विधायक परेश पाल और रत्ना सरकार की अग्रिम जमानत पर सुनवाई टली
कोलकाता. भाजपा कार्यकर्ता अभिजीत सरकार की हत्या मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) की जांच प्रक्रिया एक बार फिर कठघरे में है. शनिवार को कलकत्ता हाइकोर्ट में सुनवाई के दौरान तृणमूल विधायक परेश पाल और रत्ना सरकार की ओर से पेश सांसद व वरिष्ठ अधिवक्ता कल्याण बनर्जी ने जांच में देरी को लेकर गंभीर सवाल उठाये. कल्याण बनर्जी ने अदालत में तर्क रखा कि सीबीआइ को चार्जशीट दाखिल करने में चार साल क्यों लग गये. उन्होंने कहा कि सीबीआइ कोई रामकृष्ण मिशन या कालीघाट का मंदिर नहीं है. एजेंसी अपनी मर्जी से कब क्या करेगी, यह तय नहीं कर सकती. इससे पहले न्यायमूर्ति जय सेनगुप्ता ने भी मामले की जांच की धीमी प्रगति को लेकर सीबीआइ को चेतावनी दी थी और जांच को अधूरी व लापरवाह बताया था. बता दें कि भाजपा कार्यकर्ता अभिजीत सरकार की हत्या 2021 में काकुड़गाछी इलाके में हुई थी. हाल ही में दो जुलाई 2025 को सीबीआइ ने इस मामले में दूसरी पूरक चार्जशीट दाखिल की, जिसमें तृणमूल विधायक परेश पाल, कोलकाता नगर निगम के एमएमआइसी स्वपन समाद्दार और वार्ड 30 की पार्षद पापिया घोष को आरोपित किया गया है. विधायक परेश पाल ने अग्रिम जमानत के लिए हाइकोर्ट में याचिका दायर की है. शनिवार को सुनवाई के दौरान सीबीआइ की ओर से बताया गया कि परेश पाल पर साक्ष्य मिटाने और मामले को वापस लेने की धमकी देने के आरोप हैं. वहीं, बचाव पक्ष का कहना है कि एजेंसी ने उन्हें नामित करने के लिए कोई ठोस आधार नहीं दिया.
न्यायालय ने सीबीआइ से पूछा कि किस समय, क्या घटनाक्रम हुआ इसकी पूरी जानकारी पेश की जाये. साथ ही पूछा गया कि पार्टी कार्यालय में क्या हुआ था और क्या आरोपियों के नाम शुरू से चार्जशीट में शामिल थे. न्यायालय ने दस्तावेजों की प्रमाणिकता और जांच की पारदर्शिता पर भी कई सवाल उठाये. फिलहाल, हाइकोर्ट ने विधायक परेश पाल और रत्ना सरकार की अग्रिम जमानत याचिका पर कोई फैसला नहीं सुनाया है. मामले की अगली सुनवाई सोमवार को होगी.
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