आवारा आतंक : मुजफ्फरपुर में कुत्तों का आतंक चरम पर, इस साल 10 हजार से अधिक लोग शिकार
मुजफ्फरपुर में कुत्तों का आतंक जारी, वैक्सीन की अधिक खपतगंभीर रूप से काटे जाने पर लगवानी पड़ रही एंटी रैबीज की आठ सूई उपमुख्य संवाददाता, मुजफ्फरपुर.
जिले में आवारा कुत्तों का आतंक इस कदर बढ़ गया है कि इस साल अब तक 10,057 लोगों को कुत्तों ने काट खाया है. यह आंकड़ा भयावह है. हर महीने औसतन 1500 लोग कुत्ते के काटने का शिकार हो रहे हैं. पिछले दो महीनों से शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों में कुत्तों के काटने के मामलों में तेजी आई है, जिससे स्वास्थ्य विभाग की चिंता बढ़ गई है.वैक्सीन के लिए लंबी कतारें
कुत्तों के आतंक के कारण सदर अस्पताल और एसकेएमसीएच के एंटी-रेबीज सेंटरों पर मरीजों की लंबी कतारें लगी रहती हैं. लोग सुबह से ही टीका लगवाने के लिए लाइन में लग जाते हैं. कुत्ते के काटने पर लगने वाले टीकों की संख्या घाव की गंभीरता पर निर्भर करती है. हल्की खरोंच होने पर जहां तीन वैक्सीन लेनी पड़ रही है, वहीं गहरा घाव होने पर आठ वैक्सीन तक दी जा रही हैं. सदर अस्पताल के अधीक्षक डॉ. बी.एस. झा ने कहा कि कुत्ते काटने के मामले काफी बढ़ गए हैं. उन्होंने लोगों को सलाह दी कि कुत्ता काटने पर तुरंत उस जगह को साबुन से अच्छी तरह साफ करें, जिससे संक्रमण का असर कम हो जाता है.महंगी इम्युनोग्लोबुलिन सूई की किल्लत
गहरे जख्म होने पर डॉक्टरों को मरीज को इम्युनोग्लोबुलिन सूई देने की सलाह देनी पड़ती है. यह एक महत्वपूर्ण इंजेक्शन है जो रेबीज के गंभीर मामलों में तुरंत सुरक्षा प्रदान करता है. हालांकि, स्वास्थ्य विभाग की ओर से सरकारी अस्पतालों में इसकी आपूर्ति नहीं है, जिससे मरीजों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. इस सूई की बाजार में कीमत आठ हजार रुपये है, जिसे मरीजों को बाहर से खरीदना पड़ता है. पिछले दो महीनों में सदर अस्पताल में दो मरीजों को यह महंगी सूई बाहर से खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर अतिरिक्त बोझ पड़ा.क्यों आक्रामक हो रहे हैं कुत्ते?
पशु चिकित्सक डॉ. अविनाश कुमार ने बताया कि कुत्तों के शरीर में पसीना निकलने वाली ग्रंथियां नहीं होती हैं, जिसके कारण वे गर्मी से अधिक प्रभावित होते हैं. दूसरा, इस मौसम में कुत्तों के शरीर में हार्मोनल बदलाव होता है. इसी कारण वे अधिक आक्रामक हो जाते हैं. आवारा कुत्तों की बढ़ती आबादी एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बन गई है.9999
भारत में रेबीज के राष्ट्रीय आंकड़े
वैश्विक बोझ: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, रेबीज से होने वाली कुल मौतों में से 36% अकेले भारत में होती हैं.
सालाना मौतें: देश में हर साल रेबीज के कारण लगभग 5,700 से 20,000 लोगों की मौत होती है, जिनमें से 30-60% पीड़ित 15 साल से कम उम्र के बच्चे होते हैं.कुत्तों का योगदान: भारत में पशुओं के काटने के 9 मिलियन से अधिक मामलों में से दो-तिहाई कुत्तों के काटने के कारण होते हैं.
सरकारी लक्ष्य: भारत का लक्ष्य 2030 तक रेबीज से होने वाली मौतों को शून्य करना है.रेबीज से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी
लक्षण: रेबीज के शुरुआती लक्षण फ्लू जैसे होते हैं, जिनमें बुखार, सिरदर्द और कमजोरी शामिल हैं. बाद में लक्षण गंभीर हो जाते हैं, जैसे बेचैनी, भ्रम, पानी से डर (हाइड्रोफोबिया) और अत्यधिक लार. एक बार लक्षण दिखाई देने पर यह बीमारी लगभग 100% घातक होती है.तत्काल उपचार: कुत्ते के काटने के तुरंत बाद घाव को साबुन और पानी से अच्छी तरह धोना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि यह संक्रमण के प्रभाव को कम करता है. समय पर टीका लगवाना और गंभीर मामलों में इम्युनोग्लोबुलिन सूई लगवाना ही रेबीज से बचाव का सबसे प्रभावी तरीका है.
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