फिल्म – तन्वी द ग्रेट
निर्माता -अनुपम खेर स्टूडियो और एनएफडीसी
निर्देशक -अनुपम खेर
कलाकार -शुंभागी दत्ता,अनुपम खेर,अरविन्द स्वामी, पल्लवी जोशी, करण टैकर,जैकी श्रॉफ,बोमन ईरानी और अन्य
प्लेटफॉर्म -सिनेमाघर
रेटिंग – ढाई
tanvi the great review :फिल्म ओम जय जगदीश की रिलीज के दो दशक बाद अभिनेता अनुपम खेर ने आज रिलीज हुई फिल्म तन्वी द ग्रेट से निर्देशन में वापसी की है. उन्होंने प्रभात खबर के साथ अपने इंटरव्यू में कहा कि वह एक प्रेरक कहानी की तलाश में थे इसलिए उनका लम्बा इन्तजार रहा और उनकी प्रेरक कहानी की तलाश उनकी ऑटिस्टिक भांजी तन्वी के साथ हुई एक बातचीत ने खत्म कर दी. वाकई उनकी आज रिलीज हुई फिल्म तन्वी द ग्रेट एक प्रेरक कहानी है.जो किसी को भी खुद से कमतर नहीं समझने अहम सीख देती है. फिल्म का फर्स्ट हाफ पूरी तरह से बांधे रखता है, लेकिन सेकेंड हाफ में कहानी लड़खड़ा गयी है. परदे पर जो कुछ भी दिखाया गया है. उसमें जरूरत से ज्यादा सिनेमैटिक लिबर्टी ले ली गयी है, जो तन्वी की प्रेरक कहानी के प्रभाव को भी कमतर कर गया है.
अलग होने का मतलब कमजोर नहीं की सीख देती है कहानी
फिल्म की कहानी ऑटिस्टिक तन्वी (शुभांगी दत्ता )की है , जो शहीद कैप्टेन समर रैना (करण टैकर )की बेटी है.वह अपनी मां (पल्लवी जोशी )के साथ दिल्ली में रहती है. तन्वी को कुछ महीनों के लिए अपने दादाजी कर्नल रैना (अनुपम खेर )के पास रहना है, क्योंकि उसकी मां एक विशेष समिट के लिए अमेरिका जा रही है. तन्वी के दादाजी उत्तराखंड के लैंसडाउन में रहते हैं. तन्वी के पापा की मौत के बाद से तन्वी अपने दादाजी से भी दूर हो गयी थी. दादाजी अपनी ऑटिस्टिक पोती को कमजोर समझते हैं,जबकि तन्वी हमेशा उन्हें कहती है कि वह अलग है लेकिन कमजोर नहीं.लैंडसडाउन में रहते हुए वह अपने शहीद पिता के सपने से रूबरू होती है और वह तय करती है कि सेना में भर्ती होकर वह सियाचिन की सबसे ऊँची चोटी पर जाकर तिरंगे को सैल्यूट करेगी. ऑटिस्टिक तन्वी क्या अपने पिता के सपने को पूरा कर पाएगी. सेना के नियमों के मुताबिक ऑटिस्टिक इसका हिस्सा नहीं बन सकते हैं. तन्वी का अपने पिता के लिए देखा गया सपना कैसे पूरा होगा.यही आगे की कहानी है.
फिल्म की खूबियां और खामियां
निर्देशक अनुपम खेर साधुवाद के हक़दार हैं कि वह अपनी फिल्म से ऑटिस्टिक लोगों के सपनों की उड़ान की कहानी को कह रहे हैं. फिल्म का एक संवाद भी है कि आप किसी को सपने देखने से कैसे रोक सकते हैं. जो इस फिल्म की कहानी को एक लाइन में बखूबी बयां करता है.फिल्म का कांसेप्ट जितना सशक्त है ,कहानी और स्क्रीनप्ले उसे उस तरह से मजबूती नहीं दे पाते हैं हालांकि फिल्म का फर्स्ट हाफ बड़ी ही मासूमियत और सादगी के साथ ऑटिस्टिक दुनिया से रूबरू करवाता है.दादा का पोती के साथ पहले साथ अकेले रहने से इंकार करना फिर तालमेल बिठाना कहानी में हल्के फुल्के पल जोड़ने के साथ इमोशनल टच भी देता है,लेकिन सेकेंड हाफ से कहानी अपना प्रभाव कम करती चली गयी है. एक ऑटिस्टिक लड़की के सेना में भर्ती होने वाले एसएसबी परीक्षा को पास कर इंटरव्यू राउंड तक पहुँचने की मुश्किल जर्नी को बहुत ही आसानी से दिखा दिया गया है.जिससे तन्वी की जिजीविषा भी परदे पर उभरकर सामने नहीं आ पायी है. सबकुछ अवास्तविक सा लगता है, जबकि सिनेमा की सबसे बड़ी ताकत किसी भी कहानी को विश्वसनीय बनाने की होती है.फिल्म की एडिटिंग पर भी काम किया जाना था. वीएफएक्स भी कमजोर रह गया है.फिल्म का गीत संगीत इसके साथ न्याय करता है.संगीतकार एम एम किरवाणी और गीतकार कौसर मुनीर की तारीफ बनती है.सिनेमेटोग्राफी में इंटरनेशनल आर्टिस्ट केईको नाकाहरा का नाम जुड़ा है. उन्होंने उत्तराखंड की खूबसूरती को बखूबी परदे पर उकेरा है.
फिल्म की डिस्कवरी हैं शुभांगी दत्ता
अभिनय की बात करें तो तन्वी की शीर्षक भूमिका को अभिनेत्री शुभांगी दत्ता निभा रही हैं.यह उनकी डेब्यू फिल्म है लेकिन फिल्म देखते हुए आपको इसका एहसास नहीं होगा. वह अपने किरदार में पूरी तरह से रच बस गयी है. अपनी बॉडी लैंग्वेज, संवाद सभी से उन्होंने अपने किरदार को जिया है. गानों की लिप्सिंग का उनका अंदाज भी बेहद खास है उनके अभिनय को देखकर यह कहा जा सकता है कि वह इस फिल्म की सबसे बड़ी डिस्कवरी है. अनुपम खेर भी अपने अभिनय से फिल्म को मजबूती देते हैं.जैकी श्रॉफ,अरविंद स्वामी और बोमन ईरानी सहित बाकी के कलाकारों ने अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है.