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Baby John Movie Review: मास एंटरटेनर के नाम पर बकवास

वरुण धवन की फिल्म बेबी जॉन सिनेमाघरों में दस्तक दे चुकी है. साउथ की इस हिंदी रीमेक को देखने का प्लान कर रहे हैं , तो पढ़ लें यह रिव्यु

फिल्म – बेबी जॉन 

निर्माता – मुराद खेतानी और जिओ सिनेमा

निर्देशक -कलिस 

कलाकार -वरुण धवन,कीर्ति सुरेश,वामिका गब्बी, जैकी श्रॉफ, राजपाल यादव,सलमान खान और अन्य 

प्लेटफार्म – सिनेमाघर 

रेटिंग -एक

baby john movie review :एक वक्त हिंदी सिनेमा में साउथ की फिल्मों का रीमेक सुपरहिट फार्मूला माना जाता था, लेकिन बीते कुछ सालों में यह दूरियां पूरी तरह से मिट गई हैं . साउथ सिनेमा हिंदी दर्शकों की पसंद बन चुका है.ऐसे में 2016 में आयी थेरी ,जो यूट्यूब पर भी मौजूद है के हिंदी रीमेक की घोषणा साउथ के डायरेक्टर एटली बॉलीवुड के वरुण धवन के साथ करते हैं तो उनके फ़ैसला सवालों के घेरे में आ जाता है ,हालांकि मेकर्स ने दावा किया था कि यह बस थेरी से प्रभावित भर होगी.निर्देशन की जिम्मेदारी एटली ने नहीं ली, जो ओरिजिनल के डायरेक्टर थे. नयापन जोड़ने के लिए फिल्म में कलिस को निर्देशन की बागडोर दे दी गयी थी. लेकिन फ़िल्म देखते हुए आप इस बात को महसूस करते हैं कि यह फ़िल्म फ्रेम टू फ्रेम कॉपी बनकर रह गई है . फ़िल्म की कहानी की नहीं बल्कि इसका ट्रीटमेंट भी पूरी तरह से आउटडेटेड और लॉजिक से परे है. मेकर्स को यह बात समझने की जरूरत है कि एक्शन दृश्यों को स्टाइलिश और स्वैग के साथ शूट कर भर लेने से कोई फिल्म मास एंटरटेनर नहीं बन जाती है .कुलमिलाकर बेबी जॉन बेहद निराश करती है.

वही पुरानी है कहानी 

फिल्म की कहानी बेबी जॉन (वरुण धवन )की है,जो दक्षिण भारत के किसी जगह पर एक बेकरी चलाता है और अपनी बेटी ख़ुशी (जारा )के साथ एक खुशहाल जिंदगी जी रहा है. यह सब चल रहा होता है कि अचानक बेबी जॉन का छह साल पुराना अतीत सामने आ जाता है. जब वह मुंबई का डीसीपी था और उसका नाम सत्या वर्मा था.जो पूरे शहर में लॉ एंड आर्डर को बहुत ही कूल वाइब्स के साथ मेन्टेन रखता है.फिर क्या हुआ था. जो अपनी पुलिस की नौकरी को छोड़कर बेबी जॉन वह झूठी पहचान को जी रहा है. उसके अतीत में क्या हुआ था.क्या उसका अतीत उसके वर्तमान पर हावी होगा. यही फिल्म की कहानी है.

