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Chhaava Movie Review:विक्की कौशल और अक्षय खन्ना का सशक्त अभिनय लेकिन स्क्रीनप्ले रह गया कमजोर 

विक्की कौशल और अक्षय खन्ना स्टारर फिल्म छावा देखने का मन बना रहे हैं तो इससे पहले पढ़ लें यह रिव्यु

फिल्म- छावा

निर्माता- मैडॉक फिल्म्स 

निर्देशक- लक्ष्मण उतेकर 

कलाकार- विक्की कौशल,अक्षय खन्ना,रश्मिका मंदाना,आशुतोष राणा,विनीत कुमार सिंह ,दिव्या दत्ता और अन्य 

प्लेटफार्म- सिनेमाघर 

रेटिंग- ढाई 


chhaava movie review :सरदार उधम सिंह ,सैम बहादुर के बाद अभिनेता विक्की कौशल की तीसरी बायोपिक फ़िल्म छावा है. हमेशा की तरह  एक बार भी वह किरदार में पूरी तरह से रच बस गए हैं, लेकिन उन्हें लेखन टीम का उतना साथ नहीं मिल पाया है. यह फिल्म शिवाजी सावंत की किताब छावा पर आधारित है. निर्देशक लक्ष्मण उतेकर की यह पहली पीरियड फिल्म है. अपनी लेखन टीम के साथ वह किताब को एक बेहतरीन स्क्रीनप्ले में ढालने में चूक गए हैं. स्क्रीनप्ले में वॉर बार बार डिस्कस किया गया है. एक सशक्त स्क्रीनप्ले की कमी खलती है.जिस वजह से वजह से यह ऐतिहासिक कहानी मनोरंजन तो करती है लेकिन यादगार जैसा कुछ परदे पर नहीं रच पाया है.जिसकी उम्मीद की जा रही थी. 


महाराज संभाजी राजे के शौर्य और बलिदान की है कहानी 

संभाजी राजे महाराज की बायोपिक फ़िल्म छावा है . फिल्म की कहानी की शुरुआत इस बात से होती है कि छत्रपति शिवाजी महाराज नहीं रहे.  इस खबर से मुगलिया शासक औरंगजेब (अक्षय खन्ना ) खुश हो जाता है कि अब दक्कन पर पूरी तरह से उसका राज होगा. यह खुशी उस वक्त फीकी पड़  जाती है, जब औरंगजेब को मालूम पड़ता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे संभाजी महाराज पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए ना सिर्फ मुगलों से लोहा लेना करना शुरू कर दिया है बल्कि उसके सबसे पसंदीदा शहर बुरहानपुर पर हमला कर उसे तहस-नहस भी कर दिया है. इस शहर की सुरक्षा में तैनात मुगलों की सेना का भी खात्मा हो गया है. इससे औरंगजेब और संभाजी में ठन जाती है.औरंगजेब कसम खाता है कि जब तक वह संभाजी को उसके अंजाम तक नहीं पहुंचा देता है. वह अपने ताज को नहीं पहनेगा, लेकिन संभाजी औरंगजेब के राहों में रोड़ा बना रहता है.इसमें नौ साल गुजर जाते हैं आखिरकार  साजिश रचकर संभाजी महाराज को बंदी बना लिया जाता है. उन पर अत्याचार शुरू कर दिया जाता है. तरह तरह के अत्याचार से गुजरने के बाद संभाजी महाराज की मौत हो जाती है लेकिन आखिर में हारा हुआ औरंगजेब नजर आता है.वह कहता भी है कि संभाजी जैसी उसकी कोई एक औलाद क्यों नहीं हुई . 


