आरजी कर अस्पताल की घटना के बाद गठित किया गया था राष्ट्रीय कार्य बल कोलकाता/नयी दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को चिकित्सा पेशेवरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए गठित राष्ट्रीय कार्य बल (एनटीएफ) को निर्देश दिया कि वह अस्पतालों में सुरक्षा प्रोटोकॉल और लैंगिक हिंसा रोकने संबंधी मुद्दों पर राज्यों व अन्य हितधारकों द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर अपना जवाब आठ सप्ताह के भीतर दाखिल करे. यह कार्य बल शीर्ष अदालत द्वारा उस घटना के बाद गठित किया गया था, जब पिछले वर्ष 20 अगस्त को कोलकाता स्थित आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में एक महिला चिकित्सक के साथ बलात्कार और हत्या की वारदात हुई थी. इस मामले ने देशभर में चिकित्सा समुदाय को झकझोर दिया था और व्यापक विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत हुई थी. न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने सुनवाई के दौरान यह निर्देश जारी किया. इससे पहले अदालत ने दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) सहित देशभर के अस्पतालों को निर्देश दिया था कि वे उन चिकित्सकों की अनधिकृत अनुपस्थिति को नियमित करें, जो इस जघन्य अपराध के खिलाफ प्रदर्शन में शामिल हुए थे. चिकित्सकों के एक संगठन द्वारा अदालत को अवगत कराया गया कि कई अस्पतालों ने 22 अगस्त 2024 के न्यायिक निर्देश के अनुपालन में अनुपस्थित चिकित्सकों की उपस्थिति नियमित कर दी है, लेकिन कुछ अस्पतालों जैसे एम्स दिल्ली ने अभी तक इस अवधि को अनुपस्थित अवकाश के रूप में ही दर्ज किया है. उल्लेखनीय है कि अदालत ने गत वर्ष प्रदर्शन कर रहे चिकित्सकों से भावुक अपील करते हुए कहा था कि न्याय और चिकित्सा को रोका नहीं जा सकता और यह भी स्पष्ट किया था कि ड्यूटी पर लौटने वाले चिकित्सकों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जायेगी. आरजी कर की घटना के बाद पूरे देश में रोष फैल गया था. मामले में कोलकाता की एक निचली अदालत ने 20 जनवरी को दोषी संजय रॉय को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. पीड़िता, जो एक स्नातकोत्तर प्रशिक्षु थी, का शव अस्पताल के सेमिनार कक्ष में नौ अगस्त 2024 को मिला था. अगले दिन पुलिस ने संजय रॉय को गिरफ्तार किया था, जो एक नागरिक स्वयंसेवक के रूप में अस्पताल में कार्यरत था.
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