दाउदनगर. धान का कटोरा कहे जाने वाला दाउदनगर क्षेत्र नहर सिंचित इलाका है. नहर सिंचित इलाका होने के बावजूद किसान पूरी तरह चिंतित है. खेत व तालाब सूखे पड़े है. पटना मेन कैनाल में अभी तक नहर का पानी नहीं पहुंचा है. भीषण गर्मी और बढ़ते तापमान में तेजी से भू-जल स्तर पर गिरता जा रहा है. रोहिणी नक्षत्र समाप्त हो चुका है और मृगशीरा चल रहा है. किसान रोहणी नक्षत्र से ही धान का बिचड़ा डालना शुरू करते है. पानी के अभाव में अभी तक बिचड़ा नहीं डाला गया है. किसानों का कहना है कि भीषण लू में नहर सूखी रहने से एक तरफ जहां खेती प्रभावित हो रही है. वहीं दूसरी तरफ धान का बिचड़ा नहीं डाला जा सका है. पशुओं को भी काफी परेशानी हो रही है. उनके समक्ष पेयजल की समस्या बनी हुई है. नहरों में पानी के अभाव में चापाकल का लेयर भी नीचे चला गया है. पटना मेन कैनाल के साथ-साथ शाखा नहरें भी सूखी पड़ी हुई है.
छोड़ा गया नहर में पानी
नहर में पानी नहीं आने से मायूस किसान आसमान की ओर टकटकी लगाये बैठे है. बारिश नहीं होने से कृषि कार्य ठप पड़ा हुआ है. किसानों का कहना है कि नहरों में जून महीने के पहले सप्ताह के आसपास पानी छोड़ दिया जाता था,जिससे किसान कृषि कार्य में लग जाते थे,लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. हालांकि, गुरुवार की शाम सूचना मिली कि इंद्रपुरी बराज से गुरुवार की दोपहर करीब 12 बजे के बाद 509 क्यूसेक पानी छोड़ा गया है. सिंचाई विभाग के कनीय अभियंता बलजीत कुमार ने बताया कि नहर में पानी छोड़ दिया गया है. बारुण में कुछ काम कराये जाने के कारण नहर में पानी नहीं आ पाया था.अब पानी छोड़ा गया है. खेतों तक सिंचाई के लिए सही तरीके से पर्याप्त मात्रा में पानी पहुंचाना विभाग की प्राथमिकता है. वहीं दूसरी तरफ सूत्रों से पता चला कि जो 509 क्यूसेक पानी नहर में छोड़ा गया है उसे दाउदनगर तक पहुंचने में कम से कम 33 घंटे लगेंगे. वैसे पटना मेन कैनाल में लगभग तीन हजार क्यूसेक पानी छोड़ा जाता है,जिससे शाखा नहरों में भी पानी जाता है.
नहीं हो सकी बिचड़ा डालने की शुरूआत
प्रखंड कृषि कार्यालय के सूत्रों से पता चला कि पानी के अभाव में अभी तक इस प्रखंड में बिचड़ा डालने की शुरूआत नहीं हो सकी है. कुछ किसानों ने बोरिंग के सहारे बिचड़ा डाला है. हो सकता है कि महज दो से ढाई प्रतिशत बिचड़ा डाला गया हो. हालांकि, इसका ब्योरा इकट्ठा किया जायेगा,लेकिन भू-जल स्तर गिरने और नहर में समय पर पानी नहीं मिलने के कारण कृषि कार्य प्रभावित हुआ है.
बिचड़ों को बचा पाना हो रहा मुश्किल
भूगोलविद एवं शिक्षक अंबुज कुमार सिंह ने कहा कि 25 मई से रोहिणी नक्षत्र शुरू होने के साथ ही खरीफ के खेती के मौसम की शुरूआत मानी जाती है. रोहिणी नक्षत्र बीत जाने के बावजूद आसमान से आग के गोले बरस रहे है. हीटबेव से धरती जल रही है. समय पर नहर में पानी नहीं आने से किसानों की चिंता बढ़ी हुई है. इस अनुमंडल क्षेत्र में भूमि की प्रकृति और सिंचाई की उपलब्धता के अनुसार धान का बिचड़ा बोने का समय रोहिणी नक्षत्र ही माना जाता है. यह स्थिति धान के लिए अनुकूल होती है. बुजुर्ग किसानों का कहना है कि जब मौसम सही रहता था तब रोहिणी नक्षत्र में भारी बारिश होती थी. अब तो ऐसा लगता है कि आग के गोले बरस रहे है. यह स्थिति ग्लोबल वार्मिंग के कारण हो रहा है. बहरहाल समय पर बिचड़ा लगाना संभव नहीं हो पा रहा है. कहीं–कहीं किसान रोहिणी नक्षत्र में बिचड़ा तो कर दिये है,लेकिन इतनी भीषण गर्मी और हीटवेब में उन बिचड़ों को बचा पाना मुश्किल हो रहा है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है