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Sector 36 Movie Review: दहशत, क्रूरता के साथ सिस्टम की नाकामी का पता है ‘सेक्टर 36’

ओटीटी प्लेटफार्म नेटफ्लिक्स पर विक्रांत मैसी और दीपक डोब्रियाल की फिल्म सेक्टर 36 स्ट्रीम कर रही है. अगर वीकेंड में इस फिल्म को देखने का मन बना रहे हैं ,तो इस रिव्यु से जान लीजिए क्या है खास और कहां नहीं बात

फिल्म :सेक्टर 36 

निर्माता :मैडॉक फिल्म्स 

निर्देशक :आदित्य निम्बालकर 

कलाकार :विक्रांत मैसी, दीपक डोब्रियाल,आकाश खुराना, दर्शन जरीवाला और अन्य

प्लेटफार्म :नेटफ्लिक्स

रेटिंग – चार

sector 36:सिनेमा का सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं है. कई बार यह समाज को आइना दिखाते हुए अंतर्मन को भी झकझोर देता है.विक्रांत मैसी की आज रिलीज हुई फिल्म सेक्टर 36 यही काम करती है.फिल्म की कहानी को कई असल घटनाओं से प्रेरित इसके मेकर्स बताते हैं.उनकी अपनी लीगल मजबूरियां होंगी ,लेकिन फिल्म देखते हुए आपको यह बात समझ आ जाती है कि यह कई असल घटनाओं पर नहीं बल्कि  2006 के निठारी कांड की घटना पर ही पूरी तरह से आधारित है, जिसने उस वक़्त पूरे देश को हिला कर रख दिया था.वैसे इस फिल्म का मूल आधार 2006 के साथ 11 महीने पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा निठारी के मुख्य अभियुक्तों सुरिंदर कोहली और मनिंदर पंढेर को सबूतों के अभाव में बरी कर देना भी बना है, हालांकि सुरिंदर कोहली को बरी कर देने के फैसले के खिलाफ सीबीआई सुप्रीम कोर्ट पहुँच गयी है.मामला विचारधीन है.वैसे फिल्मी रूपांतरण  की बात करें तो यह सिर्फ एक सीरियल किलर और उसके मनोदशा की कहानी भर नहीं है ,बल्कि यह फिल्म अमीर गरीब के बीच की खाई और सिस्टम की नाकामियों पर भी चोट करते हुए कुछ जरुरी सवाल छोड़ जाती है.फिल्म की सबसे बड़ी यूएसपी इसके एक्टर्स हैं. विक्रांत मैसी और दीपक डोब्रियाल का जबरदस्त अभिनय फिल्म से आपको शुरू से आखिर तक जोड़े रखता है.


समाज के अंधेरे पहलुओं पर रोशनी डालती है कहानी 

फिल्म के पहले ही सीन में क्रूरता अपने चरम पर दिखती है. प्रेम सिंह (विक्रांत मैसी )कसाई की तरह एक बेसुध बच्ची को टुकड़ों में काट रहा है और कहानी एक पुलिस स्टेशन में पहुंच जाती है.राजीव कैम्प से बच्चे गायब हो रहे हैं और पूरा थाना मिसिंग बच्चों की तस्वीरों से भरा पड़ा है,लेकिन थाना प्रभारी पांडे (दीपक डोब्रियाल) इन सबसे बेफिक्र है.वह इन अपराधों को तब तक हल्के में लेता है,जब तक की उसकी बेटी सीरियल किलर प्रेम सिंह का शिकार होते – होते नहीं बचती है,जिसके बाद सिस्टम के हाथ की कठपुतली पांडे अपने अंदर के सिस्टम की सुनना शुरू कर देता है. उसकी तलाश असली अपराधी को खोजने की शुरू हो जाती है और उसकी तलाश उसे प्रेम सिंह और उसके मालिक बस्सी (आकाश खुराना )तक पहुंचाती है. लेकिन उन्हें उनके अपराध की सजा दिलाना आसान नहीं है.क्योंकि बस्सी की पहचान ऊपर तक है और नीचे तबके के बच्चों मौत से किसी को फर्क नहीं पड़ता है. क्या पांड़े अपने अंदर के सिस्टम को सुनते हुए समाज के सिस्टम को बदल पायेगा या उसको भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा इसके लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.फिल्म का अंत में सीक्वल की गुंजाईश भी ओपन रखी गयी है.

