Maa Movie : सिनेमा और मां का रिश्ता अटूट रहा है.बदलते समय के साथ मां की परिभाषा सिनेमा में बदलती गयी है लेकिन हर परिभाषा में एक बात एक जैसी थी कि देखकर लगा कि हां मां ऐसी ही होती है. काजोल स्टारर फिल्म मां ने आज सिनेमाघरों में दस्तक दी है. यह एक ऐसी मां की कहानी है, जो अपनी बच्ची को बचाने के लिए दैत्य का सामना कर सकती है. फिल्म में हॉरर के साथ -साथ माइथोलॉजी भी जुड़ी हुई है.फिल्म का कांसेप्ट प्रभावी है,लेकिन स्क्रीनप्ले और वीएफएक्स इस कांसेप्ट और कलाकारों के परफॉरमेंस के साथ न्याय नहीं कर पाया है. जिस वजह से यह एक औसत फिल्म बनकर रह गयी है.
ये है फिल्म की कहानी
फ़िल्म की कहानी बात करें तो यह कोलकाता के काल्पनिक जगह चंदरपुर की कहानी है. कहानी की शुरुआत मां काली की पूजा से होती है और एक महिला प्रसव पीड़ा में है. एक बेटे को जन्म देती है, जिससे सभी के चेहरे पर राहत देखने को मिलती है लेकिन तभी मालूम पड़ता है कि जुड़वां बच्चे हैं और दूसरी बेटी होती है, जिसके बाद काली मां की आज्ञा बताकर उसकी बलि दे दी जाती है और कहानी 40 साल आगे बढ़ जाती है. अम्बिका (काजोल )एक स्कूल टीचर है. वह मां काली और दैत्य रक्तबीज की कहानी बच्चियों को सुना रही है. मालूम पड़ता है कि उसकी बहुत ही हैप्पी फॅमिली है.बेटी श्वेता (खिरीन )और पति शुभंकर (इंद्रनील सेनगुप्ता )है. यह बात भी सामने आती है कि 40 साल पहले जिस लड़के का जन्म हुआ था. वह शुभंकर ही है. शुभंकर और अम्बिका ने चंदरपुर से पूरी तरह से रिश्ता तोड़ लिया है क्योंकि वह एक दैत्य से अपनी बेटी को दूर रखना चाहते हैं लेकिन शुभंकर की मौत हो जाती है और ना चाहते हुए मां और बेटी को चंदरपुर जाना पड़ जाता है. वहां जाकर एक के बाद एक राज सामने आते हैं. क्या है दैत्य से श्वेता और चंदरपुर का रिश्ता. क्या अम्बिका अपनी बेटी की रक्षा दैत्य से कर पाएगी. मां काली और असुर रक्तबीज इस कहानी से किस तरह से जुड़े हुए हैं.यह सब सवालों के जवाब जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी.
फिल्म की खूबियां और खामियां
मां भारत की पहली माइथोलॉजिकल हॉरर जॉनर की फिल्म होगी. फिल्म में दिखाया गया है कि असुर रक्तबीज का जब मां संहार कर रही थी, उसकी खून की एक बूंद बंगाल के चंदरपुर में गिरती है और इस राक्षस का जन्म होता है. फिल्म के लेखकों ने इस बात को बहुत विश्वसनीय तरीके से दर्शाया है हालांकि फिल्म का कांसेप्ट सुनने में जितना प्रभावी लग रहा है. स्क्रीनप्ले में वह प्रभाव नहीं बन पाया है.फिल्म की कहानी टीवी शो से मिलती जुलती दिखती है, जब कोई राक्षस अपने वंश को आगे बढ़ाना चाहता है.ताकि पूरी दुनिया पर बुरी शक्तियों का राज हो.अनुष्का की फिल्म परी से भी यह फिल्म प्रेरित लगती है.फिल्म फर्स्ट हाफ खिंच गया है.सेकेंड हाफ से फिल्म रफ़्तार पकड़ती है.जिसके बाद फिल्म आपको पूरी तरह से बांधे रखती है लेकिन क्लाइमेक्स उस स्तर का नहीं बन पाया है.जैसी उम्मीद थी.पुरानी हवेली, डरावने साये, पुराना पेड़ ये सब फिल्म में है,लेकिन फिल्म देखते हुए आपको यह महसूस होता है कि हॉरर की कमी रह गयी है.वीएफएक्स जो कमजोर रह गया है.दैत्य का लुक सिरहन पैदा करने के लिए काफी होना चाहिए लेकिन वह टीवी सीरियलों में देखा दिखाया सा है.फिल्म का एक्शन दशकों पुरानी स्पाइडरमैन और ऑक्टोपस वाली फिल्म से कुछ कुछ प्रेरित लगता है. मां शैतान यूनिवर्स की फिल्म है. अजय देवगन,आर माधवन के अलावा अभिनेत्री जानकी बोडीवाला का अभिनय उस फिल्म को खास बनता है लेकिन श्वेता की भूमिका में नजर आयी अभिनेत्री केरिन परदे पर वह अभिनय नहीं कर पायी है, जो फिल्म की जरूरत थी. उनसे ज्यादा प्रभावी दीपिका की भूमिका में नजर आयी चाइल्ड एक्ट्रेस थी.इसके अलावा स्क्रीनप्ले में मां और बेटी की बीच की बॉन्डिंग को भी थोड़ा और दिखाने की जरूरत थी. छोरी फेम निर्देशक विशाल फुरिया फिल्म के निर्देशन से जुड़े हैं, फिल्म कई मौकों पर छोरी की याद दिलाती है. बाकी के पहलू कहानी के अनुरूप हैं.
काजोल और रोनित का बेजोड़ अभिनय
अभिनेत्री काजोल उम्दा कलाकार हैं. एक बार फिर उन्होंने साबित किया है. उन्होंने अम्बिका की भूमिका में अपने मां वाले सारे इमोशन को निचोड़कर रख दिया है.प्रेडिक्टेबल क्लाइमेक्स होने के बावजूद उनका अभिनय ही है, जो आपको पूरी तरह से बांधे रखता है. इसमें श्रेय रोनित रॉय को भी जाता है ,उनका अभिनय फिल्म की यूएसपी है. यह कहना गलत ना होगा.थिएटर आर्टिस्ट विभा रानी ने अपने अभिनय और प्रॉस्थेटिक मेकअप से फिल्म के सस्पेंस और हॉरर दोनों को बढ़ाया है. उनकी तारीफ बनती है. इंद्रनील सेनगुप्ता और दिब्येंदु का रोल छोटा है,लेकिन उनका काम अच्छा है.बाकी कलाकारों ने भी अपनी -अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है.