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sikander movie review :कहानी से लॉजिक ही नहीं सलमान खान का मैजिक भी हो गया है गायब

सलमान खान स्टारर सिकंदर देखने की प्लानिंग है तो इससे पहले पढ़ लें यह रिव्यु

फिल्म- सिकंदर 

निर्माता- साजिद नाडियाडवाला

 निर्देशक- मुरुगादौस 

कलाकार- सलमान खान,रश्मिका मंदाना,सत्यराज,काजल अग्रवाल ,प्रतीक पाटिल,शरमन जोशी, अंजनी धवन और अन्य  

प्लेटफार्म- सिनेमाघर

 रेटिंग- डेढ़ 

sikander movie review :सलमान खान की फिल्म और ईद  का कनेक्शन कुछ ऐसा रहा है कि 2009 से 2019  तक अगर सलमान की कोई फिल्म रिलीज हुई है तो वह ईद पर ही रिलीज होती थी. इन फिल्मों के बॉक्स ऑफिस रिपोर्ट पर जाए तो कमजोर फिल्मों ने भी सॉलिड कमाई की है,लेकिन बीते कुछ सालों से यह आंकड़ा कमजोर फिल्मों के साथ और कमजोर होता जा रहा है. ईद पर रिलीज हुई उनकी पिछली फिल्म किसी का भाई किसी की जान के मुकाबले आज रिलीज हुई सिकंदर में दर्शक गिनती से थोड़े ज्यादा थिएटर में थे , लेकिन वह भीड़ नदारद थी, जो कुछ साल पहले तक सलमान खान की फर्स्ट डे फर्स्ट शो की फिल्मों का हिस्सा होती थी. कल ईद है शायद उससे कलेक्शन में कुछ इजाफा हो,लेकिन फिल्म के तौर पर सिकंदर, सलमान खान के स्टारडम को एक पायदान नीचे ले जाती है, जानते हैं कैसे इस रिव्यु में 

कहानी का दिल ही नहीं सबकुछ है मिसिंग 

कहानी की बात करें तो शुरुआत एक हवाई सफर से होता है, जिसमें विलेन (प्रतीक )एक महिला से छेड़खानी करता है और सिकंदर (सलमान खान) की एकदम हीरो वाली एंट्री होती है और विलेन को सबक सिखाया जाता है. यह विलेन कोई और नहीं बल्कि पावरफुल और करप्ट  मिनिस्टर (सत्यराज )का बेटा है.मतलब साफ है कि अब तक कई सौ फिल्मों में दिखाई जा चुकी वाली कहानी आनेवाली है.इसकी कहानी पर आते हैं. मिनिस्टर पावरफुल है,तो सिकंदर भी छोटा नहीं है. वह गुजरात के राजकोट का राजा संजय है, जो परेशानी में पड़े लोगों का मसीहा है. मिनिस्टर अपने बेटे की खुशी  के लिए सिकंदर का खात्मा चाहता है, लेकिन इसमें संजय की पत्नी साईश्री (रश्मिका )की मौत हो जाती है. सिकंदर की दुनिया खतम हो जाती है, लेकिन उसे मालूम पड़ता है कि उसकी पत्नी ऑर्गन डोनर थी और वह तीन लोगों के जरिए अभी भी जीवित है. सिकंदर उनसे मिलने मुंबई पहुंचता है और कहानी में ट्विस्ट ये आ जाता है कि मिनिस्टर के बेटे की भी मुलाकात सिकंदर से हो जाती है और इस बार वह सिर्फ पिटता नहीं है बल्कि निपट ही जाता है. मिनिस्टर अब सिर्फ सिकंदर ही नहीं उन तीनों लोगों को भी मार देना चाहता है, लेकिन उनको बचाना ही सिकंदर का मकसद है. क्या सिकंदर इन लोगों के जरिए साईश्री को जिन्दा रख पाएगा. यही आगे की कहानी है.

