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दुर्गापूजा में इस बार बांग्ला व बंगाली थीम पर जोर दे रहीं पूजा कमेटियां

अगले वर्ष राज्य में विधानसभा चुनाव होना है, लेकिन इससे पहले ही नबान्न पर कब्जा करने की लड़ाई शुरू हो चुकी है. दुर्गापूजा में इस लड़ाई का असर साफ तौर पर देखने को मिलेगा.

कोलकाता. अगले वर्ष राज्य में विधानसभा चुनाव होना है, लेकिन इससे पहले ही नबान्न पर कब्जा करने की लड़ाई शुरू हो चुकी है. दुर्गापूजा में इस लड़ाई का असर साफ तौर पर देखने को मिलेगा. इस बार बंगाली भावनाएं सबसे बड़े विषयों में से एक होने जा रही है. यही पूजा की थीम भी होने जा रही है. हालांकि पूजा के आयोजकों का कहना है कि उन्होंने अपनी पूजा का विषय बंगाली अस्मिता के राजनीतिक अखाड़े में मुद्दा बनने से पहले ही सोच लिया था. बागुईहाटी के क्लब अश्विनीनगर बंधु महल का इस साल 45वां वर्ष है. इस बार पूजा की थीम बांग्ला और बंगाली है. बागुईहाटी की यह पूजा समिति हर साल अपने शरदोत्सव के मंच को एक नये विषय से सजाती है. पिछले साल ””बारो-यारी”” नाम देकर आगंतुकों को बंगाल की बारवारी पूजा के बारे में बताया था. पूजा समिति के आयोजकों का दावा है कि इस थीम का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है. उनका कहना है कि अश्विनीनगर बंधु महल ने इस साल मई में ही अपनी पूजा की थीम और नाम भी तय कर लिया था. पूजा समिति के एक पदाधिकारी स्वरूप नाग के शब्दों में : अगर हमें अपनी थीम का पूरा नाम पता हो, तो सारी अस्पष्टताएं दूर हो जायेंगी. पूजा की थीम बांग्ला और बंगाली, समृद्धि की शुरुआत है. इस थीम के माध्यम से हम बंगालियों को ऐतिहासिक और पुरातात्विक तरीके से बंगाल और बंगालियों के इतिहास के बारे में विस्तार से बताना चाहते हैं. उन्होंने यह भी कहा : हर साल पूजा समाप्त होते ही हम अगले साल की पूजा की तैयारी शुरू कर देते हैं. हमारे इस फैसले को किसी भी तरह से राजनीति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए. पांच कलाकार इस थीम को आकार दे रहे हैं. कलाकार सम्राट भट्टाचार्य थीम के प्रभारी हैं, कलाकार पिंटू सिकदर मूर्ति का निर्माण करेंगे, प्रेमेंदु विकास चाकी प्रकाश व्यवस्था के प्रभारी होंगे, दीपमय दास पृष्ठभूमि संगीत के प्रभारी होंगे और वास्तुकार सुबिमल दास वास्तुकला के प्रभारी होंगे. पूजा कमेटी का कहना है कि किसी भी विवाद में पड़े बिना इस पूजा समिति का उद्देश्य बंगालियों को बंगाल और बंगालियों के गौरव से अवगत कराना है. हालांकि पूजा समिति के पदाधिकारी इस बात पर टिप्पणी करने से कतरा रहे हैं कि पूजा की सजावट में बंगाली संस्कृति और विरासत को कैसे उजागर किया जा रहा है.

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