फिल्म की खूबियां और खामियां

कहानी की बात करें तो ऐसी कहानियां हम साउथ से लेकर हिंदी तक कई फ़िल्मों में देख चुके हैं.पुरानी सी इस कहानी को बोझिल इसका स्क्रीनप्ले बना गया है.स्क्रीनप्ले में खामियां ही खामियां हैं. मुंबई प्रेस कॉन्फ्रेंस में एटली ने दावा किया था कि फिल्म थेरी से प्रभावित भर ह, लेकिन अगर आपने ओरिजिनल देखी है. जो यूट्यूब पर मौजूद है तो यह फिल्म फ्रेम टू फ्रेम कॉपी है. बेटी को स्कूल लेट पहुंचने  से लेकर आखिर में बेटी के किडनैप के बाद विलेन नानाजी समेत उनके सभी गुंडों को उनके अंजाम तक पहुंचाने  तक कहानी वैसे ही घटती है. फिल्म की राइटिंग टीम ने नयापन लाने के लिए बस बच्चियों की तस्करी का मुद्दा कहानी से सरसरी तौर पर जोड़ा गया है. नानाजी के बेटे आश्विन को ओरिजिनल फिल्म में पानी में डुबाकर मारा गया है.बेबी जॉन में जलाकर मारा गया है और अलग के नाम पर ओरिजिनल में क्लाइमेक्स वाले सीन की शूटिंग एक बंद पड़ी मिल में हुई है, जबकि इस फिल्म में कार्गो शिप यार्ड में हुई है.स्क्रीनप्ले में किसी भी चीज को समझाने की जरुरत नहीं समझी गयी है. वामिका गब्बी का किरदार पुलिस ऑफिसर का है. बेबी जॉन के पीछे वह है. उसे किसने भेजा था. क्या नानाजी से जुड़े लोगों को पहले ही मालूम पड़ चुका था कि सत्या वर्मा ज़िंदा है लेकिन कैसे.यह सब दर्शकों को खुद से समझने के लिए मेकर्स ने छोड़ दिया है. ओरिजिनल में यह ट्विस्ट नहीं था तो रीमेक में ट्विस्ट पर काम भी नहीं किया गया है. फिल्म बच्चियों की तस्करी पर है. उसे बस स्क्रीनप्ले में जोड़ दिया गया है. शुरुआत में मांस में से जिस तरह से लड़कियों की तस्करी को दिखाया गया था. लगा था कि इस मुद्दे पर कुछ खास रिसर्च कहानी में दिखेगा लेकिन फिल्म में सन्देश जोड़ना है,इसलिए बस इस पहलू को जोड़ दिया गया है. फिल्म के गीत संगीत की बात करें तो उसमें भी आउटडेटिड ट्रीटमेंट है. हर सिचुएशन पर एक गीत है, जो फिल्म की लेंथ को और बढ़ा गया है. फिल्म के संवाद ठीक  ठाक हैं ,तो फिल्म की एडिटिंग इसको और कमजोर बनाती है.

कमजोर स्क्रीनप्ले ने एक्टर्स को भी किया कमजोर 

अभिनय की बात करें तो  वरुण धवन इस तरह के एक्शन में पहली बार नजर आए हैं .उनकी मेहनत दिखती है, लेकिन पर्दे पर कुछ भी प्रभावी नहीं बन पाया है, जिससे उनका स्वैग और स्टाइलिश अंदाज कुछ खास असर नहीं छोड़ता है. फिल्म में कीर्ति सुरेश और वामिका गब्बी हैं, लेकिन दोनों ही अभिनेत्रियों को फिल्म में करने को कुछ खास नहीं था.हालांकि दोनों ही अभिनेत्रियों ने अपनी -अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है.ख़ुशी की भूमिका में नजर आयी जारा बहुत प्यारी हैं, लेकिन उनके हिंदी डिक्शन पर मेकर्स को थोड़ा और काम करने की जरुरत थी.जैकी श्रॉफ का किरदार टिपिकल कैरिकेचर विलेन टाइप में है. उनके किरदार को फ़िल्म में ठीक तरह से डेवलप भी नहीं किया गया है.अभिनेता राजपाल यादव एक अलग अंदाज में कुछ दृश्यों में दिखें हैं. वह जरूर प्रभावित करते हैं. सलमान खान कैमियो भूमिका में चित परिचित अंदाज में ही दिखें हैं.नजर आये हैं. बाकी के कलाकार ठीक ठाक हैं.

Urmila Kori
Urmila Kori
I am an entertainment lifestyle journalist working for Prabhat Khabar for the last 12 years. Covering from live events to film press shows to taking interviews of celebrities and many more has been my forte. I am also doing a lot of feature-based stories on the industry on the basis of expert opinions from the insiders of the industry.

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