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Ranchi News: लड़खड़ा रहा झारखंडी फिल्म उद्योग, कैसे हो पायेगा उद्धार

रांची. बंगाल के प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक ऋत्विक घटक ने 1958 में फिल्म अजांत्रिक बनायी थी. झारखंड के आदिवासी जनजीवन को टटोलती इस फिल्म की शूटिंग रांची, गुमला और आसपास के

रांची. बंगाल के प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक ऋत्विक घटक ने 1958 में फिल्म अजांत्रिक बनायी थी. झारखंड के आदिवासी जनजीवन को टटोलती इस फिल्म की शूटिंग रांची, गुमला और आसपास के क्षेत्रों में हुई थी. लेकिन झारखंड की पहली फिल्म ””””सोना कर नागपुर”””” वर्ष 1992 में बनी. यह फिल्म तब खूब चर्चित हुई थी. सोना कर नागपुर के बाद फिल्म ””””प्रीत”””” आयी. इन फिल्मों ने एक रास्ता खोला और धीरे-धीरे नागपुरी फिल्मों का एक ट्रेंड सा चल पड़ा.

30-35 साल बाद भी लड़खड़ा रही नागपुरी फिल्म इंडस्ट्री

दूसरी ओर 30-35 सालों के बाद भी झारखंडी या नागपुरी फिल्म इंडस्ट्री अभी भी अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो पायी है. यह अभी भी लड़खड़ाती नजर आ रही है. साल 2023 में सिर्फ एक फिल्म आयी- नासूर. 2024 में जो फिल्में आयीं , उनमें खोटा सिक्का, गंगवा, जतरा, आई लव यू, पंचायत पर खेला, सपने साजन के शामिल थी. वर्ष 2025 में अभी तक सिर्फ एक फिल्म नायका रिलीज हुई है. जबकि सेरेंग, शहरिया, सिंदूर तोरे नाम कर, बीर आइज कर बिरसा, लोकल हीरो और मोर आबा हीरो जैसी फिल्में रिलीज होने के इंतजार में हैं.

सिनेमाघरों में प्रतिदिन एक शो करने की मांग

झारखंडी फिल्मकार कहते हैं कि सरकार और समाज के सहयोग के बिना इस इंडस्ट्री का विकास संभव नहीं है. नागपुरी फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े पुरुषोत्तम कहते हैं कि आज एक फिल्म बनाने में कम से कम 30 से 35 लाख रुपये खर्च होता है. फिल्म बनाने में लगभग डेढ़ से दो साल का समय लगता है. लेकिन इतना समय लगाने और खर्च के बाद भी इन्हें सिनेमाघरों में प्रदर्शित करने में खासी मुश्किलें होती हैं. अगर फिल्म सिनेमाघरों में लग भी जाती है, तो बॉलीवुड फिल्मों के दबाव में एक हफ्ते बाद ही इन्हें उतार दिया जाता है. इससे फिल्म की लागत भी नहीं निकल पाती है. नागपुरी फिल्मों से जुड़े पुरुषोत्तम कहते हैं कि अगर फिल्मों को बाजार ही नहीं मिलेगा, तो यह इंडस्ट्री कैसे पनपेगी? झारखंड कलाकार आंदोलन संघर्ष समिति ने पिछले दिनों अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन किया. समिति की ओर से मांग की गयी है कि सिनेमाघरों में झारखंडी फिल्मों को भी प्राथमिकता मिले. प्रतिदिन कम से कम एक शो झारखंडी फिल्मों के लिए आरक्षित होना चाहिए. इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में जिला भवन, प्रखंड सभागार और पंचायत भवनों में भी झारखंडी फिल्में दिखाने की व्यवस्था हो. एक महत्वपूर्ण मांग कलाकारों का बीमा से जुड़ा है, ताकि बीमारियों में कलाकारों को इलाज के लिए सोचना नहीं पड़े.

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