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मौत के बाद जिंदा हुआ संगीतकार का दिमाग, लैब में रच रहा नये सुर, एआई नहीं ये है लैब-ग्रो ब्रेन का कमाल

संगीतकार Alvin Lucier के खून से लैब में विकसित हुआ मिनी ब्रेन (lab-grow brain), मौत के बाद भी बना रहा रियल टाइम म्यूजिक. जानिए कैसे हुआ यह अनोखा प्रयोग.

Lab-Grow Brain: क्या कोई इंसान मरने के बाद भी संगीत बना सकता है? यह सवाल अब सिर्फ कल्पना नहीं रहा, बल्कि ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों और कलाकारों ने मिलकर इसे हकीकत में बदल दिया है. ‘Revivification’ नाम के एक अनोखे प्रोजेक्ट में दुनिया के पहले ‘लैब-ग्रो ब्रेन’ ने एक मशहूर दिवंगत संगीतकार Alvin Lucier के जैविक सिग्नल्स के जरिए नए संगीत की रचना की है.

विज्ञान और कला का मिलन

ऑस्ट्रेलियाई कलाकार Guy Ben-Ary, Nathan Thompson और Matt Gingold, और University of Western Australia के न्यूरोसाइंटिस्ट Stuart Hodgetts ने मिलकर यह प्रोजेक्ट तैयार किया है. इसमें एक विशेष इंक्यूबेटर में Lucier के खून से विकसित ‘मिनी ब्रेन’ (cerebral organoid) रखा गया है. इस मिनी ब्रेन से निकलने वाले न्यूरल सिग्नल्स को 20 ब्रास प्लेट्स के जरिए ध्वनि में बदला जाता है, जिससे रियल टाइम म्यूजिक बनता है.

Lucier की मंजूरी से उनकी मौत से पहले लिया गया ब्लड

यह कोई AI आधारित साउंड सिमुलेशन नहीं है, बल्कि Lucier की मौत से पहले उनके खून से स्टेम सेल बनाकर तैयार किया गया असली जैविक मस्तिष्क है. इस प्रोजेक्ट में Lucier की पूरी सहमति थी. वह 89 साल की उम्र में भी इस नये प्रयोग को लेकर बेहद उत्साहित थे.

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संगीत या आत्मा की गूंज?

इस प्रोजेक्ट का मकसद Lucier का पुराना संगीत दोहराना नहीं, बल्कि यह दिखाना है कि क्या एक कलाकार की जैविक रचनात्मकता मौत के बाद भी जिंदा रह सकती है?टीम के मुताबिक, यह किसी कलाकार को क्लोन करना नहीं है, बल्कि यह एक ‘postmortem play’ है,जहां मरे हुए शरीर के तत्व, नई धुनों की रचना कर रहे हैं.

AI नहीं, यह है जैविक पुनर्जन्म

यह कोई आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित संगीत नहीं है. यह एक वास्तविक जैविक दिमाग से उपजे न्यूरल सिग्नल्स है. Alvin Lucier की सहमति से किया गया यह प्रयोग कला और विज्ञान का भावनात्मक संगम है. जब दुनिया में Generative AI पर बहस छिड़ी है कि क्या मशीनें इंसानों जैसी सोच सकती हैं, Revivification एक नई दिशा में सवाल खड़ा करता है कि क्या जैविक रूप से पुनर्जीवित दिमाग कल्पना कर सकता है?

क्या कहती है यह खोज?

यह प्रयोग केवल विज्ञान नहीं, मानव चेतना, रचनात्मकता और मृत्यु के पार जीवन की संभावनाओं पर एक गहरा विचार है. शायद विज्ञान इसका “मोल” न माप सके, पर इंसान इसे संवेदनाओं से जोड़कर देख सकता है.

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Rajeev Kumar
Rajeev Kumar
राजीव, 14 वर्षों से मल्टीमीडिया जर्नलिज्म में एक्टिव हैं. टेक्नोलॉजी में खास इंटरेस्ट है. इन्होंने एआई, एमएल, आईओटी, टेलीकॉम, गैजेट्स, सहित तकनीक की बदलती दुनिया को नजदीक से देखा, समझा और यूजर्स के लिए उसे आसान भाषा में पेश किया है. वर्तमान में ये टेक-मैटर्स पर रिपोर्ट, रिव्यू, एनालिसिस और एक्सप्लेनर लिखते हैं. ये किसी भी विषय की गहराई में जाकर उसकी परतें उधेड़ने का हुनर रखते हैं. इनकी कलम का संतुलन, कंटेंट को एसईओ फ्रेंडली बनाता और पाठकों के दिलों में उतारता है. जुड़िए [email protected] पर

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