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game changer movie review:कमजोर कहानी और आउटडेटिड ट्रीटमेंट ने बिगाड़ा गेम चेंजर का पूरा गेम

इस वीकेंड रामचरण स्टारर पैन इंडिया फिल्म गेम चेंजर देखने का प्लान कर रहे हैं, तो इससे पहले पढ़ लें ये रिव्यु

फिल्म – गेम चेंजर
निर्माता -दिल राजू और शिरीष
निर्देशक – शंकर
कलाकार -राम चरण,कियारा आडवाणी, अंजलि, समुथिरकानी, एस जे सूर्या, श्रीकांत, सुनील, जयराम, नवीन चंद्र और अन्य
प्लेटफार्म -सिनेमाघर
रेटिंग:डेढ़

game changer movie review :पैन इंडिया फिल्में इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है. बीते साल रिलीज हुई पैन इंडिया फिल्म पुष्पा 2 की बॉक्स ऑफिस पर कमाई अभी थमी भी नहीं है और इस नए साल की शुरुआत में एक और पैन इंडिया फिल्म गेम चेंजर ने दस्तक दे दी है. फिल्म का बजट 450 करोड़ बताया जा रहा है.फिल्म के निर्देशक शंकर हैं और फिल्म का चेहरा ग्लोबल स्टार राम चरण हैं. वो भी भी दोहरी भूमिका में ,जिनकी फिल्म आरआरआर के बाद रुपहले परदे पर वापसी हुई है, लेकिन यह सब पहलू मिलकर भी गेम चेंजर को एंटरटेनिंग अनुभव नहीं बना पाए हैं क्योंकि कहानी और स्क्रीनप्ले बेहद कमजोर हैं और उस पर आउटडेटिड ट्रीटमेंट ने फिल्म के अनुभव को बोझिल बना दिया है.

नायक और शिवाजी जैसी फिल्मों की याद दिलाती है कहानी

निर्देशक शंकर के करियर में नजर डालें तो उनकी फिल्मों की कहानी का आधार भ्रष्टाचार रहा है. गेम चेंजर भी इस मामले में अपवाद नहीं है. फिल्म की कहानी राम नंदन (राम चरण) की है. वह एक आईएएस अधिकारी है. फिल्म का नायक है,तो एक ईमानदार होना ही है. वह राज्य को भ्रष्टाचार मुक्त बनाना चाहता है. इस बीच उसका मुकाबला राज्य के मुख्यमंत्री के बेटे मोपिदेवी (एसजे सूर्या) से होता है. इनके बीच खींचतान चल ही रही होती है कि अचानक सीएम(श्रीकांत ) की मौत हो जाती है,लेकिन सीएम अपनी मौत से पहले अपने बेटों के बजाय राम नंदन को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर देते हैं.इसके पीछे की वजह क्या है. क्या राम नंदन के परिवार का कुछ अतीत है.क्या सीएम की कुर्सी पर बैठ कर वह करप्शन को खत्म कर पायेगा. राम की राह क्या मोपिदेवी आसान रहने देगा.इन सब सवालों के जवाब फिल्म की कहानी आगे देती है.

फिल्म की खूबियां और खामियां

साउथ की फिल्म है, तो नायक आम जनता का मसीहा बनेगा ही. यहां भी है. आईएएस है और वह अपने उसी पावर के जरिये करप्शन का खात्मा कर रहा है इलेक्शन कमीशन चाहे तो करप्ट नेताओं पर अंकुश लगा सकती है. फिल्म में इस पहलु को भी जगह मिली है. फिल्म का कांसेप्ट सुनने में एक बार को अच्छा लग सकता है,लेकिन इस पर हज़ारों फिल्में बन चुकी हैं. खुद शंकर की कई फिल्में पॉलिटिक्स में करप्शन पर बन चुकी हैं.फिल्म का विषय पुराना है तो इसका ट्रीटमेंट उससे भी ज्यादा आउटडेटिड लगता है. दो घंटे 45 मिनट की इस फिल्म का पहला भाग बहुत ज्यादा लेंथी हो गया है. कियारा और रामचरण का रोमांटिक ट्रैक 90 के दशक की फिल्मों का फील लिए लगता है. सुनील की कॉमेडी भी अपील नहीं करती है.इंटरवल के ठीक पहले फिल्म उम्मीद जगाती है, फ्लैशबैक में दिखाया गया राम चरण का किरदार कहानी के प्रभाव को बढ़ता है,लेकिन आधे घंटे बाद फिर से कहानी और स्क्रीनप्ले औंधे मुंह गिर पड़ती हैं.फिल्म को अपन्ना की कहानी पर फोकस करने की जरुरत थी. अगर वो कहानी फिल्म का आधार बनती तो फिल्म में मजबूती आ सकती थी, लेकिन उस कहानी और उससे जुड़े किरदारों को ज्यादा स्पेस मिल पाया है. फिल्म एडिटिंग के लिहाज से बेहद कमजोर रह गयी है. सीन्स को देखते हुए महसूस होता है कि यह तो अचानक से शुरू हो गया और ये अचानक से खत्म हो गया है. फिल्म के गीत संगीत की बात करें तो इसकी बेहद चर्चा हुई थी. फिल्म के गानों का ही बजट 45 करोड़ बताया गया था. फिल्म देखते हुए यह बात शिद्दत से महसूस होती है कि इनकी जरुरत नहीं थी. इन्होने फिल्म के बजट को बढ़ाने के साथ -साथ फिल्म की लम्बाई को बढ़ाने का काम किया है.एक भी गाने या उसकी शूटिंग से जुड़ी भव्यता परदे पर कुछ खास नहीं छोड़ पायी है.तकनीकी पहलू में हमेशा कुछ खास करने वाले शंकर इस फिल्म में अपने जादू को दोहरा नहीं पाए हैं. एक्शन रूटीन हैं .संवाद भी प्रभावी नहीं बनें हैं।

दोहरी भूमिका में जमें हैं रामचरण

राम चरण फिल्म में दोहरी भूमिका में है. दोनों ही भूमिका में उन्होंने छाप छोड़ी है, लेकिन फ्लैशबैक वाले किरदार में उनका अभिनय निखकर सामने आया है. करप्ट नेता की भूमिका में एस.जे सूर्या ने प्रभावित किया है, लेकिन उनकी हिंदी डबिंग पर थोड़ा और काम करने की जरुरत थी.कियारा आडवाणी को फिल्म में करने को ज्यादा कुछ नहीं था. फिल्म की दूसरी अभिनेत्री अंजलि ने सीमित स्क्रीन स्पेस में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है.बाकी के किरदार अपनी -अपनी भूमिका में ठीक ठाक रहे हैं.

Urmila Kori
Urmila Kori
I am an entertainment lifestyle journalist working for Prabhat Khabar for the last 12 years. Covering from live events to film press shows to taking interviews of celebrities and many more has been my forte. I am also doing a lot of feature-based stories on the industry on the basis of expert opinions from the insiders of the industry.

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