फिल्म की खूबियां और खामियां 

सलमान खान की फिल्मों में कहानी नहीं होती है अक्सर यह बात सुनने को मिलती है, लेकिन इस बार कहानी रखने थोड़ी कोशिश हुई है, लेकिन वह कोशिश कामयाब नहीं हुई है. मूल रूप से यह बदले की रटी रटाई ही कहानी है. कहानी कमजोर है और ढीले वाले स्क्रीनप्ले से लॉजिक भी गायब है. सलमान खान की सिक्योरिटी रश्मिका का किरदार मैनेज करता है. यह बात थोड़ी अटपटी सी लगती है.रश्मिका और सलमान की बेमेल शादी के बारे में कुछ शब्दों में बताया गया है, जबकि उस पर बैकस्टोरी की जरूरत थी.  अंजनी का किरदार जो अपने प्रेमी के लिए पागल रहती है,लेकिन वह सिकंदर के कहने पर एकदम से मान जाती है. अप्पा के किरदार का भी अचानक से ह्रदय परिवर्तन हो गया है. सिकंदर राजा है,लेकिन ट्रेन में सफर कर रहा है.निर्देशन की बात करें तो निर्देशक मुरुगादौस के साथ सलमान पहली बार काम कर रहे हैं, लेकिन वह करिश्मा नहीं कर पाए हैं. जो एटली ने शाहरुख़ खान के लिए जवान में किया था. फिल्म में ड्रामा, रोमांस ,कॉमेडी और इमोशन की कमी है. फिल्म के सीन्स में कंटीन्यूटी का भी ध्यान नहीं रखा गया है है. निर्देशक की प्रसिद्ध हिंदी फिल्मों पर गौर करें तो गजिनी और हॉलिडे दोनों में ही विलेन को नायक के मुकाबले ज्यादा मजबूत बताया गया था,लेकिन यहाँ विलेन एकदम कमजोर रह गया है. सिर्फ विलेन ही नहीं किसी भी किरदार के ग्राफ पर काम नहीं किया गया है.फिल्म ढाई घंटे की है, लेकिन यह लम्बाई भी अखरती है. सलमान की फिल्मों की खासियत डायलॉगबाजी होती है. इस फिल्म में अमिताभ बच्चन के पॉपुलर डायलॉग की खिचड़ी परोसी गयी है. तुम मुझे पूरे शहर में ढूंढ रहे हो वाला डायलॉग दीवार के पॉपुलर डायलॉग की खराब कॉपी है. फिल्म का एक्शन अच्छा और कुछ दिलचस्प सलमान खान स्टाइल डांस मूव्स भी हैं, लेकिन यह फिल्म को एंगेजिंग बनाने वाले फैक्टर्स कतई नहीं हो सकते  हैं. फिल्म का गीत संगीत चलताऊ है तो सिनेमेटोग्राफी में सबकुछ नकली नकली सा लगता है.

सलमान को ब्रेक लेने की है जरूरत 

यह सलमान खान की फिल्म है और हर फ्रेम में वही हैं. अभिनय की बात करें तो सलमान खुद अपने कई इंटरव्यू में इस बात को दोहरा चुके हैं कि वह अच्छे एक्टर नहीं लेकिन , जिस स्वैग और स्क्रीन पर करिश्माई व्यक्तित्व के लिए वह जाने जाते हैं, वह भी इस फिल्म में नदारद है. पूरी फिल्म में वह थके हुए से नजर आते हैं. उनकी आंखें सूजी हुई है. डायलॉग डिलीवरी ऐसी है, जैसे  उनसे जबरदस्ती एक्टिंग करवाई जा रही है. ये फिल्म देखने के बाद यह बात महसूस होती है कि सलमान खान को अब थोड़ा ठहर कर सोचने की जरुरत है और उसके बाद वह आगे बढ़े. अतीत में दिलीप कुमार,अमिताभ बच्चन से लेकर उनके समकालीन अभिनेता शाहरुख खान ने भी यही किया है.रश्मिका मंदाना बड़ी फिल्मों और बड़े सितारों के साथ छोटे किरदारों में लगातार नजर आ रही हैं और यह फिल्म भी इसी कड़ी का हिस्सा है. सलमान और उनके बीच केमिस्ट्री मिसिंग लगती है. सत्यराज कैरिकेचर टाइप विलेन बन कर रह गए हैं और इंडियन फिल्मों में मिनिस्टर के बिगड़ैल बेटे की रटी रटायी भूमिका में प्रतीक पाटिल दिखते हैं. काजल अग्रवाल  को भी कुछ खास करने को नहीं मिला है, तो एक्टर शरमन जोशी को पूरी तरह से वेस्ट किया गया है. बाल कलाकार ने सितारों की भीड़ में एकमात्र अच्छा काम किया है.


Urmila Kori
Urmila Kori
I am an entertainment lifestyle journalist working for Prabhat Khabar for the last 12 years. Covering from live events to film press shows to taking interviews of celebrities and many more has been my forte. I am also doing a lot of feature-based stories on the industry on the basis of expert opinions from the insiders of the industry.

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