय से पहले विनाश होता है. बी थैलेसीमिया मेजर भारत में अधिक प्रचलित है जो थैलेसीमिया के वैश्विक बोझ का लगभग 25% योगदान देता है. भारत में प्रति वर्ष लगभग 10,000 बच्चे बी थैलेसीमिया मेजर के रूप में पैदा होते हैं. बार-बार रक्त संक्रमण की आवश्यकता के अलावा रक्त संक्रमण के खतरे, यकृत विकार, हृदय संबंधी समस्याएं, हार्मोनल समस्याएं कुल मिलाकर रोगियों में महत्वपूर्ण रुग्णता और मृत्यु दर का कारण बनती हैं. दो बी थैलेसीमिया वाहकों के बीच विवाह से बचकर बी थैलेसीमिया मेजर को 100 % रोका जा सकता है. वाहक की स्थिति को एचपीएलसी नामक एक सरल परीक्षण द्वारा आसानी से जाना जा सकता है जो 1 वर्ष की आयु के बाद किया जा सकता है. वाहक ज्यादातर अपने पूरे जीवन में लक्षणहीन रहते हैं.

राज्य में करीब 25,000 थैलेसीमिया मरीज

थैलेसीमिया क्या है?

थैलेसीमिया एक आनुवंशिक रक्त विकार है, जिसमें शरीर की लाल रक्त कोशिकाओं का उत्पादन सामान्य रूप से नहीं होता। यह शरीर में रक्त की कमी (एनीमिया) का कारण बनता है, और मरीजों को रक्तदान की आवश्यकता लगातार होती है. इस रोग के दो प्रमुख प्रकार होते हैं – अल्फा थैलेसीमिया और बीटा थैलेसीमिया. बीटा थैलेसीमिया को थैलेसीमिया माइनर और थैलेसीमिया मेजर में विभाजित किया जाता है, और थैलेसीमिया मेजर ज्यादा गंभीर स्थिति होती है.

संवेदनशीलता की कमी राज्य में थैलेसीमिया के प्रति जागरूकता का स्तर अभी भी बहुत कम है. कई लोग बीमारी के लक्षणों को हल्के में लेते हैं, और इसका सही समय पर निदान नहीं हो पाता, जिससे मरीजों की स्थिति और भी गंभीर हो जाती है. गांवों और दूर-दराज के इलाकों में इस बीमारी के प्रति जागरूकता की कमी और भी चुनौतीपूर्ण बनाती है.

आर्थिक और सामाजिक बाधाएं थैलेसीमिया के इलाज के लिए नियमित रक्तदान और महंगी दवाओं की आवश्यकता होती है. गरीब परिवारों के लिए ये खर्चे अव्यवहारिक हो सकते हैं. इसके अलावा, मरीजों को सामाजिक स्तर पर भी कई बार भेदभाव और असहमति का सामना करना पड़ता है, खासकर शादी और परिवार बनाने के संदर्भ में. राज्य में कई परिवारों को इस कारण सामाजिक और मानसिक दबाव का सामना करना पड़ता है.

स्वास्थ्य सेवाओं की कमी कोलकाता जैसे बड़े शहरों में अच्छे अस्पताल और विशेषज्ञ मौजूद हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में थैलेसीमिया के इलाज की सुविधा सीमित है. बहुत से मरीजों को सही इलाज के लिए शहरों का रुख करना पड़ता है, जो यात्रा की कठिनाइयों और उच्च लागत का कारण बनता है. स्वास्थ्य सेवाओं की यह असमानता ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में विशेष रूप से खतरनाक साबित हो सकती है. कोलकाता के नीलरतन सरकार (एनआएएस) मेडिकल कॉलेज, और कोलकाता मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में इलाज की विशेष व्यवस्था. इसके कोलकाता में ही कुछ निजी अस्पतालों में भी इलाज की व्यवस्था है. रक्त की कमीरक्त की नियमित आपूर्ति एक अन्य बड़ी समस्या है. रक्तदान के लिए लोगों को प्रेरित करना और रक्त बैंकों में पर्याप्त रक्त की उपलब्धता सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है. राज्य में हर महीने करीब 500-600 यूनिट रक्त की आवश्यकता होती है, लेकिन इसकी आपूर्ति कभी-कभी अपर्याप्त हो जाती है. इस समस्या का समाधान समय पर रक्तदान शिविरों और अभियान के द्वारा किया जा सकता है.

थैलेसीमिया का इलाज

थैलेसीमिया का इलाज विभिन्न प्रकार के हैं, जो बीमारी की गंभीरता पर निर्भर करते हैं. गंभीर थैलेसीमिया में, रक्त चढ़ाना पड़ता है. इसके अलावा आयरन केलेशन थेरेपी, और अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण शामिल हैं. हल्के थैलेसीमिया में, उपचार की आवश्यकता नहीं हो सकती है.

थैलेसीमिया के लिए सामान्य उपचार

ब्लड ट्रांसफ्यूजन : गंभीर थैलेसीमिया वाले लोगों को नियमित रूप से रक्त चढ़ाना पड़ सकता है. ताकि लाल रक्त कोशिकाओं की कमी को पूरा किया जा सके. आयरन केलेशन थेरेपी : रक्त आधान से शरीर में आयरन का स्तर बढ़ जाता है, इसलिए आयरन केलेशन थेरेपी आयरन को निकालने में मदद करती है. अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण : कई मामलो में अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण थैलेसीमिया का इलाज करने का एकमात्र तरीका है, लेकिन यह एक उच्च जोखिम वाली प्रक्रिया है.

उम्मीद की किरण : हालांकि, पश्चिम बंगाल में थैलेसीमिया के इलाज और देखभाल के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं. राज्य सरकार और गैर सरकारी संगठनों द्वारा थैलेसीमिया के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं. इसके साथ ही, रक्तदान को प्रोत्साहित करने और मरीजों के इलाज के लिए सस्ती दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के प्रयास किये जा रहे हैं.

कोलकाता में थैलेसीमिया सहायता केंद्रों की स्थापना से मरीजों को इलाज और रक्तदान के लिए बेहतर सुविधा मिल रही है. साथ ही, कुछ अस्पतालों में जनवरी से जुलाई तक मुफ्त रक्तदान शिविर भी आयोजित किए जाते हैं, जो मरीजों के लिए राहत का कारण बनते हैं.

थैलेसीमिया एक गंभीर और चुनौतीपूर्ण बीमारी है, लेकिन सही जागरूकता, समय पर इलाज और रक्तदान के माध्यम से इसे नियंत्रित किया जा सकता है. पश्चिम बंगाल में थैलेसीमिया के मरीजों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता और आर्थिक सहायता सुनिश्चित करने के लिए अधिक कदम उठाने की आवश्यकता है. साथ ही, राज्य की जनता को इस बीमारी के प्रति जागरूक करना और इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में स्वीकार करना भी जरूरी है, ताकि आने वाले समय में हम इस संकट से निपटने में सफल हो सकें.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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