फिल्म की खूबियां और खामियां

फिल्म के ट्रेलर को देखने से यह एक सीरियल किलर की कहानी लग रही है, लेकिन फिल्म के पहले ही दृश्य में यह बात साफ़ कर दी गयी है कि सीरियल किलर कौन है.आमतौर पर इस जॉनर की फिल्मों में सीरियल किलर और पुलिस के बीच चूहे बिल्ली के खेल को दिखाया जाता है, लेकिन इस फिल्म का ट्रीटमेंट ऐसा नहीं है. यह साइको किलर के अँधेरे अतीत को सामने लाने के साथ – साथ सिस्टम के भ्रष्टाचार को भी दिखाती है हालांकि मेकर्स ने इस बात का भी पूरा ध्यान रखा है कि विक्रांत के किरदार को किसी भी हमदर्दी के साथ पेश न किया जाए.फिल्म आमिर गरीब की खाई को फिल्म में मजबूती से दिखाती है. अमीर घर का बेटा गायब होने पर शहर में पुलिस स्टेट हंट ऑपेरशन शुरू हो जाता है और गरीब के बेटी या बेटे के गायब होने पर पुलिस एफआईआर तक लिखने से हिचकिचाती है. फिल्म में पुलिस को रियलिस्टिक ट्रीटमेंट दिया गया है. एक संवाद में कहा गया है कि आईपीएस का मतलब अब इंडियन पॉलिटिशियन सर्विस हो गया है. यह भी दिखाया गया है कि राजीव कैम्प में डेढ़ लाख से अधिक लोग रहते हैं और इन डेढ़ लाख लोगों के सुरक्षा के लिए तीन पुलिस वाले बस थाने में है.फिल्म के स्क्रीनप्ले की अपनी खामियां भी हैं. इसमें ठहराव की कमी खलती है. सबकुछ जल्दी जल्दी एक के बाद एक घटित होता चला जा रहा है. ह्यूमन ट्रैफिकिंग के एंगल पर थोड़ा और काम करने की जरुरत थी.फिल्म के स्क्रीनप्ले में प्रेम का पकड़ा जाना और उसका आसानी से कबूलनामा कर लेना भी अखरता है. फिल्म की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है.बैकग्राउंड म्यूजिक इसके विषय को और धारदार बनाता है.बाकी के पहलु भी अच्छे बन पड़े हैं.

विक्रांत मैसी और दीपक डोब्रियाल का यादगार परफॉरमेंस 

अभिनय की बात करें तो विक्रांत मैसी के अभिनय के रेंज को यह फिल्म एक पायदान ऊपर ले जाती है. वह सायको किलर के तौर पर फिल्म में अपने अभिनय से डराने और दहशत पैदा करने में कामयाब रहे हैं. दीपक डोब्रियाल भी अपने अभिनय से छाप छोड़ते हैं. इस फिल्म में वे अपने चरित्र में कई शेड्स दिखाने में कामयाब हुए हैं.पुलिस स्टेशन में विक्रांत मैसी के कबूलनामे वाले दृश्य में दीपक डोब्रियाल के चेहरे का शून्य भाव बतौर अभिनेता उनकी काबिलियत को दर्शाता है.आकाश खुराना और दर्शन जरीवाला भी अपनी भूमिका में जमें हैं.बाकी के किरदारों ने भी अपने किरदारों के साथ न्याय किया है.

मैडॉक फिल्म्स और जियो स्टूडियोज के बैनर तले दिनेश विजन और ज्योति देशपांडे द्वारा निर्मित , सेक्टर 36 एक ऐसी क्राइम थ्रिलर है जो हमारे समाज के अंधकारमय सच को सबके सामने लेकर आती है. यह फिल्म नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है.


Urmila Kori
Urmila Kori
I am an entertainment lifestyle journalist working for Prabhat Khabar for the last 12 years. Covering from live events to film press shows to taking interviews of celebrities and many more has been my forte. I am also doing a lot of feature-based stories on the industry on the basis of expert opinions from the insiders of the industry.

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