फिल्म की खूबियां और खामियां

यह फिल्म इतिहास के उस योद्धा के शौर्य और बलिदान की कहानी है, जिसे महाराष्ट्र की सीमाओं से परे भी सभी को जानने की जरुरत है.जिसके लिए इस फिल्म के मेकर्स बधाई के पात्र है. मनोरंजन के पहलुओं के मद्देनजर इसका रिव्यु करें तो  फ़िल्म की कहानी की बात करें तो फ़िल्म की शुरुआत में दिए गए  डिस्क्लेमर में  ही इस बात की जानकारी दे दी है कि फिल्म की कहानी शिवाजी सावंत के मराठी उपन्यास छावा पर आधारित है लेकिन फिल्म देखते हुए कहानी के नाम पर सिर्फ यही बात दिखती है कि संभाजी महाराज की ज़िंदगी से जुड़ी  प्रचलित घटनाओं को जोड़कर फिल्म में दिखाया गया है. वो भी सभी की सभी युद्ध से ही जुड़ी हुई हैं. उनकी वीरता को ही कहानी का आधार बनाया गया है. उनके बचपन के दर्द को कहानी में उस तरह से नहीं पिरोया गया है. जैसी की जरुरत थी. फिल्म का फर्स्ट हाफ बेहद कमजोर रह गया है. उस तरह से कहानी और किरदार नहीं जुड़ते हैं , जैसी जरुरत थी.फिल्म में सब प्लॉट्स की भी कमी है.फिल्म में विनीत कुमार सिंह और आशुतोष राणा के किरदार को उस तरह से परदे पर जगह नहीं मिली है,जितनी कहानी की जरुरत थी.  फिल्म सेकेंड हाफ में रफ़्तार पकड़ती है. खासकर संभाजी को बंदी बनाये जाने वाले दृश्य से. उसके बाद यातना वाला दृश्य दिल को छूता है और आपको संभाजी के प्रति गर्व का भी अनुभव करवाता है. बैकग्राउंड म्यूजिक फर्स्ट हाफ में थोड़ा ज्यादा लाउड रह गया है.वह कानों को अखरता है. गीत संगीत औसत रह गया है. फिल्म का एक्शन सीक्वेंस शानदार और स्टाइलिश है. क्लाइमेक्स वाला एक्शन सीन जानदार है. वह फिल्म को एक लेवल अप पहुंचाता है. इसके साथ ही फिल्म में जमकर खून खराबा है, जो कई बार आपको दूसरी तरफ देखने को मजबूर कर देग.। फिल्म के संवाद की बात करें तो कुछ संवाद अच्छे बन पड़े हैं, जो थिएटर से बाहर निकलने के बाद भी याद रह जाते हैं.एक दृश्य में औरंगजेब कहता है कि हमसे हाथ मिला लो. बस तुम्हे धर्म बदलना पड़ेगा.इस पर संभाजी महाराज कहते हैं कि हमसे हाथ मिलो लो।  मराठों की की तरह आ जाओ.  जिंदगी बदल जायेगी और तुम्हे धर्म भी नहीं बदलना पड़ेगा. फिल्म के कैमरावर्क की तारीफ बनती है,जो फिल्म को और समृद्ध बना गया है.


विक्की कौशल और अक्षय खन्ना का जानदार अभिनय 

विक्की कौशल मौजूदा दौर के उन एक्टर्स में शुमार हैं, जिनका किरदारों को आत्मसात करने में कोई सानी नहीं है. अपने अभिनय,बॉडी लैंग्वेज से लेकर अपनी आवाज तक से उन्होंने फिल्म के शीर्षक को जीवंत किया है.लोहे की बेड़ियों में जब उन्हें घसीटा जाता है तो वाकई वह एक शेर की तरह ही नजर आते हैं.इमोशनल सीन्स में भी वह दिल को छू जाते हैं.अक्षय खन्ना ने अभिनेता के तौर एक बार फिर अपनी काबिलियत को साबित  किया है.अपने किरदार को उन्होंने पूरी शिद्दत के साथ निभाया है. उन्हें फिल्म में गिनती के डायलॉग मिले हैं, लेकिन वह अपनी आंखों और चेहरे के हाव भाव से औरंगजेब की क्रूरता बखूबी बयान करते हैं.फिल्म में रश्मिका मंदाना अनफिट सी लगती हैं.उनके परफॉरमेंस में  वह परिपक्वता नहीं है,जो किरदार की जरुरत थी और एक बार फिर उनकी संवाद अदाएगी कमजोर रह गयी है.विनीत कुमार सिंह और आशुतोष राणा अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय करते हैं तो डायना पेंटी और दिव्या दत्ता के लिए फिल्म में करने को कुछ ख़ास नहीं था.बाकी के किरदार ठीक ठाक रहे हैं. 


Urmila Kori
Urmila Kori
I am an entertainment lifestyle journalist working for Prabhat Khabar for the last 12 years. Covering from live events to film press shows to taking interviews of celebrities and many more has been my forte. I am also doing a lot of feature-based stories on the industry on the basis of expert opinions from the insiders of the industry.

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