कोलकाता. पश्चिम बंगाल की आइएससी टॉपर सृजनी ने एक मिसाल कायम की है. 400 में से 400 अंक प्राप्त करने वाली इस मेधावी छात्रा ने परीक्षा का फॉर्म भरते समय अपना उपनाम नहीं लिखने का फैसला किया. सृजनी का कहना है कि यह निर्णय जाति, पंथ, धर्म और लिंग पर आधारित भेदभाव से मुक्त समाज में उनके दृढ़ विश्वास के कारण लिया गया है. दक्षिण कोलकाता के फ्यूचर फाउंडेशन स्कूल की 12वीं की छात्रा सृजनी ने काउंसिल फॉर द इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशन (सीआइएससीइ) की परीक्षा में सभी विषयों में शत-प्रतिशत अंक हासिल किये हैं. अपनी व्यस्त दिनचर्या के बावजूद सृजनी ने 14 अगस्त को आरजी कर मेडिकल कॉलेज की छात्रा के साथ हुए दुष्कर्म और हत्या के बाद आयोजित ‘वुमेन रिक्लेम द नाइट’ आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया था. शनिवार को सृजनी ने कहा : एक व्यक्ति के तौर पर यह मेरा निजी फैसला था, जिसे मेरे माता-पिता और बहन का पूरा समर्थन मिला. मेरा मानना है कि समाज को जाति, लिंग, धर्म और आर्थिक स्थिति के आधार पर होने वाले बंटवारे से ऊपर उठना चाहिए. मेरे लिए उपनाम का कोई महत्व नहीं है. मेरे दोस्त और प्रियजन मुझे हमेशा मेरे पहले नाम से ही जानते हैं. फिर उपनाम का बोझ क्यों उठाना? मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे अपने परिवार का पूर्ण सहयोग प्राप्त है. सृजनी के पिता देबाशीष गोस्वामी भारतीय सांख्यिकी संस्थान में प्रोफेसर और शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित हैं. उनकी मां गोपा मुखर्जी गुरुदास कॉलेज में सहायक प्रोफेसर हैं. दोनों को अपनी बेटी की इस असाधारण उपलब्धि के साथ-साथ उसके सिद्धांतों और मूल्यों पर भी गर्व है. गोपा मुखर्जी ने कहा : मेरी दोनों बेटियां उन मूल्यों और मान्यताओं को मानती हैं जो हमने उन्हें बचपन से सिखाए हैं. मैं स्वयं भी अपने पति का उपनाम इस्तेमाल नहीं करती. जब हमने अपनी बेटियों के जन्म प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया था, तो हमने उनमें कोई उपनाम शामिल नहीं किया था. हम एक ऐसे समाज की कल्पना करते हैं, जो पितृसत्ता और अंधराष्ट्रवाद के पूर्वाग्रहों से मुक्त हो. सृजनी अपने पिता की तरह विशुद्ध विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान करना चाहती हैं. उन्होंने बताया कि उन्होंने कभी भी खुद को केवल एक किताबी कीड़ा नहीं माना. जब श्रीजनी से उनके धर्म के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा : मैंने आवेदन पत्र में धर्म के कॉलम में ‘मानवतावाद’ लिखा था.
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