Bihar Elections 2025: बिहार की राजनीति में चिराग पासवान एक ऐसे नेता के रूप में उभरे हैं, जिन्होंने अपनी राजनीतिक परिवार से आने के बावजूद खुद को साबित किया है. पिता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के निधन के बाद जब लोक जनशक्ति पार्टी का नेतृत्व संकट में था उस वक्त चिराग ने पार्टी को संभाला. पार्टी के पांच सांसदों के साथ छोड़ देने के बावजूद चिराग ने हार नहीं माना और अपने अंदाज में राजनीतिक लड़ाई लड़ते रहे. चाहे गंठबंधन से जुड़ा फैसला हो या अपनी ही NDA सरकार की नीतियों पर सवाल उठाना हो, हर मौके पर चिराग ने पार्टी का मोर्चा थामा है.
2020 की राह चलेंगे चिराग!
राजनीतिक गलियारों में अब एक सवाल बार बार उठाया जा रहा है. क्या चिराग पासवान NDA सरकार की नीतियों पर सवाल उठाकर फिर से उसी रास्ते पर जा रहे है, जैसा उन्होंने 2020 के विधानसभा चुनाव में किया था? क्या वे फिर से गंठबंधन से अलग राह चुनने की ओर बढ़ रहें है? उनके अलग स्टैंड को लेकर चर्चा तेज है कि क्या वह फिर किसी बड़े सियासी निर्णय की तैयारी में हैं.
हाल की घटनाओं पर प्रतिक्रिया
उदाहरण नंबर 1
हाल ही में बिहारशरीफ (नालंदा) के 16 वर्षीय हिमांशु पासवान और 20 वर्षीय अनु कुमार नामक दो युवकों की गोली मारकर हत्या पर उन्होंने प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा कि बिहार में अपराध लगातार बढ़ रहा है और सामाज की सुरक्षा चिंता का विषय बन गया है. इसी प्रकार राजधानी पटना में कारोबारी गोपाल खेमका के मर्डर पर उन्होंने प्रशासन पर सवाल उठाए. उनका कहना है कि अपराधी बेखौफ हो जाए और पुलिस लाचार दिखे तो आम आदमी की सुरक्षा पर गंभीर प्रश्न खड़े होते है.
उदाहरण नंबर 2
चिराग पासवान ने इससे पहले भी नवादा जिले के दलित टोले में आगजनी और फायरिंग की घटना पर सख्ती अपनाई थी. सितंबर 2024 की इस घटना के बाद उन्होंने पीड़ित परिवारों से मिलकर सरकार से जवाब मांगा था और दलित समुदाय की आवाज को उठाया था.
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जीतन राम मांझी से टकराव
इस दौरान उनकी बयानबाजी के कारण जीतन राम मांझी के साथ भी राजनीतिक टकराव की स्थिति बन गई थी. चिराग पासवान की राजनीति का अंदाज हमेशा से ही कुछ अलग रहा है. वे न केवल अपने विचारों को सबके सामने खुलकर पेश करते हैं. बल्कि जरूरत पड़ने पर अपनी ही सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने से भी पीछे नहीं हटते हैं. उनका यह रुख उन्हें भीड़ की राजनीति से अलग पेश करता है. (मृणाल कुमार की रिपोर्ट)
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