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प्रवासियों की हिरासत से बंगाली पहचान की राजनीति को हवा

भाजपा द्वारा शासित राज्यों में बंगाली भाषी प्रवासी मजदूरों को हिरासत में लिये जाने और उन्हें संदिग्ध बांग्लादेशी बताये जाने से पश्चिम बंगाल में एक नया राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है. इससे सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने बंगाली पहचान का मुद्दा फिर से उठाया है, जिसने 2021 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के हिंदुत्व के रथ पर रोक लगायी थी.

कोलकाता.

भाजपा द्वारा शासित राज्यों में बंगाली भाषी प्रवासी मजदूरों को हिरासत में लिये जाने और उन्हें संदिग्ध बांग्लादेशी बताये जाने से पश्चिम बंगाल में एक नया राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है. इससे सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने बंगाली पहचान का मुद्दा फिर से उठाया है, जिसने 2021 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के हिंदुत्व के रथ पर रोक लगायी थी. अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में कुछ ही महीने बाकी हैं और प्रवासी मजदूरों के उत्पीड़न की शिकायतों से शुरू हुआ यह मामला अब एक बड़े राजनीतिक विवाद का विषय बन गया है. ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस, कभी सामाजिक-आर्थिक संकट माने जाने वाले इस मुद्दे को भावनात्मक चुनावी मुद्दे में बदलने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है. वह ओडिशा, असम, दिल्ली, महाराष्ट्र और गुजरात की भाजपा सरकारों पर राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में ‘संस्थागत और भाषाई प्रोफाइलिंग’ और ‘गरीबी के अपराधीकरण’ का आरोप लगा रही है. इस कार्रवाई को ‘बंगालियों का अपमान’ बताने से लेकर कोलकाता में विशाल विरोध रैलियों की योजना बनाने तक तृणमूल कांग्रेस उस भावना को फिर से जगा रही है जिसका उसने 2021 में ‘बंगाल अपनी बेटी चाहता है’ के नारे के जरिये बड़े प्रभाव के साथ इस्तेमाल किया था.

यह विवाद सबसे पहले जून में सामने आया था, जब कम से कम सात बांग्ला भाषी लोगों को महाराष्ट्र और अन्य राज्यों से बांग्लादेश भेज दिया गया था. ऐसा कथित तौर पर नागरिकता की उचित पुष्टि किये बिना या पश्चिम बंगाल सरकार को सूचित किये बिना किया गया था. बाद में उनकी भारतीय नागरिकता की पुष्टि होने के बाद कानूनी और राजनयिक हस्तक्षेप के जरिये उन्हें वापस भेज दिया गया. पिछले सप्ताह ओडिशा पुलिस ने अवैध अप्रवासी होने के संदेह में बंगाल के विभिन्न जिलों से 444 श्रमिकों को हिरासत में लिया. हालांकि बाद में दस्तावेज जमा करने के बाद 50 को रिहा कर दिया गया.

तृणमूल कांग्रेस के सांसद समीरुल इस्लाम ने कहा : बंगाल में डेढ़ करोड़ से ज्यादा प्रवासी मजदूर हैं, जो सम्मान के साथ रह रहे हैं. लेकिन भाजपा शासित राज्यों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता, जहां बंगालियों के साथ अपने ही देश में घुसपैठियों जैसा व्यवहार किया जा रहा है. बांग्ला बोलने से कोई बांग्लादेशी नहीं बन जाता. इस्लाम ने कहा : बंगाली मजदूरों का उत्पीड़न इस बात का सबूत है कि यह बांग्ला भाषी लोगों के प्रति नफरत फैलाने का एक तरीका है. क्या इन प्रवासी मजदूरों को अब भाजपा शासित राज्यों में जाने के लिए अलग वीजा की जरूरत है? बंगाल सरकार अब भारतीय नागरिकों के ‘असंवैधानिक निर्वासन’ के खिलाफ कानूनी विकल्प तलाश रही है. इस मौके का फायदा उठाते हुए, तृणमूल कांग्रेस ने अपने चुनावी अभियान को बांग्ला भाषी प्रवासी मजदूरों के अधिकारों और सम्मान की रक्षा पर केंद्रित कर दिया है. अनुमान है कि इनमें से 22.5 लाख मजदूर देश भर में निर्माण, ईंट भट्टों, कारखानों और अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करते हैं.

वरिष्ठ तृणमूल नेता व कोलकाता के मेयर फिरहाद हकीम ने कहा : हमारे लोगों के साथ सिर्फ इसलिए घुसपैठियों जैसा व्यवहार किया जा रहा है, क्योंकि वे गरीब हैं और बांग्ला बोलते हैं. समाजशास्त्री सुप्रिया बसु ने इस घटनाक्रम को ‘बंगाल पर उत्तर भारतीय हिंदुत्व संस्कृति थोपने’’ के प्रयास का हिस्सा बताया. उन्होंने कहा : भाजपा बंगाल में उत्तर प्रदेश शैली की हिंदुत्व की कॉलोनियां स्थापित करने की कोशिश कर रही है. भाषा के आधार पर प्रवासियों को निशाना बनाना इस प्रयास का एक उदाहरण मात्र है.

भाजपा ने राष्ट्रीय सुरक्षा और अवैध आव्रजन की चिंताओं का हवाला देते हुए तृणमूल के आरोपों का खंडन किया है. पार्टी के आइटी प्रकोष्ठ के प्रमुख अमित मालवीय ने दावा किया कि ओडिशा में हिरासत में लिये गये 444 लोगों में से 300 से ज्यादा के पास फर्जी दस्तावेज थे या सत्यापन योग्य दस्तावेज नहीं थे. भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई के नवनियुक्त अध्यक्ष शमिक भट्टाचार्य ने एक कदम और आगे बढ़कर तृणमूल कांग्रेस समर्थित, जानबूझकर की गयी घुसपैठ की साजिश का आरोप लगाया. उन्होंने कहा : ये लोग दूसरे राज्यों में काम करते हैं और ममता बनर्जी को वोट देने के लिए बंगाल लौटते हैं. यह जनसांख्यिकीय और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा है. “भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी ने कहा, ‘‘भारतीय नागरिकों की रक्षा करने के बजाय, तृणमूल कांग्रेस घुसपैठियों को बचा रही है और खुद को ‘पीड़ित’ दिखाने की कोशिश कर रही है.

कांग्रेस और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने उत्पीड़न और मनमानी गिरफ्तारियों की निंदा की है, लेकिन उन्होंने तृणमूल की ‘बंगाली बनाम बाहरी’ मुद्दे पर भावुक अपील से खुद को दूर रखा है. माकपा नेता सुजन चक्रवर्ती ने कहा : प्रवासी मजदूरों के अधिकारों पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता. लेकिन तृणमूल की बयानबाजी का मकसद अपनी ही शासन विफलताओं से ध्यान हटाना है.

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