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जिले में 50 हेक्टेयर भूमि में होगी केले की खेती

किसानों को 75 प्रतिशत मिलेगा अनुदान, संयुक्त कृषि भवन में पौधों का वितरण शुरू

किसानों को 75 प्रतिशत मिलेगा अनुदान, संयुक्त कृषि भवन में पौधों का वितरण शुरूफलों की खेती करने वाले खुशनसीब होते हैं किसान

एक बार फसल लगाने पर वर्षों तक होती है कमाई संयुक्त कृषि भवन में पौधा वितरण शुरू फोटो नंबर-9- संयुक्त कृषि भवन में फलदार फसल के पौधा वितरण करते डीएचएओ

प्रतिनिधि,

औरंगाबाद/अंबा.

सरकार के उद्यान विभाग जिले में फल-फूल की खेती को बढ़ावा देने पर विशेष जोर दे रही है. इसके लिए वैज्ञानिक नित्य नये-नये प्रयोग कर रहे हैं. फलदार पौधे लगाने वाले इच्छुक किसानों को समय-समय पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है. ऐसे भी धान-गेहूं की परंपरागत खेती काफी महंगी पड़ रही है. धान की रोपाई करने के लिए किसान को मजदूर नहीं मिल रहे हैं. प्रवासी मजदूरों पर किसान आश्रित हो गये हैं. विस्तृत जानकारी देते हुए सहायक उद्यान निदेशक डॉ श्रीकांत ने बताया कि कम जोत वाले किसान भी अपनी जमीन में फलदार पौधा लगाकर खुशहाल हो सकते हैं. फलों की खेती करने के लिए धान की तरह सिंचाई करने में पानी की खपत नहीं है. ड्रीप एनिमेशन के तहत फलदार पौधा उपजाया जा सकता है. खाद और पौधे में भी न के बराबर खर्च आता है. किसान बहुत ही कम लागत में केले व नारियल की खेती कर अच्छी कमाई कर सकते हैं. एक बार आम, अमरूद, आंवला, नींबू व नारियल का पौधा लगाने पर कई वर्षों तक लगातार फल प्राप्त किया जा सकता है. पारंपरिक खरीफ व रबी खेती में यह संभव नहीं है. उन्होंने बताया कि सिर्फ केले के पौधे से बड़े घौद के साथ एक बार काफी फल निकलता है. अब इसके जड़ से फुनगे पौधे से लगातार तीन बार फल लिया जा सकता है. जिले के बारुण प्रखंड में महुअरी व मौआर खैरा, नवीनगर प्रखंड के गमहरिया तथा कुटुंबा प्रखंड के करमडीह गांव के व्यापक पैमाने पर केले की खेती से किसान मोटी कमाई कर रहे हैं.

50 हेक्टेयर में केले की खेती सहायक उद्यान निदेशक ने बताया कि जिले के विभिन्न प्रखंडों में 50 हेक्टेयर भूमि में केले की खेती का लक्ष्य निर्धारित है. एक किसान एक एकड़ से लेकर चार हेक्टेयर तक भूमि में केले की खेती कर सकता है. इसके लिए सरकारी स्तर पर प्रति हेक्टेयर 62 हजार 500 रुपये अनुदान का प्रावधान है. उन्होंने बताया कि किसानों को नर्सरी अलग-अलग वेराइटी का टीशू कल्चर, मालभोग, जी-9 व चिनिया केला पौधा दिया जायेगा. इसके लिए पांच रुपये प्रति पौधा देय होगा. उन्होंने बताया कि टीशू कल्चर का खासियत है कि 12 महीने में फल देता है. वहीं, मालभोग वेराइटी के केले से 15 महीने में कांधी निकलता है, पर लोगों के बीच इसकी डिमांड और बाजार भाव अधिक है.

75 प्रतिशत अनुदान पर मिल रहा नारियल का पौधाउद्यान विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार, नारियल विकास बोर्ड के तहत औरंगाबाद में अलग-अलग वेरायटी के नारियल का पौधा उपलब्ध करा दिया गया है. इच्छुक कृषक अब सहजता से डाभ या फलदार नारियल की खेती कर सकते हैं. डीएचओ ने बताया कि प्रति पौधा 87 रुपये कीमत निर्धारित है. इसमें 75 प्रतिशत अनुदान है. छोटे किसान भी अपने खेत के मेढ़ पर नारियल का पौधा लगा सकते हैं. इस बार जिले में 1600 का पौधा लगाया जाना है. इसके साथ ही 40 प्रतिशत अनुदान पर पांच हेक्टयर भूमि में ड्रायगन फ्रूट तथा 40 प्रतिशत अनुदान पर दो हेक्टेयर भूमि में अंजीर की खेती का लक्ष्य निर्धारित है. अधिकारियों ने बताया कि अभी विभाग को पोर्टल खुला हुआ है. आवेदन करने में किसान देर नहीं करें. पहले आओ, पहले पाओ के तर्ज पर संयुक्त कृषि भवन में पौधा का वितरण शुरू कर दिया गया है.

उद्यान विभाग के पोर्टल पर करना होगा ऑनलाइन अप्लाई बीएचओ रजनीश कुमार व आशुतोष कुमार सक्सेना ने बताया कि फलदार पौधा लगाने के लिए किसानों को उद्यान विभाग के पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन करना होगा. इसके लिए किसानों का रजिस्ट्रेशन नंबर, जमीन की रसीद, आधार नंबर व बैंक अकाउंट जरूरी है. इधर, रिटायर्ड कृषि पदाधिकारी रामचंद्र सिंह, शिवनाथ पांडेय व आत्माध्यक्ष वृजकिशोर मेहता आदि कहना है कि फलदार वृक्ष लगाने वाले कृषक खुशनसीब होते हैं. उन्हें रोजी-रोजगार के लिए भटकना नहीं पड़ता है. एक बार फलदार पौधा लगाने पर कई पीढ़ी को फल खाने के लिए मिलता है. वहीं, उपज से मोटी कमाई की उम्मीद रहती है. विदित हो कि उद्यान विभाग आम, अमरूद, नींबू, पपीता, आंवला, केला व नारियल की खेती के साथ-साथ मशरूम व मधुमक्खी पालन करने के लिए किसानों को प्रेरित कर रहा है. फलों की खेती से एक तरफ प्रकृति में ऑक्सीजन का संचार होगा. वहीं, स्थानीय स्तर पर पौष्टिक आहार के रूप में खाने के लिए फल प्राप्त होता है.

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