Gobindpur Vidhan Sabha Chunav 2025: गोविंदपुर विधानसभा क्षेत्र (नवादा, बिहार) में 76 वर्षों से पुल नहीं बनने के कारण सरकंडा गोबिंदपुर पंचायत के लोगों ने 2025 के चुनाव में वोट बहिष्कार का ऐलान किया है. गांव-गांव जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है.
हर चुनाव में नेताओं ने पुल निर्माण का वादा किया, लेकिन आज तक यह वादा अधूरा है. खासकर सकरी नदी पर पुल के अभाव में दर्जनों गांवों का संपर्क बारिश में कट जाता है.स्थानीय लोगों का कहना हैं “हर साल नेता आते हैं, वादा करते हैं, चले जाते हैं. हम अब झांसे में नहीं आएंगे. जब तक पुल नहीं बनेगा, तब तक वोट नहीं डालेंगे.”
इस सीट पर यादव समुदाय का वर्चस्व रहा है, जिसमें एक ही परिवार ने वर्षों तक राज किया. 2020 में राजद के मोहम्मद कमरान ने यह सिलसिला तोड़ा। क्षेत्र में एससी, मुस्लिम और यादव प्रमुख मतदाता समूह हैं यह देखना रोचक होगा कि 2025 में मतदाता बदलाव की ओर बढ़ेंगे या फिर पारंपरिक राजनीति ही हावी रहेगी?
गोविंदपुर विधानसभा सीट का इतिहास
गोविंदपुर का ऐतिहासिक विवरण सीमित है, लेकिन यहां मौर्य और गुप्तकालीन प्रभाव के प्रमाण मिलते हैं. कई पुरातात्विक स्थलों से इसके गौरवशाली अतीत की झलक मिलती है. 1967 में गोविंदपुर को नवादा लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा बनाकर एक अलग विधानसभा क्षेत्र बनाया गया था, जिसके बाद यहां राजनीति में एक परिवार का प्रभुत्व कायम हो गया.
इस राजनीतिक वर्चस्व की शुरुआत हुई 1969 में जब युगल किशोर यादव ने लोकतांत्रिक कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की. उनके निधन के बाद उनकी पत्नी गायत्री देवी यादव ने उपचुनाव जीता और 1980, 1985, 1990 (कांग्रेस) और 2000 (राजद) में चार बार विधायक बनीं. इसके बाद उनके पुत्र कौशल यादव ने तीन बार जीत दर्ज की (दो बार निर्दलीय और 2010 में जेडीयू से). फिर उनकी पत्नी पूर्णिमा यादव 2015 में कांग्रेस से जीतीं. लेकिन 2020 में यह सिलसिला टूटा जब राजद के मोहम्मद कमरान ने पूर्णिमा यादव को 33,074 वोटों से हराया.
1967 से लेकर अब तक गोविंदपुर विधानसभा क्षेत्र में कुल 15 चुनाव हुए हैं. इनमें कांग्रेस ने 6 बार जीत दर्ज की, निर्दलीयों ने 3 बार, राजद ने 2 बार और लोकतांत्रिक कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल तथा जेडीयू ने 1-1 बार जीत हासिल की.
गोविंदपुर विधानसभा सीट का समीकरण
गोविंदपुर विधानसभा क्षेत्र की एक विशेषता यह है कि यादव समुदाय के अलावा अन्य विजयी उम्मीदवार भी यादव समुदाय से ही रहे हैं, हालांकि वे भिन्न उपनामों का उपयोग करते हैं, जिसकी जनसंख्या 20% से अधिक है. लेकिन अनुसूचित जाति (SC) के मतदाता संख्या में उनसे भी अधिक हैं-25.19% हैं. हालांकि, वे यादवों की तरह संगठित नहीं हैं और अनेक जातियों में विभाजित हैं. मुस्लिम समुदाय के मतदाता भी यहां महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिनकी भागीदारी 13.6% है. यह एक पूर्णतः ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र है, जिसमें एक भी शहरी मतदाता पंजीकृत नहीं है. 2020 के विधानसभा चुनावों में इसके सभी 3,19,130 मतदाता ग्रामीण थे, लेकिन केवल 50.85% मतदान हुआ. 2024 के लोकसभा चुनावों में यह संख्या बढ़कर 3,23,059 हो गई.
गोविंदपुर सीट की साक्षरता दर मात्र 47.56% है, जिसमें पुरुषों की साक्षरता दर 57.10% और महिलाओं की मात्र 37.71% है. इस प्रखंड में कुल 72 गांव हैं, जिनमें जनसंख्या में काफी विविधता है. 3 गांवों में 200 से कम लोग रहते हैं, 28 गांवों की आबादी 200 से 999 के बीच है और 31 गांवों में 1,000 से 4,999 लोग निवास करते हैं. केवल दो गांवों की जनसंख्या 5,000 से अधिक है, जिनमें से एक की आबादी 10,000 से अधिक है.
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2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को गोविंदपुर से कुछ उम्मीदें मिलीं, जब भाजपा के नवादा से विजयी उम्मीदवार विवेक ठाकुर ने राजद के श्रवण कुमार कुशवाहा को गोविंदपुर में केवल 1,617 वोटों से पीछे छोड़ा.
अब 2025 विधानसभा चुनाव की ओर नजरें टिकी हैं. क्या एनडीए यादव परिवार की राजनीतिक विरासत को पूरी तरह तोड़ पाएगा? और क्या मतदाता फिर किसी नए प्रयोग के लिए तैयार होंगे, या पुरानी नीतियों की ओर लौटेंगे?