Mere Husband Ki Biwi:निर्देशक मुदस्सर अजीज का नाम कई कॉमेडी फिल्मों के लेखन और निर्देशन से जुड़ा हुआ है. उनकी आज रिलीज हुई फिल्म मेरे हसबैंड की बीवी कॉमेडी के साथ -साथ नो ब्रेनर फिल्मों की कैटेगरी में शुमार होती है, जिसमें फिल्म को देखते हुए ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है, लेकिन इस कैटेगरी की फिल्में का मनोरंजन का वादा होता है, लेकिन मेरे हसबैंड की बीवी की प्रेडिक्टेबल कहानी और कमजोर स्क्रीनप्ले ने मनोरंजन के वादे को भी अधूरा ही छोड़ गयी है.मुश्किल से कुछ दृश्यों या संवाद गुदगुदाते हैं
जितेंद्र और डेविड धवन की फिल्मों से मिलती है कहानी
फिल्म की कहानी की बात करें तो अंकुर चड्ढा (अर्जुन कपूर) की कहानी है, जो प्रभलीन कौर (भूमि) से पांच साल के प्यार और शादी के बाद तलाक से जूझता नजर आ रहा है. शादी की बुरी यादों से वह चाहकर भी नहीं निकल पा रहा है. उसका दोस्त (हर्ष गुजराल) इस फेज से निकलने में उसकी मदद कर रहा है,लेकिन सब कुछ बेअसर है. इसी बीच अपने पिता के बिजनेस के लिए अंकुर ऋषिकेश जाता है. वहां उसकी मुलाक़ात उसके एक समय कॉलेज का क्रश रही अंतरा खन्ना (रकुलप्रीत) से होती है और दोनों में प्यार हो जाता है.उनकी शादी होने वाली ही होती है कि प्रभलीन उसकी जिंदगी में वापस लौट आती है. दरअसल एक एक्सीडेंट में प्रभलीन की आधी याददाश्त चली गयी है.उसे अंकुर के साथ अपनी शादी तो याद है लेकिन तलाक नहीं।दोनों अभिनेत्रियों में अंकुर को पाने की होड़ मच जाती है.आखिर में अंकुर किसका होता है. यही आगे की कहानी है.
खूबियां और खामियां
फिल्म का कांसेप्ट चंद शब्दों में प्रभावित करता है. उम्मीद दी थी कि जमकर कॉमेडी होगी.फिल्म का ट्रीटमेंट पूरी तरह से कॉमेडी ही है,लेकिन परदे पर वह आपको एंटरटेन नहीं कर पाया है. मुश्किल से कुछ दृश्यों या संवाद गुदगुदाते हैं. फिल्म को लव सर्किल कहकर प्रचारित किया गया है लेकिन यह फिल्म लव ट्रायंगल है और 80 और 90 के दशक में जितेन्द्र स्टारर फिल्मों से लेकर डेविड धवन निर्देशित फिल्मों में यह मसाला जमकर इस्तेमाल में लाया गया है. वही मसाले फिल्म में फिर से नजर आये हैं. हीरो को पाने के लिए दो अभिनेत्रियों के दांव पेंच की जंग हम कई फिल्मों में देख चुके हैं..फिल्म की कहानी में कई सवालों के जवाब नहीं दिए गए हैं. प्रभलीन की याददाश्त वापस कब आ गयी थी. शादी टूटने के बाद प्रभलीन के किरदार को क्यों अंकुर वापस चाहिए होता है, जबकि उसकी जिंदगी में आदित्य सील था. फिल्म के क्लाइमेक्स के एक सीन में वह कहती भी है कि देखूं मेरे पीछे वो आ रहा है या नहीं. कहानी और स्क्रीनप्ले में इसको दिखाने की जरूरत नहीं समझी गयी है. फिल्म रिश्ते और शादी पर अपनी राय रखने की कोशिश करती है. स्क्रीनप्ले की सबसे अच्छी बात ये है कि इसमें किसी को भी विलेन नहीं बनाया गया है. बड़े आराम से भूमि के किरदार को विलेन बनाया जा सकता था,लेकिन लेखन टीम ने ऐसा नहीं किया है.फिल्म इस बात को पुख्ता करती है कि शादी लोगों के बीच होती है और नहीं चलती तो दो लोग ही उसके लिए जिम्मेदार होते हैं.फिल्म का गीत संगीत कहानी के साथ न्याय करता है.ऐसी फिल्मों की मांग खूबसूरत लोकेशंस होते हैं और इस फिल्म में उसकी पूरी आपूर्ति हुई है.ऋषिकेश से लेकर स्कॉटलैंड तक में हुई है.
कलाकारों का सधा हुआ अभिनय
अर्जुन कपूर अपने किरदार के साथ न्याय करते हैं. वह प्रताड़ित पुरुष के दर्द को कॉमेडी और इमोशन दोनों के साथ जीते नजर आये हैं.भूमि इस फिल्म में लाउड किरदार में दिखती हैं और उन्होंने बहुत ही मजेदार ढंग से अपना किरदार निभाया है.रकुलप्रीत अपने चित परिचित अंदाज में नजर आयी हैं. फिल्म में उनके करने को ज्यादा कुछ नहीं था हालांकि फिल्म में वह बेहद आकर्षक नजर आयी हैं.हर्ष गुजराल की एक्टिंग अच्छी रही है.बाकी के किरदारों ने अपने – अपने स्क्रीन स्पेस के साथ न्याय किया है.