कोलकाता.
भाजपा नेता असीम घोष सक्रिय राजनीति से 20 साल पहले ही दूर हो गये थे. हाल के दिनों में प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष के रूप में श्री घोष को कई संगठनात्मक कार्यक्रमों के लिए बुलावा आ रहा था. कुछ मामलों में पार्टी उनसे राय भी ले रही थी. कई लोगों को आश्चर्य हुआ जब असीम घोष के नाम की घोषणा राज्यपाल के रूप में की गयी. राष्ट्रपति भवन ने सोमवार को हरियाणा के राज्यपाल के रूप में उनके नाम की घोषणा की. प्रदेश भाजपा के अंतिम निर्वाचित अध्यक्ष असीम जल्द ही चंडीगढ़ पहुंच कर कार्यभार संभालेंगे. पश्चिम बंगाल से राज्यपाल का पदभार ग्रहण करनेवाले श्री घोष चौथे व्यक्ति हैं. कांग्रेस के शासनकाल में सिद्धार्थ शंकर रे पंजाब के राज्यपाल बने थे. बाद में अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में प्रदेश भाजपा के पं विष्णुकांत शास्त्री उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बनाये गये थे. नरेंद्र मोदी के शासनकाल में तथागत राय को त्रिपुरा और बाद में मेघालय का राज्यपाल बनाया गया था. वह एक समय बंगाल भाजपा के अध्यक्ष भी रहे. इस बार, बंगाल भाजपा के एक और पूर्व अध्यक्ष राज्यपाल बन रहे हैं. असीम घोष राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर रहे हैं. भाजपा सूत्रों का दावा है कि प्रभाकर तिवारी की मदद से वह 1991 में भाजपा में शामिल हुए थे. उसी साल वह काशीपुर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के उम्मीदवार बने. हालांकि वह जीत नहीं पाये, लेकिन तभी से श्री घोष राजनीति में सक्रिय रहे.अच्छे वक्ता भी हैं असीम घोष : एक अच्छे वक्ता होने के साथ-साथ उन्होंने संगठनात्मक ढांचे में भी सुधार किया. 1996 में वह भाजपा के राज्य सचिव बनाये गये थे. 1998 में उन्हें उपाध्यक्ष बनाया गया. केंद्रीय मंत्री बनने के बाद तपन सिकदर को 1999 में ””””एक व्यक्ति, एक पद”””” की नीति के कारण प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का पद छोड़ना पड़ा. उस समय असीम को पहली बार बिना संगठनात्मक चुनाव के अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. 2000 में असीम संगठनात्मक चुनावों में वरिष्ठ भाजपा नेता सुकुमार बनर्जी को 34 मतों से हराकर अध्यक्ष बने थे. उस समय असीम और सुकुमार के बीच की लड़ाई को लेकर प्रदेश भाजपा में गहरी फूट पैदा हो गयी थी. पार्टी के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष शमिक भट्टाचार्य, राहुल सिन्हा, कर्नल सब्यसाची बागची, पारस दत्ता जैसे प्रभावशाली नेता उस समय सुकुमार बनर्जी के पक्ष में थे. दूसरी ओर असीम घोष, तपन सिकदर द्वारा समर्थित उम्मीदवार थे. अंततः आरएसएस का समर्थन असीम को मिलने के कारण उन्हें जीत मिली थी. चुनाव जीतने के बाद असीम ने शमिक, राहुल, सुकुमार, सब्यसाची और पारस को अपनी समिति से हटा दिया था. असीम 2002 तक पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे. उनका कार्यकाल समाप्त होते ही प्रदेश भाजपा में राहुल-शमिक का दबदबा फिर से स्थापित हो गया. उनके प्रिय तथागत राय अध्यक्ष बने. बाद में असीम घोष को कुछ समय के लिए राष्ट्रीय स्तर की समिति में ले लिया गया, लेकिन पार्टी के आंतरिक समीकरणों के कारण असीम का सक्रिय राजनीति से जुड़ाव धीरे-धीरे कम होता गया. एक समय तो हावड़ा के पूर्व प्रोफेसर पार्टी से लगभग पूरी तरह गायब हो गये, लेकिन मतभेदों के चलते खुद को अलग-थलग करने वालों में से एक असीम, राहुल के अध्यक्ष रहते हुए फिर से पार्टी के कार्यक्रमों में आने लगे. हाल के दिनों में पार्टी के विभिन्न कार्यक्रमों में असीम घोष की आवाजाही बढ़ गयी थी. नये प्रदेश अध्यक्ष के नामांकन समारोह, नाम की घोषणा और अभिनंदन समारोह में असीम घोष अग्रिम पंक्ति में नज़र आये थे.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है